नयी दिल्ली । जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की मौत हो गई है। एक हमलावर ने सुबह उन्हें गोली मार दी थी और बाद में अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। उनका जाना भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। इसकी वजह यह है कि उन्होंने दोनों देशों के रिश्तों को नई दिशा दी थी।यूं तो भारत और जापान के रिश्ते सदियों पुराने हैं लेकिन शिंजो आबे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें एक अलग मुकाम पर पहुंचाया। शिंजो आबे ने ऐसे समय भारत की मदद की जब दूसरे देशों ने भारत से मुंह मोड लिया था। आज जापान के सहयोग से भारत में कई परियोजनाओं चल रही हैं। इनका श्रेय काफी हद तक शिंजो आबे को जाता है। इनमें बुलेट ट्रेन, दिल्ली मेट्रो, दिल्ली मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर , शहरों में बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी परियोजनाओं और पूर्वोत्तर के विकास से जुड़ी कई परियोजनाएं अहम हैं। एक तरह से उन्होंने जापान के खजाने का मुंह भारत के लिए खोल दिया था।
भारत के प्रति शिंजो आबे के लगाव को इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री रहते उन्होंने कई बार भारत की यात्रा की थी। उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण (Padma Vibhushan) से सम्मानित किया गया है। शिंजो आबे न केवल जापान के सबसे ज्यादा लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे हैं, बल्कि वह सबसे ज्यादा बार भारत आने वाले जापानी प्रधानमंत्री रहे हैं। अपने करीब नौ साल के कार्यकाल में आबे चार बार भारत आए। आबे जापान के पहले प्रधानमंत्री थे जो गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि रहे। उन्हें 2014 में गणतंत्र दिवस के मौके पर मुख्य अतिथि रहे। उस समय भारत में मनमोहन सिंह की सरकार थी।
बुलेट ट्रेन के लिए सस्ता कर्ज
साल 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और जापान के रिश्तों में नया जोश भर गया। इस दौरान दोनों देशों के बीच कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इनमें काशी को क्योटो के तर्ज पर विकसित करने, बुलेट ट्रेन परियोजना, न्यूक्लियर एनर्जी, इंडो पेसिफिक रणनीति और एक्ट ईस्ट पॉलिसी शामिल है। 2014 में जब मोदी जापान गए तो काशी को क्योटो के तर्ज पर विकसित करने का समझौता हुआ था। इसके तहत जापान काशी को स्मार्ट सिटी बनाने में जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोहरों, कला और संस्कृति को संरक्षित में भी मदद कर रहा है।
भारत में पहली बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की शुरुआत भी आबे में हुई। इसके तहत दोनों देशों के बीच 2015 में समझौता हुआ था। 2017 में मोदी और आबे ने इस अहम प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी। समझौते के तहत अहमदाबाद से मुंबई तक बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में करीब 1.1 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसके लिए 81 फीसदी राशि जापान सरकार के सहयोग से जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (JICA) देगी। जापान इसके लिए 0.1 फीसदी पर लोन दे रहा है। पीएम मोदी के इस फेवरेट प्रोजेक्ट के लिए जापान टेक्निकल सपोर्ट से लेकर बुलेट ट्रेन की आपूर्ति तक कर रहा है। हालांकि कई कारणों से यह प्रोजेक्ट देरी से चल रहा है और देश में पहली बुलेट ट्रेन 2026 से चलने की संभावना है।
ऐतिहासिक भाषण
आबे जब पहली बार प्रधानमंत्री बने तो वह अगस्त 2007 में भारत आए थे। उस समय उन्होंने भारत और जापान के संबंधों को लेकर एक अहम भाषण दिया था जिसे ‘दो सागरों का मिलन’ के रूप में याद किया जाता है। जानकारों का मानना है कि भारत-जापान के संबंधों को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में उस भाषण ने नींव रखी थी। इसके बाद दोनों देशों के बीच करीबी बढ़ी।
दिल्ली और मुंबई के बीच बन रहे 1483 किमी लंबे दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर ( डीएमआईसी) में भी जापान सहयोग कर रहा है। जनवरी 2014 में आबे के भारत आने से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामले की समिति ने इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी थी। 90 अरब डॉलर की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए पहली मदद जापान से ही मिली थी। जापान ने इसके लिए 4.5 अरब डॉलर का लोन दिया था। इसके अलावा देश के कई शहरों में जापान के सहयोग से मेट्रो प्रोजेक्ट बन रहे हैं।
चीन के विरोध को किया दरकिनार
आबे के प्रयासों से ही भारत-जापान रिश्तों में अंतिम बाधा पार हुई थी। जापान भारत को न्यूक्लियर पावर के तौर पर मान्यता नहीं देता था लेकिन आबे के प्रयासों से 2016 में दोनों देशों के बीच सिविल न्यूक्लियर पैक्ट हुआ। उन्होंने एनपीटी का सदस्य नहीं होने के बाद भी भारत के साथ सिविल न्यूक्लियर समझौता किया। साथ ही विदेश और रक्षा मंत्री के साथ (2+2) मीटिंग और डिफेंस इक्विपमेंट की तकनीक ट्रांसफर पर भी दोनों देशों के बीच कई अहम समझौते हुए। इससे दुनिया के दूसरे देशों के साथ भी भारत के संबंधों को नया आयाम मिला।
जापान पूर्वोत्तर की कई परियोजनाओं में मदद दे रहा है। इसके लिए उसने चीन के विरोध को भी दरकिनार कर दिया था। 2017 में आबे के भारत दौरे में पूर्वोत्तर की कई परियोजनाओं के लिए भारत और जापान के बीच समझौता हुआ था। चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता रहा है और इस विवादित मसला मानता है। उसका कहना था कि भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर विवाद है, इसलिए किसी तीसरे देश को वहां निवेश से बचना चाहिए। लेकिन जापान ने चीन के विरोध को दरकिनार कर दिया और वह पूर्वोत्तर में कई विकास परियोजनाओं में मदद कर रहा है।
(साभार – नवभारत टाइम्स)