उम्र के जिस पड़ाव पर जब लोगों को चलने के लिए भी सहारे की जरूरत होती है, उस उम्र में किसी महिला को रोजी-रोटी के जुगाड़ के लिए रिक्शा चलाना पड़े तो आप उसकी स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं।
उन्हें देखकर मन में एक ही सवाल आता है, क्या इनका कोई अपना नहीं है जो इन्हें इस उम्र में आराम दे सके लेकिन आपको जानकर दुख होगा कि वीणापाणी का एक भरा-पूरा परिवार है. बावजूद इसके वो ई-रिक्शा चलाने को मजबूर हैं। इलाहाबाद में रहने वाली वीणापाणी की कहानी जानकर किसी की भी आंखें छलक उठेंगी। 63 साल की उम्र में जब अपने ही घर के दरवाजे उनके लिए बंद हो गए तो वो सड़क पर आ गईं लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आज वो शान से इलाहाबाद की सड़कों पर ई-रिक्शा चलाती हैं। उनकी एक बहन भी उन्हीं पर आश्रित हैं। ऐसा नहीं है कि वीणापाणी का इस दुनिया में कोई सगा नहीं है. पति के अलावा उनके 3 बेटे भी हैं. बेटे सौतेले हैं लेकिन क्या कोई इतना निर्दयी हो सकता है जो मां समान महिला को दो वक्त की रोटी न खिला सके।
कर्ज लेकर खरीदा ई-रिक्शा नौकरी छूटी तो सौतेले बेटो ने तोड़ा नाता
वीणापाणी शुरुआत से ही आत्मनिर्भर रहीं हैं। उन्होंने 60 साल की उम्र तक एक निजी कंपनी के अलावा जनसंख्या विभाग से जुड़कर काम किया लेकिन 60 की उम्र पार होने के बाद जब वो रिटायर हुईं तो बेटों ने रिश्ता तोड़ लिया. पति तो बहुत पहले ही उन्हें छोड़ चुके थे।
वीणापाणी पर उनकी बहन की भी जिम्मेदारी थी।ऐसे में उन्होंने रिटायरमेंट के बाद मिले पैसों के अलावा कुछ कर्ज लेकर 1 लाख 45 हजार रूपए जुटाए और ई-रिक्शा खरीदा। शुरू में उन्होंने रिक्शा चलवाने के लिए ड्राइवर भी रखे लेकिन जब ड्राइवर काम छोड़ कर भागने लगे तो वीणापाणी ने खुद रिक्शा चलने का फैसला किया।
मुस्कुराता चेहरा है इनकी पहचान
40 डिग्री तापमान में सवारियों की तलाश में भटकना, एक जगह से दूसरी जगह लगातार रिक्शा दौड़ाते रहना, इतना आसान भी नहीं है लेकिन उन्हें अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं.वो हर सुबह पूरी ताकत से उठती हैं और अपना काम करती है। वीणापाणी के चेहरे पर कभी भी शिकन नहीं दिखायी देती। खास बात ये है की ऐसे दौर में जब बेरोजगारी से तंग आकर तमाम नौजवान खुदकुशी कर रहे हैं 63 साल की ये महिला कहती है ‘जीवन एक संघर्ष है संघर्ष करना सीखो.’