Wednesday, May 21, 2025
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बॉलीवुड राजनीति : वह सबको गिराकर चलते हैं…अब उनका विकल्प बनना होगा

सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया

कहते हैं कि सवाल उठने चाहिए पर हमें भूलने की आदत है और इसलिए हम कई घटनाओं को जोड़कर चीजें नहीं देखते मगर सुशांत सिंह राजपूत जैसे तेजी से उभरते सितारे का अचानक डूब जाना यूँ ही नहीं है। बस हुआ यह है कि हमने सोचा नहीं कभी…मगर उनकी मौत ने एक बार फिर बॉलीवुड के प्रिविलेज क्लब और बाहरी विवाद को हवा दे दी है। कुछ शत्रु सामने होते हैं और कुछ ऐसे होते हैं जो आपसे पूरी मिठास और सादगी से बात करेंगे मगर वही लोग आपको किनारा भी कर देते हैं और किनारे हो भी जाते हैं और एक दिन आप खुद ही अलग हो जाते हैं। हमने कभी सवाल नहीं उठाया क्यों…संजय दत्त, सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर और वरुण से लेकर सूरज पंचोली तक को बॉलीवुड में इतना महत्व मिलता है। आखिर किसी का कॅरियर संवारने और बिगाड़ने वाले सलमान खान और करण जौहर होते कौन हैं…सब जानते हैं कि अरिजीत सिंह और विवेक ओबेराय के पीछे वह कैसे पड़े हैं….मगर फर्क नहीं पड़ता और नतीजा सामने है।

शैलेन्द्र सिंह

आज जब लिखने जा रही हूँ तो एक कड़ी से दूसरी कड़ी मिलाती चली गयी और तब लग रहा है कि मुम्बई की मायानगरी में तो प्रतिभाओं का कत्ल करने की लम्बी परम्परा रही है। या तो आप किसी प्रिविलेज क्लब का हिस्सा बनिए या फिर बॉलीवुड से विदा लीजिए…और मराठी मानुष होने के नाम पर इन सबको सरकारी मदद भी खूब मिलती है। ये अचानक नहीं है….बाकायदा उनको परेशान किया जाता है…उनकी फिल्में बन्द करवायी जाती हैं…उनको अलग – थलग किया जाता है..औऱ यह सब वर्चस्व की लड़ाई का हथियार है। आप याद करेंगे तो पायेंगे…कि गुरुदत्त, संजीव कुमार, मीना कुमारी जैसे कलाकारों की जिन्दगी एक जैसी ही जुड़ी है।
गुरुदत्त से वहीदा रहमान और मीना कुमारी से धर्मेन्द्र जैसे कलाकारों का कॅरियर बना मगर सफल होने के बाद इनका दूर होना भी एक सच है। इस दौर में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि गुरुदत्त के समकालीन राजकपूर थे जिनके पीछे पृथ्वीराज कपूर थे और आज कपूर खानदान का सिक्का चलता है। क्या प्रतियोगिता की भावना इतनी भयानक है कि आप सामने डटे रहने की जगह प्रतियोगी को हटाने की कोशिश करते रहे हैं। अक्सर यह कहा जाता रहा है कि आत्महत्या करने वाले ने शराब पीनी शुरू कर दी थी मगर वह ऐसा क्यों करने लगा था…इस पर हमने कभी विचार नहीं किया। मनहर उधास, शैलेन्द्र सिंह, सुमन कल्याणपुर जैसे दिग्गज गायक मुम्बई की मायानगर में लम्बा सफर तय क्यों नहीं कर सके..यह हमारे ध्यान में नहीं आया। जब टीवी पर लाइव होकर कोमल नाहटा जैसे फिल्म समीक्षक गायक अभिजीत को उनकी औकात याद दिलाने की बात कहते हैं तो हमें यह समझना चाहिए कि वह किसके भरोसे पर इतनी बड़ी बात कह रहे हैं।
गायक शैलेंद्र सिंह का। शैलेंद्र सिंह मुंबई में ही जन्मे, यहीं पढ़े लिखे और फिर पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला पाने में सफल रहे। पुणे वह गए थे एक्टिंग की ट्रेनिंग करने, लौट के आए तो वह कुछ फिल्मों में एक्टर बने भी। रेखा के भी हीरो बने फिल्म एग्रीमेंट में। लेकिन शैलेंद्र सिंह को दुनिया ने जाना उनकी मखमली आवाज की वजह से। वह आवाज जिसकी कशिश को सबसे पहले पहचाना शो मैन राजकपूर ने। शैलेंद्र सिंह को अपने करियर में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, बप्पी लाहिड़ी और राम लक्ष्मण जैसे गुणी संगीतकारों का खूब साथ मिला। शैलेंद्र सिंह का नाम ऋषि कपूर के बाद मिथुन चक्रवर्ती की आवाज बनकर भी खूब चमका, लेकिन खुद शैलेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके साथ उनके करियर के शीर्ष पर सियासत हो गई। वह नाम तो किसी का नही लेते उदाहरण के लिए जहरीला इंसान का सुपरहिट गीत ओ हंसनी मेरी हंसनी कहां उड़ चली शैलेंद्र सिंह को गाना था, लेकिन उसे किशोर कुमार से गवा लिया गया। यही हाल फिल्म राजा का हुआ। इसके दो गीत जो शैलेंद्र को गाने थे किशोर कुमार से गवा लिए गए और तो और ऋषिकपूर और डिंपल कपाड़िया की फिल्म सागर के गीत शैलेंद्र को गाने थे। इस फिल्म का प्रीमियर शैलेंद्र के ही गाए गीत पास आओ ना से हुआ लेकिन बाकी के गीतों में किशोर की आवाज थी।

