कोलकाता : साहित्य मानवीय संवेदना और मूल्यों का संरक्षण करता है । इससे विच्छिन्न होकर महानगर के लोग अपनी राष्ट्रीय संस्कृति की रक्षा नहीं कर सकते। खासकर हिन्दी भाषियों को साहित्य से प्रेम बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि इसके बिना मातृभाषा की रक्षा नहीं की जा सकती। भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा आयोजित साहित्य संवाद के वक्ताओं ने यह विचार व्यक्त किए। साहित्य संवाद की शुरुआत संगीतज्ञ रश्मि पांडे के काव्य संगीत से हुई । इसके बाद प्रियंकर पालीवाल, सेराज खान बातिश, रामकेश सिंह, मधु सिंह, राहुल गौड, सूर्य देव राय ने स्वरचित कविता पाठ किया। विश्वभारती की शोध छात्रा प्रोफेसर गुलनाज बेगम ने स्त्री जीवन के अधिकारों के संबंध में चित्रा मुदगल के उपन्यासों का हवाला देकर कहा कि, स्त्रियों की दशा समाज में अभी भी खराब है और उन्हें बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए। खिदिरपुर कॉलेज की शिक्षिका प्रोफेसर इतु सिंह ने कहा कि आजादी के पहले के भारत को समझना हो तो प्रेमचंद का साहित्य पढ़ना होगा और आजादी के बाद के भारत की जानकारी हरिशंकर परसाई के व्यंग्य साहित्य से होती है ।आज समाज में व्यंग्य की भूमिका बढ़ गई है ।भारतीय भाषा परिषद की मंत्री विमला पोद्दार ने कहा कि साहित्य के विकास के लिए युवाओं को आगे आना होगा। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के संयुक्त महासचिव संजय जायसवाल ने कहा कि साहित्य संवाद युवा पीढ़ी के रचनाकारों तथा वरिष्ठ लेखकों के बीच संवाद का मंच है । भारतीय भाषा परिषद भाषाओं के बीच सेतु निर्माण के साथ नई पीढ़ी में साहित्यिक रुचि पैदा करना चाहता है।
अध्यक्षीय भाषण देते हुए सांस्कृतिक पुर्ननिर्माण मिशन के अध्यक्ष और भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डॉक्टर शंभुनाथ ने कहा कि साहित्य जीवन जीने की एक कला है जो मनुष्य को रूढ़ियों और भेदभाव से मुक्त करती है और उच्च मानवीय भावनाओं की ओर ले जाती है । संस्था के महासचिव राजेश मिश्र ने कहा कि साहित्य संवाद का यह मंच नई पीढ़ी के रचनाकारों को सृजनात्मक संस्कार प्रदान करता है । धन्यवाद ज्ञापन करते हुए रामनिवास द्विवेदी ने कहा कि युवाओं की पीढ़ी ही साहित्य को समाज में बचाएगी और हिन्दी से प्रेम का विस्तार करेगी।