भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा से जुड़े हैं ये रहस्य

जगन्नाथ रथ यात्रा के समापन का दिन ‘नीलाद्रि बिजे’ कहलाता है। यह दिन इस बार 14 जुलाई 2016 के दिन है, इस दिन द्वादशी है। यह वही दिन है जब रथों पर ‘अधर पणा’ (भोग) के बाद भगवान जगन्नाथ को मन्दिर में प्रवेश कराया जाता है इसे ‘नीलाद्रि बिजे’ कहते हैं।

इसके पहले भगवान का स्वर्णाभूषणों से श्रृंगार किया जाता है जिसे ‘सुनाभेस’ कहते हैं। इस तरह यह जगन्नाथ रथ यात्रा पूर्ण होती है। अगले वर्ष के इंतजार में भक्त भावविभोर होकर इस पूरे उत्सव का समापन श्रद्धा पूर्वक करते हैं। जब भक्त गुंदेचा मंदिर के भगवान के दर्शन कर रहे होते हैं उसे ‘आड़प दर्शन’ कहते हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की दूसरी तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है।

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यहां जाती हैं रथ की लकड़ियां और काष्ठ मूर्तियां

जब अषाढ़ माह में अधिकमास आता है, तब पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा ‘नवकलेवर’ उत्सव मनाया जाता है। नवकलेवर उत्सव 13 दिनों तक जारी रहा।

रथ यात्रा के बाद तीनों रथों की पवित्र काष्ठ (लकड़ी) को भक्त अपने घर ले जाएंगे जहां वो सुख, समृद्धि, संपन्नता के लिए पूजाघर में रखेंगे एवं काष्ठ की वर्षभर पूजा करेंगे।

रथ यात्रा में पहली रोचक बात यह है कि ‘नवकलेवर’ में निर्मित मूर्तियों को हर वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा में निकाला जाएगा। यह दौर तब तक जारी रहेगा जब तक अगला नवकलेवर नहीं आता यानी ‘अषाढ़ माह में अधिकमास और जगन्नाथ रथ यात्रा का विशेष संयोग।’

मूर्ति शिल्पकार की हो जाती है मृत्यु

जगन्नाथ रथ यात्रा की दूसरी रोचक बात यह है जब ‘नवकलेवर’ उत्सव के लिए नई काष्ठ मूर्तियां जो शिल्पकार बनाता है उसकी मृत्यु हो जाती है। ‘नवकलेवर’ में वह शिल्पकार भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र की काष्ठ मूर्तियां बनाता है।

नवकलेवर उत्सव के समापन पर नई मूर्तियों को मंदिर परिसर में ही एक विशेष स्थान पर रखा जाता है। पुरानी मूर्तियों को मंदिर परिसर में विशेष स्थान पर धरती में समाहित कर दिया जाता है। जहां भक्त पुष्प अर्पित करते हैं। यह वही स्थान होता है जहां नवकलेवर उत्सव के दौरान सदियों से समाहित किया जा रहा है।

आश्चर्य की बात यह है कि जब पुरानी मूर्तियों को धरती में समाहित किया जाता है तब उनसे पहले की मूर्तियां उस स्थान पर अदृश्य मिलतीं हैं। यह क्रम सदियों से चला आ रहा है। जिस पर श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है।

इस तरह नवकलेवर में निर्मित इन तीनों काष्ठ मूर्तियों को हर वर्ष पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा में दर्शनार्थ निकाला जाता है। और यह क्रम अगले नवकलेवर उत्सव तक जारी रहता है।

 

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