Thursday, February 6, 2025
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2000 साल पुराना है परम्परा, फैशन की खूबसूरत पहचान बनारसी साड़ी का इतिहास

उत्तर प्रदेश का प्रत्‍येक शहर अपने अंदर एक इतिहास समेटे हुए हैं, जिसमें से एक बनारस भी है। बनारस भगवान शिव की नगरी के नाम से पूरे विश्व में विख्यात है. तो वहीं इस शहर का खान-पान, संस्‍कृत‍ि व जीवनशैली दुन‍ियाभर के लोगों को अपनी ओर आकर्ष‍ित करती है। वहीं यहां न‍निर्म‍ित होने वाली साड़ी प्रत्‍येक भारतीय पर‍िवार का सद‍ियों से ह‍िस्‍सा रही है. ज‍िसे बनारसी साड़ी कहा जाता है. कुल म‍िलाकर बनारसी साड़ी एक बेशकीमती नगीना है. आज भी यह साड़ी जब क‍किसी दुल्हन के तन पर सजती है तो उसके लिए यह सौभाग्य का प्रतीक बन जाती है. देश के कई ह‍िस्‍सों में आज भी दुल्हन के लिए बनारसी साड़ी परंपरागत रूप से खरीदी जाती है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। जानकारों का मानना है क‍ि इस साड़ी का इतिहास 2000 साल पुराना है।
जातक कथाओं में मिलता है बनारसी साड़ी का जिक्र –महाकाव्य महाभारत और कुछ बौद्ध धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख किया गया है। प्राचीन लोग राजसीपन का प्रतिनिधित्व करने के लिए इन खूबसूरत साड़ियों को पहनते थे। उन पुराने दिनों में, साड़ियों को असली सोने और चांदी के धागों का उपयोग करके बनाया जाता था और इसे बनाने में एक साल तक का समय लग सकता था। हालाँकि इन साड़ियों को भारत में बहुत पुराने समय से पसंद किया जाता रहा है, लेकिन मुगल सम्राट अकबर ने ही बनारसी सिल्क साड़ियों को और अधिक प्रसिद्ध बनाया। बनारसी साड़ी का सीधा मतलब स‍िल्‍क (रेशम) के कपड़े से है। अभी तक यह माना जाता है क‍ि चीन में सबसे पहले स‍िल्‍क ईजाद हुआ और लंबे समय तक चीन ने इसे गुप्‍त रखा, लेक‍िन बनारसी साड़ी का जिक्र 300 ईसा पूर्व जातक कथाओं में मिलता है। इन कथाओं में गंगा किनारे कपड़ों की खूब खरीद-फरोख्त होने का जिक्र है. वहीं इनमें रेशम और जरी की साड़ियों का वर्णन मिलता है। ऐसा माना जाता है कि ये बनारसी साड़ी ही है जबक‍ि ऋग वेद में ‘हिरण्य’ नाम का जिक्र है ज‍िसे को रेशम पर हुई जरी का काम माना जाता है। जानकार कहते हैं क‍ि यह बनारसी साड़ी की एक खासियत होती है। भारी जरी काम के लिए रेशम सबसे मुफीद होता है। वहीं इतिहासकार राल्फ पिच ने बनारस को सूती वस्त्र उद्योग के एक संपन्न केंद्र के रूप में वर्णित किया है. बनारस के जरी वस्त्रों का सबसे स्‍पष्‍ट उल्‍लेख मुगल काल के 14वीं शताब्दी के आस-पास का मिलता है जिसमें रेशम के ऊपर सोने और चांदी के धागे का उपयोग करके इन साड़ियों को बनाया जाता था।
