बिलासपुर.अपने बेटे करन की आंखों की रोशनी चले जाने पर भी छत्तीसगढ़ के कोरबा की अंजू सिंघानिया ने हौंसला नहीं खोया। करन को पढ़ाने पहले खुद सबक पढ़े, फिर टेपरिकॉर्डर पर रिकॉर्ड कर उसे पढ़ाए। एक मां की मेहनत का नतीजा है कि करन सिंघानिया ने डिसीबिएलिटी के बावजूद आईआईएम अहमदाबाद से 2015 में डिग्री ली और अब नामी कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर बना।
मां ने ठाना, बेटे ने कर दिखाया
अंजु के मुताबिक करन की बीमारी मेरे जीवन में सबसे बड़ा झटका थी। मैंने ठाना कि करन को मैं पढ़ाकर ही रहूंगी। खुद पढ़ाई की और उसे भी पढ़ाया। करन की लगन और पति के सहयोग से कोई भी कमी किसी लक्ष्य को हासिल करने में बाधा नहीं बन सकती। करन का स्कूल में टॉप आना फिर श्रीराम कॉलेज में सिलेक्नशन, आईआईएम से पासआऊट होना और एयरटेल जैसा इंडियन मल्टीनेशनल में मैनेजर बनना जैसी कामयाबी एक मां की मेहनत का ही नतीजा है। गुरुवार को कंपनी ने उसे दो महीने की ट्रेनिंग पर साउथ अफ्रीका भेजा है।
स्कूल ने दाखिला देने से कर दिया था मना
अंजू के पति राजेन्द्र सिंघानिया गेवरा में किराना दुकान चलाते हैं। दो बेटों में करन बड़ा है। पढ़ने में शुरुआत से ही तेज करन दसवीं में मेरिट में आया था। रेटीना पिग्मेंटोसा नाम की बीमारी के कारण आंखों की रोशनी कम होते चली गई। डीएवी स्कूल गेवरा ने उसे अगली क्लास में एडमिशन नहीं दिया। तब अंजु ने ठान लिया कि वह अपने बेटे को घर पर ही पढ़ाएगी। करन ने भी मेहनत की। एनटीपीसी में इंजीनियर मुकेश जैन जो दृष्टिहीन हैं, उन्होंने इनका समय-समय पर मार्गदर्शन किया। अच्छा रिजल्ट आने पर डीएवी ने भूल सुधार कर करन को एडमिशन दिया। 12वीं में टाॅप करने पर उसका सिलेक्नशन श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स में हुआ। यहां से पढ़कर वह आईआईएम में भी सिलेक्ट हुआ। करन की पढ़ाई के लिए अंजु अपने छोटे बेटे अनमोल को लेकर 6 साल पहले दिल्ली गईं, फिर अहमदाबाद और अब गुड़गांव में वह करन के साथ-साथ हैं।
आईआईएम में पहली बार मिला दृष्टिहीन को प्रवेश
करन का सिलेक्शन आईआईएम अहमदाबाद में हुआ और उसने 2015 में पढ़ाई पूरी की।100 साल के इतिहास में पहली बार किसी दृष्टिहीन को आईआईएम में एडमिशन का यह पहला मामला था। आईआईएम में चयन से पहले करन ने दिल्ली श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स में पढ़ाई की। करन का कहना है कि मम्मी का जज्बा और संघर्ष ही है कि वह तक पहुंचा है।