परवीन बॉबी

परवीन बॉबी की बात की जाये तो वह किसी भी अपनी समकालीन अभिनेत्रियों से कम नहीं थीं। सुन्दरता के साथ अभिनय भी उनका उम्दा था मगर ऐसा क्यों हुआ कि उन्होंने अमिताभ बच्चन पर सवाल उठाए…महेश भट्ट ने उनको धोखा दिया था। ये सब जानते हैं..वह मानसिक तौर पर बीमार हुईं मगर हमने कभी नहीं सोचा कि यह हुआ कैसे….आखिर कोई तो वजह रही होगी…मगर किसी ने उनकी बात का भरोसा नहीं किया…परवीन बॉबी से लेकर रेखा तक…याद कीजिए कि ये अरुणा ईरानी ही थीं जिन्होंने अमिताभ के साथ काम करना स्वीकार किया…अरुणा ईरानी, नूतन, वहीदा रहमान, परवीन बॉबी से लेकर उनकी पत्नी जया बच्चन और रेखा तक अमिताभ के कॅरियर की सीढ़ियाँ रहीं। आज ये सब परदे से दूर हैं और अमिताभ महानायक हैं…अपने दबदबे के कारण इन्होंने भी बहुत से रहस्य दबाए हैं..क्या वाकई अमिताभ महानायक हैं…. अमिताभ का आवरण भव्य हो सकता है…मगर वे अन्दर से खोखले हैं…वे खुद उत्तर प्रदेश से हैं…मगर आज तक अपने गृह राज्य में एक स्टूडियो तक उनसे नहीं खोला गया… पूछा जाना चाहिए कि उनके समकालीन विनोद खन्ना को क्यों अवसाद में जाना पड़ा…ये मायानगरी है….यहाँ कोई किसी को रास्ता नहीं देता। परवीन बॉबी की मौत तो और भी भयावह तथा दर्दनाक रही। परवीन बॉबी अपने रहस्‍यमयी जीवन के साथ ही परवीन बॉबी की मौत भी कुछ रहस्‍यमयी ही रही। बताया जाता है कि इनके दरवाजे पर तीन दिन के दूध व अखबार पड़े देख उनकी आवासीय सोसायटी के सचिव ने पुलिस को सूचित किया। जिसके बाद पुलिस द्वारा 22 जनवरी 2005 को मुंबई के अपने अपार्टमेंट में उनके मृत पाने की सूचना पूरे भारत को मिली थीअपने समय की बेहद हसीन और हॉट कलाकारों में से एक परबीन बॉबी ने बहुत कम समय में ही बहुत कुछ पा लिय़ा था। अपने समय में उन्होंने कई ब्लाक ब्लास्टर फिल्में की हैं। लैला मजनू और अँखियों के झरोखों से फेम रंजीता को “अँखियों के झरोखों से” के लिए बेस्ट एक्ट्रेस, “पति, पत्नी और वो” तथा 1982 की फिल्म “तेरी कसम” के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के तौर पर फिल्म फेयर पुरस्कारों के लिए नामांकित हुई थीं, लेकिन उन्हें एक बार भी पुरस्कार नहीं मिल पाया। विद्या सिन्हा का नाम भी इस कड़ी में शामिल है।
80 और 90 के दशक में ऋषि कपूर और जीतेन्द्र से लेकर धर्मेन्द्र के जमाने में मिथुन चक्रवर्ती जैसे अभिनेता के लिए जगह बनाना आसान नहीं रहा होगा। यही वह समय है जब बॉलीवुड कपूर, चोपड़ा और उसके बाद खान परिवार के कब्जे में चला गया और इस सूची में आज करण जौहर का नाम सबसे आगे शामिल है। एक बात गौर कीजिए कि प्रतियोगिता होती थी और उपेक्षा भी होती थी मगर इस दौर में आत्महत्या जैसी घटनाएँ न के बराबर हुईं मगर दिल का दौरा पड़ता रहा। बॉलीवुड की हिंसक प्रतियोगिता और भाई – भतीजावाद के कारण हत्या या आत्महत्या (?) का काला दौर दिव्या भारती के साथ शुरू होता है।

