नयी दिल्ली : न्यायिक प्रक्रिया और कार्यवाही के संदर्भ में एक सख्त न्यायाधीश के तौर पर पहचान रखने वाले न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने बुधवार को देश के 46वें प्रधान न्यायाधीश का पदभार संभाल लिया और वह पूर्वोत्तर से न्यायपालिका के इस शीर्ष पद पर पहुंचने वाली पहली हस्ती हैं।
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की कार्यशैली और मुकदमों के आवंटन की प्रक्रिया पर सवाल उठाने वाले न्यायाधीशों में शामिल रहे न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने बुधवार तीन अक्टूबर को राष्ट्रपति भवन में प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ दिलायी। उन्होंने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा का स्थान लिया है, जिनका कार्यकाल दो अक्टूबर को समाप्त हो गया।
असम के राष्ट्रीय नागरिक पंजी और लोकपाल कानून के तहत लोकपाल संस्था की स्थापना जैसे विषयों पर सख्त रूख अपनाने वाले न्यायमूर्ति गोगोई 17 नवंबर 2019 को सेवानिवृत्त होने तक करीब 13 महीने देश के प्रधान न्यायाधीश रहेंगे।
न्यायमूर्ति गोगोई तब सुर्खियों में आए थे जब निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की कार्यशैली को लेकर 12 जनवरी को न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर के नेतृत्व में चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स की थी। इन चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति गोगोई भी शामिल थे। इस प्रेस कॉन्फ्रेन्स में न्यायाधीशों ने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश पर कई आरोप लगाये थे।
उन्होंने बाद में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था, ‘‘स्वतंत्र न्यायाधीश और आवाज उठाने वाले पत्रकार लोकतंत्र की रक्षा की पहली पंक्ति हैं।’’ पिछले सप्ताह एक अन्य सार्वजनिक समरोह में उन्होंने कहा था कि देश के प्रधान न्यायाधीश के तौर पर उनकी प्राथमिकता मामलों के ‘‘बैकलॉग’’ से निपटना है।
केरल में फरवरी, 2011 में एक ट्रेन में हुये सनसनीखेज सौम्या बलात्कार और हत्या के मामले में शीर्ष अदालत के निर्णय से असहमति व्यक्त करते हुये पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने तब सोशल मीडिया पर तल्ख़ टिप्पणियां कीं थीं। इसे लेकर न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने 11 नवंबर, 2016 को पूर्व सहयोगी न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू को अवमानना का नोटिस जारी करके सनसनी पैदा कर दी थी। यह पहला मौका था जब शीर्ष अदालत ने अपने ही पूर्व सदस्य के खिलाफ स्वत: अवमानना का नोटिस जारी किया था। न्यायमूर्ति काटजू ने बाद में अपनी टिप्पणियों के लिये न्यायालय से क्षमा मांग ली थी जिसे स्वीकार करते हुये न्यायमूर्ति गोगोई की पीठ ने मामला खत्म कर दिया था।
इसी तरह, असम के राष्ट्रीय नागरिक पंजी के मसौदे के संबंध में मीडिया से बात करने पर इस काम से जुड़े अधिकारियों को आड़े हाथ लेते हुये न्यायमूर्ति गोगोई की पीठ ने उन्हें सख्त चेतावनी दी थी। शीर्ष अदालत के फैसले के बावजूद लोकपाल संस्था की स्थापना और लोकपाल की नियुक्ति में हो रहे विलंब को लेकर दायर अवमानना याचिका पर भी न्यायमूर्ति गोगोई की पीठ ने सख्त रूख अपना रखा है। न्यायमूर्ति गोगोई की 23 अप्रैल, 2012 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर पदोन्नति हुई थी। असम के डिब्रूगढ़ में 18 नवंबर, 1954 को जन्मे रंजन गोगोई ने 1978 में वकालत शुरू की और 28 फरवरी, 2001 को उन्हें गौहाटी उच्च न्यायालय का स्थाई न्यायाधीश बनाया गया। इसके बाद नौ सितंबर, 2010 का उनका तबादला पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में किया गया और 12 फरवरी, 2011 को उन्हें इसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। असम के पूर्व मुख्यमंत्री केशव चंद्र गोगोई के पुत्र न्यायमूर्ति गोगोई ने असम के राष्ट्रीय नागरिक पंजी, सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन, राजीव गांधी हत्याकांड मामले के दोषियों को उम्र कैद की सजा से छूट तथा लोकपाल जैसे महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं।