2020 का अप्रैल महीना इतिहास में अपनी भयावहता के लिए दर्ज है…महीने की शुरुआत ही लॉकडाउन के साथ हुई और खत्म भी इसी के साथ हुआ। अगर इन्सानों के हित को ध्यान में रखकर देखा जाये…तो यह डरा देने वाला साल है। अप्रैल साहित्य और संस्कृति के साथ सिनेमा और खेल की दुनिया से काफी कुछ छीन गया। कोलकाता में रंगकर्मी उषा गांगुली और कवि नवल का जाना शहर को हमेशा खलता रहेगा। उषा गांगुली के जाने से हिन्दी रंगमंच को गहरा झटका लगा तो इरफान खान और ऋषि कपूर के जाने में हिन्दी सिनेमा में रिक्तता आ गयी…इसे भरना इतना आसान नहीं होगा। नजरिया बदलकर देखें तो यह साल और महीना बहुत कुछ सिखा गया…रामायण और महाभारत का प्रसारण दोबारा हुआ तो आज की पीढ़ी अपने इतिहास से मिली…बच्चों में जिज्ञासा बढ़ी और आज पिस्तौल की जगह आप उनको सुदर्शन चक्र, गदा और तीर – धनुष के साथ देख रहे हैं…टीवी ने बच्चों को संस्कृत के मंत्र सिखा दिये। पाकशाला प्रयोगशाला बन गयी है और लोग बजट के बीच रहना सीख रहे हैं। हम यह नहीं कह सकते कि लॉकडाउन के बाद ये चीजें कहाँ तक ऐसे ही रहेंगी मगर कोरोना ने मनुष्य को यह तो बता दिया है कि उसकी शक्ति असीम नहीं है…एक समय और एक सीमा के बाद वह बिल्कुल बेबस और लाचार हो जाता है। विकास का दम्भ भरने वाले देशों की हालत तो सबसे ज्यादा खराब है। वे लोग जो कृत्रिम जीवन शैली में अपनी जड़ों को भूलते जा रहे थे..उनके लिए तो यह तमाचा है। आज प्रकृति खुलकर साँस ले रही है.,,,नदियाँ साफ हो रही हैं…ओजोन का छिद्र भर चुका है…समुद्र में मछलिया और शहरों से हिमालय फिर दिखायी देने लगे हैं…हम मानते हैं कि विकास का होना जरूरी है पर क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इस यात्रा में प्रकृति हमारी सहचर हो…विकास का मॉडल ऐसा हो जो पृथ्वी को पर्यावरण को सुरक्षित रखे…हमारी जिन्दगी बहुत बदलने जा रही है…सामाजिक दूरी, मास्क और दस्ताने हमारी जिन्दगी का हिस्सा बनने जा रहे हैं…पर इतने से भी अगर पूरा विश्व स्वस्थ और सुरक्षित रहे तो यह कीमत कम है बहुत कम…आप भी स्वस्थ रहिए…सुरक्षित रहिए और सचेत रहिए..।