श्रीदेवी का विकल्प मानी जाती थीं दिव्या भारती

दिव्या भारती की तुलना श्रीदेवी से की जाती थी। अपने समय की मशहूर अदाकारा रहीं इन दोनों ही अभिनेत्रियों में कई समानताएं थी। जहाँ एक ओर श्रीदेवी भारतीय सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार बनीं तो वही दिव्या भारती ऐसी अभिनेत्री बन गईं थीं जिसके साथ काम करने के लिए डायरेक्टरों की लाइन लगी। दिव्या केवल नौवीं क्लास में थीं जब फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों ने उनसे संपर्क किया और उन्हें फिल्मों में काम करने का ऑफर दिया। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि उनकी शक्ल उस समय की सबसे सफल अभिनेत्री श्रीदेवी से मिलती जुलती थी। खूबसूरती और जबरदस्त एक्टिंग से मन मोह लेने वाली दिव्या अपने ही घर की खिड़की से नीचे गिर गईं। जाँच में सामने आया कि वह शराब के नशे में थी, जिसकी वजह से वे अपने घर की बालकनी से फिसलकर नीचे गिर गयी। महज 3 साल के सिनेमाई करियर में दिव्‍या ने 22 फिल्‍मों में काम किया। उनकी पॉप्‍युलैरिटी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि दिव्‍या की 13 बॉलि‍वुड फिल्‍मों में से 12 हिट या सुपरहिट रहीं। बताया जाता है कि जब दिव्‍या की दुर्घटना में मौत हुई तब उनकी झोली में 20 से ज्‍यादा फिल्‍में थीं। 10 मई 1992 को फिल्म प्रोड्यूसर साजिद नाडियाडवाला से दिव्‍या की शादी हुई। लेकिन इसके 11 महीने बाद ही उनकी मौत की खबर ने कुछ सेकेंड्स के लिए ही सही सिनेमा प्रेमियों की सांसें रोक दी।
सिल्क स्मिता
सिल्क स्मिता पर बेस्ड फिल्म द डर्टी पिक्चर बनी थी, जो सिल्क की जिंदगी के उतार चढ़ाव को बताती है। 80 और 90 के दशक में करोड़ों दिलों पर राज करने वाली सिल्क ए‍क अच्‍छे मुकाम पर थीं वहीं किसी को उम्‍मीद नहीं थी कि वो गरीब घर में पली बढ़ी उसके बाद अपनी संभाल नहीं पाई मगर उपेक्षा और शोषण इनकी जिन्दगी का हिस्सा रहा।

