-सेरोगेसी पर भी लगी पाबंदी
काठमांडू । नेपाल में इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) और सरोगेसी प्रथाओं पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने अंतरिम रोक लगा दी है। कोर्ट ने इस मामले में।अंतिम फैसला नहीं आने तक देश के सभी आईवीएफ क्लिनिक को बंद करने और सेरोगेसी पर भी रोक लगा दी है। कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट की एकल खंडपीठ ने यह अंतरिम आदेश दिया है। जस्टिस टेक प्रसाद ढुंगाना की एक एकल पीठ ने निःसंतान दंपतियों के लिए चलाए जा रहे आईवीएफ क्लिनिक के संचालन पर रोक लगा दी है। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में संबंधित अधिकारियों से कहा है कि वे महिलाओं के डिंब संग्रह, भंडारण और प्रत्यारोपण की अनुमति तब तक न दें जब तक कि रिट को अंतिम रूप नहीं दिया जाता। इसी तरह, अदालत ने सेरोगेसी की चल रही प्रथा की प्रभावी सरकारी निगरानी को लेकर सरकार को 15 दिनों के भीतर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। अधिवक्ता अंकिता त्रिपाठी कोर्ट में एक रिट दायर की थी जिसमें तर्क दिया गया है कि आईवीएफ क्लीनिकों की बढ़ती संख्या के बावजूद, शुक्राणु और अंडा दान, भ्रूण उपयोग और सरोगेसी जैसे संवेदनशील मुद्दों की निगरानी करने के लिए कोई व्यापक कानून नहीं है। इस रिट में यह भी कहा गया था कि एक ही दाता का उपयोग करने वाले कई क्लीनिकों, सहमति के बिना आनुवंशिक सामग्री का उपयोग और सरोगेसी को निरंतर बढ़ावा देता है। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सेरोगेसी को लेकर पहले भी आदेश जारी किया जा चुका है जिसमें सरोगेसी को एक व्यापार के रूप में निषिद्ध किया गया है। अधिवक्ता त्रिपाठी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश में बांझपन प्रबंधन सेवाओं पर स्वास्थ्य और जनसंख्या मंत्रालय के नए शुरू किए गए दिशा-निर्देश अपर्याप्त बताते हुए ठोस कानून बनाए की तरफ ध्यानाकर्षण किया है। हाल ही में नेपाल सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने आईवीएफ क्लिनिक के संचालन को लेकर एक दिशा-निर्देश जारी करते हुए 20 से 35 वर्ष उम्र के पुरुष और महिलो को अंडानुनौर शुक्राणु का दान करने की छूट दी थी। इस कानून की आड़ में कम उम्र की लड़कियों और लड़कों को पैसे का लालच देकर डिंब और शुक्राणु दान का व्यापार होने की आशंका को लेकर रिट दायर की गई थी।