बनारसी साड़ी कड़ुआ और फेकुआ – बनारसी साड़ी दो तरह की होती है कड़ुआ और फेकुआ। जब साड़ी को ढरकी पर बुना जाता है तो उसी समय दूसरा कारीगर सिरकी से डिजाइन को बनाता है। इस तरह की कारीगरी में दो लोगों की आवश्यकता होती है। एक साड़ी की बिनाई करता है तो दूसरा रेशम के ऊपर जरी के धागों से कढ़ाई करता है। इन साड़ियों पर कैरी की डिजाइन के साथ फूल पत्तियों की डिजाइन भी बनाई जाती है। कड़ुआ साड़ी को तैयार करने में कम से कम 2 महीने का समय लगता है. इसी वजह से इन साड़ियों की कीमत सबसे ज्यादा होती है जबकि फेकुआ साड़ी को बनाने में कड़ुआ जितनी मेहनत नहीं लगती है। आज बनारस के बजरडीहा इलाके में कड़ुआ बनारसी साड़ी बड़े पैमाने पर बनाई जाती है। वहीं वर्तमान में बनारसी साड़ी को सिल्क, कोरा, जार्जेट, शातिर पर बनाया जाता है. इनमें सबसे ज्यादा मशहूर सिल्क है।
बनारसी साड़ी को अकबर ने दिलाई बड़ी पहचान – मुगल बादशाह अकबर के समय बनारस में बनने वाली इस साड़ी को सबसे ज्यादा तवज्जो मिली। मुगल बादशाह बनारसी सिल्क और जरी के काम को बहुत पसंद करते थे। वह अपनी बेगमों के लिए यह साड़ियां तैयार करवाते थे. इन साड़ियों पर सोने-चांदी की जरी का काम भी होता था। वहीं वह इन साड़‍ियों का प्रयोग उपहार के तौर पर भी करते थे। वहीं बनारस में बनने वाली बनारसी साड़ी पर सबसे ज्यादा मुगल बादशाहों की छाप देखने को मिलती है। इस साड़ी का सबसे ज्यादा विकास अकबर और जहांगीर के शासनकाल में हुआ। उस समय इन साड़ियों पर इस्लामिक डिजाइन की फूल पत्तियां बनाई जाती थवहीं पर जाली का काम भी होता था, जो मुगलों का ही प्रभाव है. वर्तमान में अब बनारसी साड़ी पर हिंदू देवी देवताओं की डिजाइन भी देखने को मिलती है ।
बनारसी साड़ी का डिजाइन बनाना आसान नहीं – बनारसी साड़ी की डिजाइन को बनाना कोई आसान काम नहीं है. बल्कि यह एक सधा हुआ ज्ञान है। साड़ियों पर डिजाइन बनाने से पहले उसे ग्राफ पेपर पर बनाया जाता है फिर नक्शा पत्रा पर उसे उभारा जाता है। वहीं इनकी डिजाइन बनाना एक सधा हुआ विज्ञान है, जिसमें बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है. क्योंकि अगर साड़ी का डिजाइन बिगड़ जाए तो उस पर खर्च होने वाले समय की बर्बादी भी होती है। सबसे पहले, सोने के मिश्र धातु के टुकड़ों से धातु की पट्टियाँ निकाली जाती हैं जिन्हें मशीनों से चपटा किया जाता है। फिर उनकी चमक बढ़ाने के लिए उन्हें पॉलिशर से गुज़ारा जाता है। साड़ी पर लगाए जाने वाले डिजाइन पहले कागज पर बनाए जाते हैं, जिनमें छिद्र ब्रेल लिपि की याद दिलाते हैं। एक साड़ी के लिए सैकड़ों पैटर्न बनाए जाते हैं, या तो फूलों की आकृति के रूप में या किसी अन्य पैटर्न के रूप में। साड़ियों को तैयार होने में 15 दिन से लेकर एक महीने तक का समय लग सकता है। कुछ मामलों में, इसमें छह महीने तक का समय लग सकता है। बनारसी साड़ियाँ असंख्य रंगों और खूबसूरत पैटर्न में आती हैं।
