नौकरी के लिए खाड़ी देशों में जाने वालों की संख्या 5 साल में 62 फीसदी गिरी

नयी दिल्ली : भारतीयों को खाड़ी देशों में प्रवास करने की मंजूरी साल 2017 के मुकाबले, 2018 के नंवबर माह (11 अवधि तक) तक 21 फीसदी कम हुई है। ये संख्या 2.95 लाख है। इससे पहले 2014 में ये संख्या 7.76 लाख थी। जो 2018 में 62 फीसदी तक कम हो गई है। ये आंकड़े ई-माइग्रेट इमिग्रेशन डाटा से लिए गए हैं। जो ईसीआर (इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड) रखने वाले श्रमिकों को प्रवासन की मंजूरी देता है।
साल 2018 के दौरान बड़ी संख्या में लोग यूएई गए थे। जो कुल प्रवास करने वालों की संख्या का 35 फीसदी (1.03 लाख) है। इसके अलावा 65 हजार श्रमिक सऊदी अरब और 52 हजार श्रमिक कुवैत गए हैं। इससे पहले 2017 में भारतीय श्रमिकों के लिए खाड़ी देशों में सबसे पसंदीदा जगह सऊदी अरब था। 22 अगस्त 2017 में निताकत स्कीम आने के बाद विश्लेषण किया गया तो पता चला कि श्रमिकों की संख्या घटने लगी है। जिसमें भारतीय श्रमिक भी शामिल हैं। यह स्कीम स्थानीय श्रमिकों के संरक्षण के लिए लाई गई थी। इससे पहले 2014 में 3.30 लाख श्रमिक सऊदी अरब गए थे जो कि पहले के मुकाबले काफी कम संख्या थी।
केवल कतर ही ऐसा देश है जहां बीते सालों के मुकाबले 2018 में प्रवासियों के जाने की संख्या बढ़ी है। 2018 में कतर में प्रवास करने के लिए 32,500 को मंजूरी दी गई है। यह संख्या 2017 में 25,000 हजार थी। जो कि अब 31 फीसदी बढ़ गई है। मुंबई स्थित लेबर रिक्रूटर का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि कतर 2022 में फुटबॉल वर्ल्ड कप आयोजित करने वाला है। इसलिए यहां श्रमिकों की मांग बढ़ी है। हालांकि ऐसी खबरें भी आई हैं कि यहां भारतीय श्रमिकों को काम के बदले भुगतान नहीं किया जा रहा है। खबर ये भी आई है कि एक कन्सट्रक्शन एजेंसी ने करीब 600 श्रमिकों को वेतन नहीं दिया है।
वाशिंगटन हेडक्वार्टर थिंक थैंक, द मिडल ईस्ट इंस्टीट्यूट का कहना है कि करीब 6-7.5 लाख भारतीय श्रमिक प्रवासी कतर में काम कर रहे हैं। ये संख्या कतर के स्थानीय श्रमिकों से दो गुना अधिक है। हालांकि बीते कुछ सालों में कतर ने भी श्रमिकों के संरक्षण के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है।
एक सवाल के जवाब में बीते साल दिसंबर में विदेश मंत्रालय ने कहा था कि श्रमिकों की संख्या गिरने का मुख्य कारण खाड़ी देशों में आर्थिक मंदी का होना है। ऐसा इसलिए क्योंकि तेल के दामों में उतार चढ़ाव आया है। इसके अलावा ये देश सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में पहले अपने नागरिकों को काम देते हैं, बाद में किसी और देश के नागरिकों को। बता दें बड़ी संख्या में भारतीय श्रमिक जिनके पास ईसीआर पासपोर्ट होता है, वो खाड़ी देशों में टूरिस्ट वीजा पर जाते हैं। इसके बाद ये अपने वीजा को रोजगार वीजा में बदलवा लेते हैं।

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