सिल्क स्मिता

जिया खान
जिया खान बॉलीवुड में एक उभरता हुआ चेहरा थी उन्‍होंने सन 2007 में अमिताभ बच्‍चन के साथ फिल्‍म निशब्‍द से अपने फिल्‍मी करियर की शुरूआत की थी लेकिन उन्‍होंने वर्ष 2016 में आत्‍म हत्‍या कर ली। इस अभिनेत्री 25 साल की उम्र में ही गजनी जैसी सुप‍रहिट फिल्‍मों में काम भी किया और 2010 में आयी फिल्‍म हाउसफुल भी सुपरहिट रही। जिया की मौत आज भी एक गुत्थी बनी हुई है। जिया खान ने साल 2013 में आत्महत्या की थी। जिया की लाश उनके मुंबई के जुहू स्थित घर में मिली थीं। जिया खान की मौत के एक हफ्ते बाद उनकी बहन कविता को छह पन्नों का एक लेटर मिला। इस लेटर में जिया की हेंडराइटिंग साफ नजर आ रही थी। हालांकि, इस लेटर में किसी का नाम नहीं लिखा था। लेकिन, ये जिया के बॉयफ्रेंड सूरज पंचोली की तरफ इशारा कर रहा था और सलमान इनको ही प्रोमोट कर रहे हैं।
प्रत्युषा बनर्जी, सिल्क स्मिता, मनप्रीत ग्रेवाल, कुशल पंजाबी…ये सब गौर कीजिए कि सब उभरते हुए सितारे थे…प्रतिभा की कमी नहीं थी और लोकप्रिय भी थे…मेरी समझ में नहीं आता कि ये सब के सब अवसाद में कैसे गये…काम क्यों नहीं मिल रहा था…वह कौन था या है जो रास्ते में इनके अड़चनें डाले जा रहा था या है। आखिर सुशांत सिंह राजपूत जैसे लोकप्रिय सितारे क्यों लिखना पड़ा कि उनके प्रशंसक उनकी फिल्में देखें वरना उनको इंडस्ट्री से बाहर कर दिया जाएगा…वह जिस ऊँचाई पर थे और उनमें जितनी प्रतिभा थी…वह किसी भी खान और कपूर या स्टार किड्स को पीछे छोड़ सकते थे…बॉलीवुड आपको अपनाता है मगर तब तक अपनाता है, जब तक आप उसका अहसान मानें, उनके इशारों पर नाचें और सबसे बड़ी बात पीछे ही रहें…आगे न निकलें…।

जिया खान
 इस आत्महत्या ने बॉलीवुड के पावर कैंप के निर्मम तरीकों पर चर्चा छेड़ दी है। खास कर उन युवाओं के लिए जो पूरे भारत से बाहरी लोग के तौर पर अपने सपनों को साकार करने के लिए इस उद्योग में आते हैं और जिनका इस जगत में कोई गॉडफादर नहीं होता, उनके साथ कैसा बर्ताव होता है। फिल्म और टेलीविजन उद्योग की यह आम बात है कि जब तक आप उद्योग के किसी लोकप्रिय शख्स की संतान नहीं हैं, तब तक उन्हें आपकी कोई परवाह नहीं है और यह कतई नई बात नहीं है। यह पिछले कई दशकों से चला आ रहा है। इस पर चर्चा तब शुरू हुई, जब अभिनेत्री कंगना रनौत ने कुछ समय पहले कॉफी विद करण शो, जिसके मेजबान खुद करण जौहर हैं, उनको भाई-भतीजावाद का गॉडफादर कहा था, जो इंडस्ट्री में आने वाले स्टार किड्स की मदद करते हैं और उनके शुरुआती करियर बनाने में मदद करते हैं।

इस मामले में सुशांत और उनकी प्रतिभा दोनों असाधारण थे। वह इंजीनियरिंग में बेहतर करियर बनाने के लिए बिहार से आए थे, फिर बॉलीवुड के सितारों की सूची में तेजी से प्रवेश करने से पहले उन्होंने बैकअप डांसर और टीवी पर आने के लिए संघर्ष किया। उनका बॉलीवुड का छोटा छह साल का करियर साल 2013 में शहरी मल्टीप्लेक्स हिट फिल्म काई पो चे से शुरू होकर, उनकी अंतिम रिलीज फिल्म, जो पिछले साल बम्पर हिट हुई थी छिछोरे थी। इस फिल्म में उन्होंने साबित कर दिया कि वह असाधारण अभिनेता हैं। तो फिर अभी सोशल मीडिया पर यह खबर क्यों वायरल हो रही है कि बॉलीवुड के सभी शक्तिशाली बैनरों ने उनका बहिष्कार कर दिया था?