हाथ से बनी हुई बनारसी साड़ी की अलग पहचान – हाथ से बनने वाली बनारसी साड़ी पर डिजाइन और जरी का काम बहुत सधे हुए कारीगरों द्वारा किया जाता है। वहीं इस काम को करने में काफी समय भी लगता है. एक बनारसी साड़ी पर कम से कम 2 महीने तक समय खर्च होता है. वहीं कुछ साड़ियों पर तो महीनों का भी समय लग जाता है जिसके कारण इन साड़ियों की कीमत काफी ज्यादा होती है. जितनी अच्छी डिजाइन बनारसी साड़ी पर होती है, उसे बनाने में उतने ही महंगे कारीगर का इस्तेमाल होता है। इससे उस साड़ी की कीमत तय की जाती है. बनारसी साड़ी पर सोने-चांदी के जरी का इस्तेमाल किया जाए तो इनकी कीमत लाखों में पहुंचती है।
बनारसी में मोटिफ के प्रकार
बूटी – बनारसी साड़ी – बूटी छोटे-छोटे तस्वीरों की आकृति लिए हुए होता है। इसके अलग-अलग पैटर्न दो या तीन रंगो के धागे की सहायता से बनाये जाते हैं और यदि पाँच रंग के धागों का प्रयोग किया जाता है तो इसे पचरंगा (जामेवार) कहा जाता है। यह बनारसी साड़ी के लिए प्रमुख आवश्यक तथा महत्वपूर्ण डिजाइनों में से एक है। इससे साड़ी की जमीन या मुख्य भाग को सुसज्जित किया जाता है। पहले रंग को ‘हुनर का रंग ‘ कहा जाता है। जो सामान्यतः गोल्ड या सिल्वर धागे को एक एक्सट्रा भरनी से बनाया जाता है जिसके लिए सिरकी (बौबिन) का प्रयोग किया जाता है। हालाँकि आजकल इसके लिए रेशमी धागों का भी प्रयोग किया जाता है जिसे मीना कहा जाता है जो रेशमी धागे से ही बनता है। सामान्यतः मीने का रंग हुनर के रंग का होने चाहिए।
बूटा – जब बूटी की आकृति को बड़ा कर दिया जाता है तो इस बढ़ी हुई आकृति को बूटा कहा जाता है। छोटे बड़े पेड़-पौधे जिसके साथ छोटी-छोटी पत्तियाँ तथा फूल लगे हों इसी आकृति को बूटे से उभारा जाता है। यह पेड़ पौधे भी हो सकते हैं और कुछ फूल भी हो सकते हैं। गोल्ड, सिल्वर या रेशमी धागे या इनके मिश्रण से बूटा काढ़ा जाता है। रंगों का चयन डिज़ाइन तथा आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। बूटा साड़ी के बॉर्डर, पल्लू तथा आंचल में काढ़ा जाता है जबकि ब्रोकेड के आंगन (पोत) में इसे काढ़ा जाता है। कभी-कभी साड़ी के किनारे में एक खास प्रकार के बूटे को काढ़ा जाता है, जिसे यहाँ के लोग अपनी भाषा में कोनिया कहते हैं।
कोनिया – पट्टी, बेल, कोनिया, शिकारगाह, जंगला – जब एक खास प्रकार की (आकृति) के बूटे को बनारसी वस्त्रों के कोने में काढ़ा जाता है तो उसे कोनिया कहते हैं। डिज़ाइन आकृति को इस तरह से बनाया जाता है जिससे वे कोने के आकार में आसानी से आ सकें तथा बूटे से वस्त्र और अच्छी तरह से आलंकृत हो सके। जिन वस्त्रों में स्वर्ण तथा चाँदी के धागों का प्रयोग किया जाता है उन्हीं में कोनिया को बनाया (काढ़ा) जाता है। सामान्यतः कोनिया काढ़ने के रिए रेशमी धागों का प्रयोग नहीं किया जाता है क्योंकि रेशमी धागों से शुद्ध फूल पत्तियों का डिजाइन सही ढ़ंग से नहीं उभर पाता। पल्लु डिज़ाइन के बाद, कोने से कोनिया बनाया जाता है जो कि प्राय: आम के आकार का रहता है जिसे बनाना बहुत कठिन होता है क्योंकि एक साथ इसमें तीन जालों से बुनाई की जाती है। यह एक पारम्परिक कला है।
