धनतेरस का त्योहार हर वर्ष कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहते हैं। धनतेरस के दिन सोना, चांदी, आभूषण, बर्तन आदि की खरीदारी के अलावा लोग घर, वाहन, प्लॉट आदि भी खरीदते हैं। धनतेरस पर विशेष कर चांदी के आभूषण, चांदी एवं पीतल के बर्तन या फिर लक्ष्मी और गणेश अंकित चांदी के सिक्के खरीदने की परंपरा है। धनतेरस पर चांदी और पीतल के बर्तन क्यों खरीदते हैं? आइए जानते हैं इसके बारे में।
पौराणिक कथा के अनुसार, सागर मंथन के समय समुद्र से भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। भगवान धन्वंतरि को देवताओं का वैद्य भी कहा जाता है। उनकी कृपा से व्यक्ति रोगों से मुक्त होकर स्वस्थ रहता है।
भगवान धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे, तो उनके हाथ में कलश था। इस वजह से हर वर्ष धनतेरस को चांदी के बर्तन, चांदी के आभूषण या फिर लक्ष्मी और गणेश अंकित चांदी के सिक्के खरीदे जाते हैं। भगवान धन्वंतरि को पीतल धातु प्रिय है, इसलिए धनतेरस पर पीतल के बर्तन या पूजा की वस्तुएं भी खरीदी जाती हैं।
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि धनतेरस पर इन वस्तुओं की खरीदारी करने से शुभता बढ़ती और व्यक्ति की आर्थिक उन्नति होती है। भगवान धन्वंतरि को धन, स्वास्थ्य और आयु का देवता माना जाता है। उनको चंद्रमा के समान भी माना जाता है। चंद्रमा को शीतलता का प्रतीक मानते हैं। धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से संतोष, मानसिक शांति और सौम्यता प्राप्त होती है।
भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के आचार्य और माता लक्ष्मी के भाई भी हैं क्योंकि माता लक्ष्मी भी समुद्र मंथन से निकली थीं। धनतेरस पर पीतल के बर्तन खरीदने के बाद उसमें घर पर बने पकवान रखकर भगवान धन्वंतरि को अर्पित करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, धनतेरस पर खरीदारी करने से धन, सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है। धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि के साथ कुबेर की भी पूजा करने की परंपरा है।
(साभार – दैनिक जागरण)