अयोध्या: हजारों लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके समाजसेवी मोहम्मद शरीफ को निस्वार्थ सेवा के लिए राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। बुजुर्ग समाजसेवी मोहम्मद शरीफ को लावारिस लाशों के मसीहा के तौर पर जाना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने पिछले 25 वर्षों में 25,000 से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया है। 30 वर्ष पूर्व युवा पुत्र की मार्ग दुर्घटना से मौत और लावारिस के तौर पर उसके अंतिम संस्कार ने शरीफ पर ऐसा असर डाला कि वो किसी भी लावारिस शव के वारिस बन कर सामने आए।
गौरतलब है कि मोहम्मद शरीफ को पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित होने के लिए साल 2020 में पत्र मिला था लेकिन कोरोना महामारी के कारण नहीं मिल सका। उनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है. साथ ही स्वास्थ्य खराब होने की वजह से परिवार परेशान रहता है। बीते कुछ महीनों पहले उनकी हालात बेहद खराब हो गई थी, परिजनों के पास उनके इलाज कराने तक के पैसे हीं बचे थे. घरवालों पर अलग अलग तरह के कर्जें हैं। उनका बेटा गाड़ी चलाकर परिवार को पालता है.
छोटे बेटे को खोने के बाद लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने वाले मोहम्मद शरीफ चाचा ऐसे खोए की साइकिल मरम्मत की स्थापित दुकान हाशिये पर आ गयी। सेवा संवेदना के जोश में गृहस्थी की गाड़ी पटरी से उतर गयी। शरीफ के तीन बेटों में एक ने साइकिल मरम्मत की दुकान खोली। दूसरे ने मोटरसाइकिल की मरम्मत का काम शुरू किया और तीसरे ड्राइवर का पेशा अपनाया। तन ढंकने के लिए कपड़े दो जून की रोटी और सिर पर छत की जुगत में सुनिश्चित होती रही। मोहम्मद शरीफ भी घरेलू जिम्मेदारी से ऊपर उठकर अपना मिशन आगे बढ़ाते गए।