नारायण कुमार, रतनी फरीदपुर (जहानाबाद)। बिहार में एक तरफ जल जीवन हरियाली योजना के तहत विलुप्त हो चुके जल स्रोतों को ढूंढने और उसके जीर्णोद्धार करने का प्रयास चल रहा है, वहीं कल-कल कर बहने वाली एक नदी को कुर्बान कर दिया गया।
इलाके के किसानों के चेहरे पर मुस्कान लाने वाली बलदहिया नदी पिछले दो साल से बूंद बूंद पानी को तरस रही है। यह नदी गया जिले की सीमा से आगे बहते हुए प्रखंड क्षेत्र के भूमि को सिंचित कर सदर प्रखंड के खेतों को पानी देते हुए पटना जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में पुनपुन में मिलती है।
इलाके के किसान बताते हैं कि इस नदी से हजारों एकड़ भूमि वर्षों से सिंचित होती थी, लेकिन पिछले दो साल से बरसात में भी यह प्यासी रह जा रही है। दरअसल, गया जिले के टेकारी थाना अंतर्गत फेनगी के समीप बांध बनाया गया है। इस कारण इस नदी को बांध दिया गया है। बांध इतना ऊंचा है कि बाढ़ आने के बाद ही इस नदी तक पानी पहुंच सकेगा। परिणामस्वरूप दो सालों से यह नदी प्यासी है।
नदी में पानी नहीं आने से किसानों की फसल सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है। इलाके का भूजल स्तर भी नीचे जा रहा है। यदि निकट भविष्य में इस नदी के साथ न्याय नहीं हुआ तो इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और हजारों एकड़ भूमि बंजर हो जाएगी। सैकड़ों गांवों में भूजल स्तर पाताल में चला जाएगा। इलाके के किसान नदी की दुर्दशा देख परेशान हैं।
बलदहिया नदी के नाम पर है सर्किट हाउस का एक कमरा
जहानाबाद सर्किट हाउस में कमरों के नाम नदियों के नाम पर रखे गये हैं। इनमें एक कमरा बलदहिया के नाम से भी है। ताकि अतिथिशाला में ठहरने वाले लोगों को यहां के जल स्रोतों की जानकारी मिल सके। यह पूरी पहल जिला प्रशासन द्वारा की गयी है जो निश्चित ही जल स्रोतों के प्रति लोगों को सजग करने की अच्छी पहल है। लेकिन बलदहिया के नेम प्लेट को देख नदी की दुर्दशा की तस्वीर भी जेहन में ताजा हो जा रही है। जिस नदी का नाम जिला प्रशासन अपने अतिथियों के समक्ष गर्व से रखता है। उस नदी को पानी के बूंद- बूंद के लिए तरसना पड़ रहा है। ऐसा न हो कि नेम प्लेट तक ही इस नदी का नाम सीमित रहे और धरातल से यह विलुप्त हो जाए।
(साभार – दैनिक जागरण)