पति का साथ और सास की दुआएँ, राजस्थान की बालिका वधु बनेगी डॉक्टर

जब वह महज आठ साल की थी, तभी उसकी शादी कर दी गई। उसने दसवीं भी नहीं पास किया था और उसे ससुराल भेज दिया गया। लेकिन लड़की की मेहनत और लगन देखिए कि 21 साल पूरा करने से पहले ही अब वह राजस्थान के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज से डॉक्टर बनने की पढ़ाई करेगी। जयपुर के करेरी गांव की रहने वाली रूपा यादव की कहानी दिलचस्प और प्रेरणादायक है।

रूपा का सफर आसान नहीं था। उन्हें और उनके परिवार को पिछड़ी मानसिकता के लोगों के सुनने पड़े थे ताने। गांव के लोग रूपा के ससुराल वालों को कहते थे इसे पढ़ने के बजाय घर में रखो और रसोई का काम करवाओ। पढ़ाई-लिखाई में कुछ नहीं रखा, लेकिन रूपा के पति को था उनकी मेहनत और लगन पर पूरा भरोसा।

रूपा ने हर हाल में कोटा में कोचिंग करने का फैसला कर लिया। एक कोचिंग संस्थान को जब रूपा की कहानी पता चली तो उन्होंने उनकी 75 प्रतिशत फीस माफ कर दी। लेकिन रूपा का सफर इतना आसान तो था नहीं। उन्हें और उनके परिवार को पिछड़ी मानसिकता के लोगों के ताने सुनने पड़ते थे। गांव के लोग रूपा के ससुराल वालों को कहते थे कि इसे पढ़ने के बजाय घर में रखो और रसोई का काम करवाओ। रूपा को पढ़ने के लिए 6 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। रूपा की सास अनपढ़ हैं, लेकिन किसी की परवाह न करते हुए उन्होंने अपनी बहु को पढ़ने के लिए भेजा।

भारत में बाल विवाह पर कानूनी प्रतिबंध है, लेकिन राजस्थान समेत देश के कई अन्य राज्यों में आज भी बच्चों की शादी काफी कम उम्र में कर दी जाती है। रूपा जब तीसरी कक्षा में पढ़ रही थीं तभी उनकी शादी सातवीं में पढ़ने वाले शंकर लाल से कर दी गई। इतना ही नहीं उसी समारोह में उनकी बड़ी बहन की शादी शंकर के बड़े भाई से कर दी गई। जिस उम्र में रूपा को शादी का मतलब भी नहीं पता था, उस उम्र में वह शादी के बंधन में बंध गईं। जब वह दसवीं कक्षा में पहुंची तो उनका गौना हुआ। यानी वे अपने माता-पिता का घर छोड़कर अपनी ससुराल आ गईं। अच्छी बात यह रही, कि उनके पति और ससुराल वालों ने उनका हौसला बढ़ाया और उन्होंने दसवीं की परीक्षा दी।

जब रिजल्ट आया तो सबके चेहरे पर खुशी झलक रही थी, क्योंकि रूपा ने दसवीं के एग्जाम में 84 प्रतिशत नंबर हासिल किए थे। शंकर के गांव में कोई स्कूल नहीं था इसलिए रूपा को पढ़ने के लिए 6 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। रूपा की सास अनपढ़ हैं, लेकिन किसी की परवाह न करते हुए उन्होंने अपनी बहु को पढ़ने के लिए भेजा।

12वीं पास करने के बाद रूपा ने बीएससी में दाखिला ले लिया और मेडिकल का एंट्रेंस एग्जाम देने की तैयारी करने लगीं। लेकिन पहले प्रयास में उन्हें सफलता नहीं मिली और उन्हें 23,000 रैंक से संतोष करना पड़ा। वह बताती हैं कि किसी ने उन्हें कोटा जाकर कोचिंग करने की सलाह दी, लेकिन वह इस दुविधा में थीं कि उनके ससुराल वाले कोटा भेजने को राजी होंगे या नहीं। उन्होंने जब यह बात अपने पति और भाई को बताई तो वे रूपा के सपने को पूरा करने के लिए ऑटो रिक्शा चलाने लगे।

रूपा ने घर पर रहकर तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन 2016 में भी उन्हें सफलता नहीं मिली। रूपा ने हर हाल में कोटा में कोचिंग करने का फैसला कर लिया। एक कोचिंग संस्थान को जब रूपा की कहानी पता चली तो उन्होंने उनकी 75 प्रतिशत फीस माफ कर दी। लेकिन रूपा का सफर इतना आसान तो था नहीं। उन्हें और उनके परिवार को पिछड़ी मानसिकता के लोगों के ताने सुनने पड़ते थे। गांव के लोग रूपा के ससुराल वालों को कहते थे कि इसे पढ़ने के बजाय घर में रखो और रसोई का काम करवाओ। पढ़ाई-लिखाई में कुछ नहीं रखा। मगर रूपा के पति को उन पर काफी भरोसा था। कोचिंग में काफी कम फीस लगने की वजह से शंकर ने अपने घरवालों को समझा लिया।

कोचिंग करने पर उनके परिवार की आर्थिक हालात खराब हो रहे थे, क्योंकि पढ़ाई और रहने में काफी पैसे खर्च हो रहे थे। उनके ससुराल वालों ने कोचिंग का खर्चा उठाने के लिए पैसे उधार लिए और एक भैंस पाल ली ताकि उससे दूध बेचकर कुछ कमाई हो सके। लेकिन किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और 15 दिन में ही वह भैंस मर गई। परिवार वालों को काफी बड़ा घाटा हुआ लेकिन रूपा इतनी खुशकिस्मत हैं कि उन्हें किसी ने इस बात की सूचना नहीं दी। क्योंकि इससे उनकी पढ़ाई पर असर पड़ सकता था।

रूपा ने कोचिंग की मदद से जमकर मेहनत की और 2017 के नीट एग्जाम में 720 में से 603 नंबर लाकर ऑल इंडिया लेवल पर 2,283वीं रैंक हासिल कर ली। वह काउंसिलिंग में शामिल होने जा रही हैं और उन्हें पूरी उम्मीद है कि कोई न कोई सरकारी कॉलेज जरूर मिल जाएगा। वह एसएमएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेना चाहती हैं।

रूपा के पति ने आर्ट्स में ग्रैजुएशन किया है और वह गांव में ही रहकर खेती का काम करते हैं। अपनी पत्नी की इस सफलता पर वे काफी खुश हैं। कोटा में एलन कोचिंग इंस्टीटीट्यूट के डायरेक्टर नवीन माहेश्वरी बताते हैं, कि रूपा ने काफी मेहनत की थी। वह काफी मेधावी छात्रा रही हैं। रूपा बताती हैं कि उनके चाचा भीमाराम यादव की मौत हार्ट अटैक से हो गई थी। क्योंकि उन्हें इलाज सही से नहीं मिल पाया था, इसलिए उन्होंने डॉक्टर बनने का फैसला किया।

 

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