ब्लैक कर्टन थिएटर की एक शाम, रंगमंच और ग़ज़लों के नाम

कोलकाता । ब्लैक कर्टन थिएटर के मंच प्रदर्शन कार्यक्रमों के उद्घाटन के अवसर रंगमंच और ग़ज़लों की शाम का आयोजन मंगलवार की देर शाम तक किया गया। इस अवसर पर संस्था के प्रमुख अमन जायसवा  ल ने 21 लेनिन सरणी स्थित इस थिएटर स्थल को रंगमंच और विविध कला-प्रेमियों के प्रदर्शन के लिए समर्पित करने की घोषणा की। थिएटर के प्रदर्शन कार्यक्रम समारोह का उद्घाटन मशहूर नाट्य निर्देशक डॉ. जनार्दन घोष, साहिर सिद्दीकी और प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ.अभिज्ञात ने किया।
 कार्यक्रम के पहले सत्र में डॉ. जनार्दन घोष ने वैश्विक रंगमंच से लेकर भारतीय नाटकों की स्थिति पर प्रकाश डाला और कहा कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि मंचन कितने लोगों के बीच हो रहा है। महत्वपूर्ण है रंगमंच को हर परिस्थिति के बीच जीवित रखना। साहिर सिद्दीकी ने कहा कि रंगमंच की दुनिया में आकर लगा कि कलाकार केवल वाहवाही पाने और अपने को स्थापित करने के लिए ही अभिनय नहीं करते हैं बल्कि समाज को कुछ देने का भी जज्बा रखते हैं। यह उन्हें उर्जा देती है। नाट्य समीक्षक प्रेम कपूर ने कहा कि यदि रंगमंच में लोगों की दिलचस्पी घटें और लोग उनके पास न आयें तो रंगकर्मियों को सीमित साधनों के बावजूद उनके बीच जाना होगा और अपनी बात कहनी होगी।
कार्यक्रम का दूसरा सत्र डॉ. अभिज्ञात की ग़ज़लों के एकल पाठ का था, जिसमें उन्होंने अपनी ताज़ा एक दर्जन ग़ज़लों का पाठ कर खूब वाहवाही बटोरी। उनकी पहली ही ग़ज़ल ने श्रोताओं पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली-‘तुझे बस तपते होठों के मसाले गर्म रक्खेंगे। मेरे ये मशवरे दिल में बसा ले गर्म रक्खेंगे।’ उनकी एक ग़ज़ल यूं थी-छोड़ दी है हर कहानी बीच में। आ गयी जब रातरानी बीच में। चाहते हैं कि तअल्लुक भी बनें/दीवार भी है इक बनानी बीच में।’
कार्यक्रम के तीसरे सत्र में ब्लैक कर्टन थिएटर ग्रूप के सदस्यों अमन जायसवाल द्वारा लिखित व निर्देशित लघुनाटक ‘फिश करी’ का मंचन किया। ‘फिश करी’ में सिमरन सहगल, कर्मा घोसी, मोहम्मद वसीम, विपुल अग्रवाल और वासिम अकरम ने अपने जादुई अभिनय का प्रदर्शन किया।

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