मशहूर इलस्ट्रेटर जीन डाइच को कार्टून फिल्म मुनरो के लिए ऑस्कर भी मिल चुका है
जीन पहले उत्तरी अमेरिका में सेना से जुड़े हुए थे, वे पायलटों को प्रशिक्षण देते थे
चुनौती ऐसा कैरेक्टर बनाने की थी, जो बिना कुछ बोले सबको हँसा सके और सालों तक याद रहे
जीन डाइच ने बताया था कि मैं 1944 में अमेरिका में सेना की नौकरी छोड़कर हॉलीवुड के मशहूर एमजीएम प्रोडक्शन हाउस के साथ जुड़ गया। टॉम एंड जेरी की शुरुआत भी यहीं से हुई। इसे बनाने से पहले मेरे सामने यह चुनौती थी कि बिल्ली और चूहे की कभी न खत्म होने वाली इस लड़ाई में भाषा और किसी भी देश की सीमा से परे मैं ऐसा कैरेक्टर बनाऊं, जिसे लोग सालों तक याद रख सकें। यानी ऐसा कैरेक्टर, जो बिना कुछ बोले अपने भाव से सबको हँसा सके।
सपने में भी लड़ते हुए दिखते थे टॉम एंड जैरी- जीन
उन्होंने बताया कि इसी बीच, मेरी मुलाकात विलियम हन्ना और जोसेफ बारबरा से हुई। दोनों एमजीएम स्टूडियो में काम करते थे। दोनों बहुत मेहनती थे। मैंने टॉम एंड जैरी के कैरेक्टर्स पर उनके साथ मिलकर काम करना शुरू किया। एनिमेटर होने के नाते मुझे एक सीरिज में हजारों कार्टून स्ट्रिप बनाने पड़ते थे, क्योंकि तब कम्प्यूटर की तकनीक नहीं हुआ करती थी। जीन ने कहा था कि टॉम एंड जैरी का कैरेक्टर मेरे दिमाग में ऐसे घुस गया कि रात के सपने में भी मुझे वो आपस में लड़ते हुए दिखाई देते थे। सुबह उनकी लड़ाई को मैं कागज पर उकेर देता था।
1960 में टॉम एंड जैरी की 13 एपिसोड की नई श्रृंखला बनाई- जीन
1957 में एमजीएम स्टूडियो ने अपनी एनिमेशन यूनिट को बंद कर दिया। 1959 में मैं प्राग घूमने आया और यहीं बसने की ठान ली। इसके बाद हन्ना और बारबरा भी प्राग आ गए और यहां खुद का प्रोडक्शन हाउस खोला। 1960 में टॉम एंड जैरी की 13 एपिसोड की नई श्रृंखला और ‘पोपाय द सेलर मैन’ फिल्म ने सफलता के झंडे गाड़ दिए। यहां से मुझे प्रसिद्धि मिली। 1967 में मुनरो के लिए मुझे ऑस्कर भी मिला।