प्रेमचन्द

विवेक कुमार साव
ठाकुर का कुँआ

जो अब
कदाचित्
सूख चुका है
क्योंकि अब कोई नहीं
जाना चाहता
ठाकुर के कुएं के पास,
आज प्रेमचन्द होते
तो शायद लिखते
कहानियाँ नलों पर,
जिनकी पाइपें जुड़ी होती हैं
एक ही किसी बड़ी टंकी से।
और इस विमर्श के दौर में
लोग उन्हें जब
इससे निकाल कहते
स्वकेन्द्रित अनुभव वाला रचनाकार।

प्रेमचन्द भी तब ज़ार-ज़ार रोते।

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