नयी दिल्ली : पिछले 26 वर्षों में चक्रवात और लहरों जैसी प्राकृतिक आपदाओं और निर्माण जैसी मानवीय गतिविधियों से भारत की करीब एक तिहाई तटरेखा का क्षरण हुआ है जबकि नये रेत निक्षेपण की वजह से करीब करीब उतना ही क्षेत्र जुड़ा भी है।
राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र ने 1990 और 2016 के बीच भारत की 7,517 किलोमीटर लंबी तटरेखा में से 6,031 किलोमीटर क्षेत्र का सर्वेक्षण किया और पाया कि उसके 33 फीसदी हिस्से खासकर बंगाल की खाड़ी से लगती तटेरखा का क्षरण हुआ । सबसे अधिक क्षरण पश्चिम बंगाल में हुआ। साथ ही, सर्वेक्षण के दौरान 29 फीसद की वृद्धि या निक्षेपण में बढ़ोतरी भी नजर आयी। इस रिपोर्ट के लेखकों में एक एनसीसीआर के निदेशक एम वी रमना मूर्ति ने कहा, ‘‘क्षरण और वृद्धि एक दूसरे के पूरक हैं। यदि एक जगह से बालू या अवसाद बह गये तो यह अवश्य ही कहीं और जमा हुए।’’
इस रिपोर्ट के अनुसार सर्वेक्षण के अंतर्गत शामिल तटरेखा के 2,156.43 किलोमीटर हिस्से का क्षरण हुआ जबकि 1,941.24किलोमीटर क्षेत्र की बढ़ोतरी हुई। रिपोर्ट के सहलेखक पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम राजीवन ने बताया कि वैसे तो लंबे समय से यह ज्ञात था कि तटरेखा का क्षरण हो रहा है लेकिन अधिकारियों ने उसके सर्वेक्षण और दस्तावेजीकरण की जरूरत महसूस की ताकि विभिन्न एजेंसियां जरूरी कार्रवाई कर सकें।
मूर्ति के अनुसार क्षरण से मानव बस्तियां नष्ट होती है, क्योंकि समुद्र का पानी स्थल पर आ जाता है। इससे तटीय क्षेत्रों में खेती भी प्रभावित होती है। छोटी नौकाओं वाले पारंपरिक मछुआरों के लिए तट समुद्र में जाने का द्वार होता है, ऐसे में तट के नष्ट होने का तात्पर्य उन्हें समुद्र में उतरने के लिए बंदरगाह का इस्तेमाल करना होता है।
मूर्ति के मुताबिक उसी तरह वृद्धि से भूक्षेत्र बढ़ जाता है क्योंकि तट का विस्तार होता है। यह एक सकारात्मक बात है। लेकिन यदि यही वृद्धि डेल्टा या संकरी खाड़ी में होता है तो उसका पारिस्थितिकी पर नकारात्मक असर होता है क्योंकि गाद जमने से समुद्र का पानी इन क्षेत्रों में नहीं जा पाता। एश्चुअरी और संकरी खाड़ी जलीय जंतुओं और वनस्पतियों का प्रजनन स्थल होता है।