बेल – यह एक आरी या धारीदार फूल पत्तियों या ज्यामितीय ढंग से सजाए गए डिज़ाइन होते हैं। इन्हें क्षैतिज, आडे या टेड़े मेड़े तरीके से बताया जाता है, जिससे एक भाग को दूसरे भाग से अलग किया जा सके। कभी-कभी बूटियों को इस तरह से सजाया जाता है कि वे पट्टी का रूप ले लें। भिन्न-भिन्न जगहों पर अलग-अलग तरीके के बेल बूटे बनाए जाते हैं। बेल साडी के किनारे पर लगती है और चार अंगुल में नापी जाती है। इससे घुंघट का नाप तय होता है। बेल में फूल-पत्तियों के अतिरिक्त विभिन्न पशु-पक्षियों व मानव आकृतियों के मोटिफ भी बनाए जाते हैं।
जाल और जंगला – जाल, जैसे नाम से ही स्पष्ट होता है जाल के आकृति लिए हुए होते हैं। जाल एक प्रकार का पैटर्न/बंदिश है, जिसके भीतर बूटी बनाई जाती है तथा इसे जाल- जंगला कहते हैं। जंगला डिज़ाइन प्राकृतिक तत्वों से काफी प्रभावित है। जंगला कतान और ताना का प्लेन वस्त्र है। ताना-बाना कतान का रहता है और डिज़ाइन के लिए सुनहरी या चाँदी की ज़री का प्रयोग होता है जिसमें समस्त फूल, पत्ते, जानवर, पक्षी इत्यादि बने होते हैं। जंगला, जाल से काफी मिलता जुलता होता है। यदि जंगले में मीनाकारी करनी हो तो अलग अलग रंगों के रेशम के धागों का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार बेल जंगला भी बनाया जाता है।
झालर -बॉर्डर के तुरंत बाद जहाँ कपड़े का मुख्य भाग जिसे अंगना कहा जाता है की शुरुआत होती है वहाँ एक खास डिज़ाइन वस्त्र को और अधिक अलंकृत करने के लिए दिया जाता है, जिसे झालर कहा जाता है। सामान्यतः यह बॉर्डर के डिज़ाइन से रंग तथा मैटीरियल में मिलता होता है। झालर में तोता, मोर, पान, कैरी, तिन पतिया, पाँच पतिया मोटिव डिज़ाइन बनाए जाते हैं। झालर बेल के आखिर में साड़ियों के अलावा जरदोजी का काम भी यहाँ चालू हो चुका है। ये बनारस की अपनी अलग परम्परा नहीं है परन्तु अब लोगों ने बनारसी साड़ी में भी जरदोजी का काम करना प्रारम्भ कर दिया है।
बनारसी साड़ी के प्रकार
बनारसी चिनिया सिल्क-यह एक प्रकार की बनारस साड़ी है जो चिनिया नामक रेशम के धागे से बनाई जाती है। इसे आप कम बजट में भी खरीद सकते है। तो आपको एक बनारस चिनिया सिल्क साड़ी तो जरूर खरीद लेनी चाहिए।
बनारसी सूती साड़ी-बनारसी सूती साड़ी देखने में बेहद खूबसूरत होती है। यह संयोजन बनारसी कॉटन साड़ियों को कालातीत और आरामदायक बनाता है। यह उन लोगों के लिए बिल्कुल सही है जो रोजमर्रा में तरह तरह की साड़ियां पहनना पसंद करती हैं।
बनारसी जूट सिल्क साड़ियां-बनारसी जूट सिल्क साड़ियां टिकाऊ जूट के साथ उच्च गुणवत्ता वाले रेशम के संयोजन से बनाई जाती हैं। ये दूर से ही देखने में खूबसूरत नजर आती है। इस साड़ी को पहनकर आप कहीं भी और कभी भी जा सकती हैं।
