भारत में सदियों से है क्वारैंटाइन, दुनिया के कई देश भी अपनाते रहे हैं

नवजात-मां को अलग रखने जैसी कई प्रथाएं, भगवान जगन्नाथ भी 14 दिन अलग रहते हैं

कोरोना के कहर से दुनियाभर में 10 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। सबसे ज्यादा इटली में हुईं। ऐसे में दुनिया क्वारैंटाइन यानी कुछ समय के लिए अलग-थलग रहने का तरीका अपना रही है। यह शब्द इटली के क्वारंटा जिओनी से जन्मा है, जिसका अर्थ है 40 दिन का। 600 साल पहले प्लेग से बचने के लिए इटली ने इसे शुरू किया। खास बात यह है कि भारत में यह तरीका सदियों से चला आ रहा है। इनमें नवजात और मां को 10 दिन अलग रखना, किसी की मृत्यु के बाद दूर रहने जैसी कई प्रथाएं हैं। ये क्वारैंटाइन के ही रूप हैं।
भारत: पुरी में भगवान जगन्नाथ हर साल 14 दिन अलग रहते हैं। मान्यता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा से अमावस्या तक वे बीमार पड़ते हैं। इस दौरान उन्हें जड़ी-बूटियों का पानी दिया जाता है।
पेड़-पौधों के लिए भी क्वरैंटाइन नीति
भारत में तो पेड़-पौधों तक के लिए क्वारैंटाइन पॉलिसी बनाई गई है। इस पॉलिसी का उद्देश्य पर्याप्त नीतिगत और वैधानिक उपायों के जरिए महत्वपूर्ण पेड़-पौधों और ऐसे उत्पादों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों और बीमारियों को रोकना है। इस नीति को प्लांट प्रोटेक्शन, क्वारैंटाइन एंड स्टोरेज डायरेक्टोरेट की देखरेख में लागू किया जाता है। यह विभाग कृषि मंत्रालय के तहत काम करता है।
फ्रांस: फ्रांस में क्वारैंटाइन को कॉर्डन संस्कार कहते हैं। इसमें किसी समुदाय, क्षेत्र या देश में आवाजाही पर प्रतिबंध होता है, ताकि संक्रमण रुक सके। 1523 में माल्टा में प्लेग फैलने के बाद कॉर्डन सैनिटेयर शुरू किया था।
बाइबिल: सातवीं सदी या शायद पहले लिखी लेविटस की बाइबिल की किताब में संक्रमण से बचने के लिए अलग रहने का उल्लेख है। इसकी प्रक्रिया मोजेक कानून के तहत बताई गई है।
बौद्ध धर्म: 8वीं सदी में बोधायन और गौतम सूत्र में नवजात-माता और मृत व्यक्ति के रिश्तेदारों को संक्रमण से बचने के लिए कम से कम 10 दिन अलग रहने की बात कही गई है।
इस्लामिक वर्ल्डः 706 ईस्वी में उमय्यद खलीफा अल वालिद प्रथम ने दमिश्क में कुष्ठ रोग पीड़ित लोगों को अलग रखा। 1431 में ज्यादातर देशों ने इन पर अनिवार्य क्वारैंटाइन लागू किया।

(साभार – दैनिक भास्कर)

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