भारत के चिकित्सा क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। वर्ष 2023-24 में मेडिकल स्कूल के छात्रों में महिलाओं की हिस्सेदारी 54.6 % रही। वहीं एनएसएसओ 2017-18 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 29 फीसदी महिलाएं डॉक्टर हैं। दाइयों समेत लगभग 80 फीसदी नर्सिंग स्टाफ और 100 प्रतिशत आशा कार्यकर्ता महिलाएं हैं। महिला सशक्तिकरण के इतिहास में चिकित्सा क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है। भारतीय महिलाओं ने अपनी मेहनत और लगन से चिकित्सा के क्षेत्र में न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि समाज में बदलाव भी लाया। मेडिकल के क्षेत्र में बढ़ रही महिलाओं की भागीदारी का श्रेय डॉ. आनंदीबाई जोशी को जाता है। डॉ. आनंदीबाई जोशी पहली भारतीय महिला डॉक्टर थीं। उनकी संघर्षपूर्ण यात्रा ने देश की अन्य महिलाओं को भी चिकित्सकीय शिक्षा हासिल करने और इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। आइए जानते हैं भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदीबाई जोशी के चिकित्सक बनने के सफर के बारे में। डॉ. आनंदीबाई गोपालराव जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर थीं। उनका जन्म 31 मार्च 1865 को महाराष्ट्र के ठाणे जिले में जमींदार परिवार में हुआ था। मात्र 9 वर्ष की उम्र में उनका विवाह गोपालराव जोशी से हुआ। गोपालराव उनसे 16 साल बड़े थे। गोपाल राव ने आनंदीबाई को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया।
आनंदीबाई की शिक्षा और संघर्ष – आनंदीबाई 14 वर्ष की आयु में मां बनीं लेकिन शिशु चिकित्सा सुविधा की कमी के कारण बन नहीं सका। इस घटना से आनंदीबाई बहुत दुखी हुईं और डॉक्टर बनने का निश्चय किया ताकि भविष्य में भारत में महिला स्वास्थ्य की दिशा में काम कर सकें और चिकित्सकीय कमी के कारण किसी बच्चे की जान न जाए। उन्होंने 1883 में अमेरिका के पेनसिल्वानिया में महिला मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। पढ़ने के लिए आनंदी ने अपने सारे गहने बेच दिए। पति गोपालराव और कई शुभचिंतकों ने भी आनंदी को सहयोग किया। 1886 में महज 19 साल की उम्र में आनंदीबेन ने डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (M.D.) की डिग्री हासिल कर ली। आनंदीबाई पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंने एमडी की डिग्री प्राप्त की थी और देश की पहली महिला डॉक्टर बनीं उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें क्वीन विक्टोरिया से भी सराहना मिली। स्वदेश वापसी के बाद उन्होंने कोल्हापुर रियासत के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल के महिला वार्ड में प्रभारी चिकित्सक पद पर कार्य शुरू किया हालांकि महज 22 वर्ष की आयु में 26 फरवरी 1887 को टीबी की बीमारी से ग्रस्त होने के चलते आनंदीबाई का निधन हो गया।