शिफॉन बनारसी सिल्क साड़ियां-शिफॉन बनारसी सिल्क साड़ियां शिफॉन कपड़े में बनी खास प्रकार की बनारसी साड़ी है। ये गर्मियों के लिए बेस्ट होती है और बहुत आरामदेह होती है। आप इसे कभी भी पहन सकती हैं। इसे पहनकर आपको बहुत आराम महसूस होगा।
बनारसी कातन सिल्क-बनारसी कातन सिल्क की खास बात ये है कि ये बेहद हल्की होती है और इसे पहनकर आपको अलग ही महसूस होगा। यह एक विशेष बुनाई तकनीक से बनी होती है जिसमें रेशम की ताकत को कपास की कोमलता के साथ मिश्रित होती है।
बनारसी कुबेर सिल्क-बनारसी कुबेर सिल्क साड़ियां बढ़िया रेशम सामग्री से बनी होती हैं। यह नरम और हल्का है और इसमें बहने वाला गुण है जो इसकी चमकदार उपस्थिति को काफी लोकप्रिय बनाता है। इसे आप शादी के मौके पर भी पहन सकती हैं।
बनारसी जॉर्जेट-इस प्रकार की साड़ी शुद्ध कलात्मकता वाली होती है। बनारसी जॉर्जेट साड़ियों में एक जटिल इंटरवॉवन डिजाइन तकनीक इस्तेमाल होती है। कपड़े का डिजाइन पारंपरिक रूप से हमारी जटिल भारतीय विरासत को प्रदर्शित करती है। ज़री का काम और पत्थर का काम कुशल बुनकरों और कारीगरों द्वारा तैयार किया जाता है जिसे कटवर्क तकनीक कहा जाता है।
बनारसी मॉडल सिल्क- मॉडल फैब्रिक के आराम के साथ बनारसी के जटिल डिजाइनों का संयोजन, बनारसी मॉडल रेशम साड़ियाँ पारंपरिक बनारसी साड़ियों के लिए एक नरम और किफायती विकल्प प्रदान करती हैं, जिन्हें आप रोज पहन सकती हैं।
बनारसी साड़ी की कायापलट – नवाचार के परिणामस्वरूप बनारसी कपड़ों का उपयोग सजावट के लिए तेजी से किया जा रहा है। बनारसी कपड़ों की विविधता में वृद्धि हुई है। बनारसी ब्रोकेड लंबे समय से दुल्हन के कपड़ों से जुड़ा हुआ है, लेकिन अब इसका उपयोग सजावट, पोटली-गिफ्टिंग बैग, पर्दे, असबाब, ब्रोकेड आभूषण, सीट कुशन कवर, टेबल रनर, पर्दे, छत, उपहार लपेटने और शादी के कार्ड के लिए भी किया जा सकता है। चूंकि शिल्प की मूल आत्मा ही उसकी वास्तविक पहचान है, इसलिए यह वही रहेगा लेकिन शैली और प्रस्तुति के तरीके में इसे विकसित करना होगा। रंगों को तटस्थ रंगों में संशोधित किया जाता है। बनारसी रेशमी कपड़े में विभिन्न प्रकार के सामान बनाने की बहुत गुंजाइश है। उनमें से एक स्कार्फ है, लेकिन इसे इस तरह से डिज़ाइन और संशोधित किया जाना चाहिए कि विदेशी बाज़ार में इसे स्वीकार किया जा सके।
बनारसी साड़ी को मिल चुका है जी-आई टैग – बनारसी साड़ी की नकल करके चीन मशीनों के द्वारा सस्ती साड़ियां तैयार करने लगा, जिससे यहां के कारीगरों को नुकसान होने लगा। वही अब इन साड़ियों को जीआई टैग मिल चुका है। एक खास इलाके में बनी हुई साड़ियों को ही बनारसी साड़ी कहा जा सकेगा। बनारस, मिर्जापुर, चंदौली, जौनपुर और आजमगढ़ के जनपदों में बनने वाली साड़ी ही बनारसी कही जाएंगी।