इस सिद्धांत को राजनेता संजय निरुपम के शब्दों से मजबूती मिलती है, जिन्होंने अपने ट्वीट में कहा कि सुशांत ने छिछोरे फिल्म की सफलता के बाद सात फिल्में खो दीं थी, जिसे वे साइन कर चुके थे। निरुपम ने पोस्ट किया, उन्होंने सिर्फ छह महीने में कई फिल्मों को खो दिया। क्यों? फिल्म उद्योग की निर्ममता बहुत अलग स्तर पर काम करती है और उस निर्ममता ने एक प्रतिभाशाली व्यक्ति की जान ले ली। आखिर क्यों उन्होंने इन प्रोजेक्ट्स को खो दिया? बीते कुछ सालों में सुनी सुनाई बातों के अनुसार, सुशांत को कई बड़े बैनर की फिल्मों से रिप्लेस कर दिया गया था, जिसमें संजय भंसाली की गोलियों की रासलीला राम-लीला और आदित्य चोपड़ा की बेफिक्रे संयोग से दोनों फिल्मों में सुशांत को हटा कर रणवीर सिंह को लिया गया, जो कथित तौर पर सेल्फमेड स्टार हैं, लेकिन अनिल कपूर के घराने से ताल्लुक रखते हैं। वह सोनम कपूर के रिश्ते में भाई लगते हैं।

कुशल पंजाबी

क्या बॉलीवुड का विकल्प नहीं हो सकता?
मेरा सीधा सवाल यह है कि क्या हम अपने घरों की छतों को सूना करके अपने बच्चों को अवसाद में घिरने के लिए और इस राजनीति के भंवर में छोड़ने जा रहे हैं? क्या हमें हार मान लेनी चाहिए? आखिर क्यों हम बॉलीवुड का विकल्प नहीं खोज सकते और यूँ कहें कि हम खुद क्यों नहीं बन सकते। प्रतिभाओं की कमी नहीं है हमारे पास और हर घटिया प्रचार का जवाब भी दिया जा सकता है। सुशांत की मौत ने सवाल ही नहीं छोड़े बल्कि झकझोर कर सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कब तक यह घटिया राजनीति चलेगी।
क्या जरूरी है की सिर्फ मुम्बई ही हिन्दी फिल्मों का गढ़ हो?
आप कहेंगे यूटोपिया है, मैं कहती हूँ सपना है। हमारे पास प्रतिभा है, हुनर है क्या पटना और राँची जैसे शहरों में स्टूडियो नहीं बनाये जा सकते, इससे क्या भोजपुरी अश्लीलता के भंवर से नहीं छुड़ाई जा सकेगी। क्यों हर बात के लिये दिल्ली और मुम्बई का चेहरा देखा जाये। ये क्या अवसर में नहीं बदला जा सकता। अगर यू पी, बिहार और झारखण्ड के साथ बंगाल व पूरा उत्तर – पूर्व मिल जाए तो हम पूरे भारत को बदल सकते हैं। कमजोरी नहीं, अपनी ताकत देखने का समय है। मत भूलिए मुंबई और दिल्ली ने ये जगह कोलकाता से ली है, कोलकाता की बांग्ला फिल्में बॉलीवुड का जीवन बनी हैं। ये टाकीज, फिल्म और संगीत का गढ है मगर हम हिन्दी फिल्मों के विकास की उम्मीद बंगाल से न तो कर सकते हैं और न ही जायज है। हिन्दी फिल्में देखना, और हिन्दी को अपना लेना, दो अलग बातें हैं मगर बिहार, यू पी और झारखण्ड की तो ये समान भाषा है। अगर फिल्मों का विकल्प वेब सीरीज बन सकती है तो बॉलीउड का विकल्प भी सम्भव है, ये बस जिद, जिगर, मेहनत और जज्बे के साथ सरकारी सहयोग की बात है।
यही हमारी प्रतिभाओं का सम्मान होगा।
(इनपुट इंटरनेट से)
(https://hindi.sakshi.com/editors-picks/2019/10/04/shailendra-singh-birthday-special)

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