बनारसी सिल्‍क की पहचान कैसे करें
बनारसी सिल्क साड़ी की पहचान करना भी एक कला है। यहं कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं:
असली बनारसी सिल्क साड़ी बेहद मुलायम होती है और इसे छूने पर मखमली सा एहसास होता है।
असली बनारसी साड़ी को पलटने पर इसकी चमक और रंग एक समान होते हैं।
असली सिल्क साड़ी वजन में हल्की होती है, जबकि नकली साड़ियां भारी हो सकती हैं।
बनारसी सिल्‍क साड़ी का रख-रखाव
बनारसी सिल्क साड़ी का उचित रख-रखाव आवश्यक है ताकि उसकी सुंदरता और चमक बनी रहे। हम आपको कुछ महत्‍वपूर्ण सुझाव देंगे-
साड़ी को हाथ से धोना चाहिए। इसके लिए हल्के डिटर्जेंट का उपयोग करें और ठंडे पानी से धोएं।
साड़ी को सीधे धूप में न सुखाएं। इसे छाया में सुखाना बेहतर होता है।
साड़ी को सूती कपड़े में लपेटकर रखें। इसे हमेशा ड्राई प्लेस पर रखें, ताकि नमी न आए। यदि नमी में रखेंगी तो कीड़े लग सकते हैं और साड़ी में छेद होने लगेंगे।
बनारसी सिल्क साड़ी का भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान है। इसे खास मौकों, जैसे शादी, त्योहार, और पारिवारिक समारोहों में पहना जाता है। इसे एक अद्भुत धरोहर कहना गलत नहीं होगा।

सबसे अलग और सुन्दर दिखना सबकी कोशिश है मगर बजट का ख्याल रखना भी तो जरूरी है। अगर हम कहें कि आपकी बनारसी या बनारसी के लुक वाली कोई भी साड़ी आपको सुपर फैशनिस्ता बना सकती है तो विश्वास करिए कि ऐसा हो सकता है।

जरा सी सूझबूझ से आप अनोखे परिधान बनवा सकते हैं और बगैर बहुत अधिक खर्च के तैयार हो सकती हैं तो जरा ध्यान दीजिए इधर –
लहंगा और चोली – पुरानी बनारसी साड़ी को लहंगा और चोली में बदलें। लहंगे के लिए साड़ी के पल्लू का उपयोग करें और चोली के लिए साड़ी के अन्य हिस्सों का उपयोग करें।
अनारकली सूट – पुरानी बनारसी साड़ी को अनारकली सूट में बदलें। साड़ी के पल्लू का उपयोग सूट के लिए करें और अन्य हिस्सों का उपयोग दुपट्टे के लिए करें।
साड़ी को स्कार्फ और शॉल में बदलें – पुरानी बनारसी साड़ी को स्कार्फ और शॉल में बदलें। साड़ी के पल्लू का उपयोग स्कार्फ के लिए करें और अन्य हिस्सों का उपयोग शॉल के लिए करें।
बैग या क्लच – पुरानी बनारसी साड़ी के फैब्रिक से बैग या क्लच बनाएं। साड़ी के पल्लू का उपयोग बैग के लिए करें और अन्य हिस्सों का उपयोग क्लच के लिए करें।
जैकेट, कुरता या जोधपुरी ट्राउजर – सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी बनारसी रिक्रेएशन को आजमा सकते हैं। सिल्क कुरते पर बनारसी जैकेट या जोधपुरी जैकेट और इसके साथ ही अगर आप कुछ और जोड़ना है तो पुरानी बनारसी या बनारसी दुप्पटे से पगड़ी बनाइए। शानदार दिखेंगे।

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।

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