Friday, February 14, 2025
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दादा ने जीती ट्रॉफी, अब 73 साल बाद पोते पद्भनाभ ने दोहराया इतिहास

नयी दिल्ली । जयपुर के महाराजा मान सिंह द्वितीय ने 1950 में जिस पोलो चैंपियनशिप को जीत देश का नाम ऊंचा किया था उसे 73 साल बाद उनके पोते पद्मनाभ सिंह ने फिर से दोहराया है। मान सिंह के पोते पद्मनाभ ने फ्रांस की सैंट मेस्मे टीम से खेलते हुए 129 डिग्री प्रतियोगिता में मौजूदा चैंपियन कजाक को हराकर खिताबी जीत हासिल की। पद्मनाभ सिंह की टीम ने कजाक के खिलाफ 11 गोल दागकर मैच को अपने नाम किया जबकि उनके विरोधी ने सिर्फ 9 गोल किए।फाइनल मुकाबले में पद्मनाभ का प्रदर्शन काफी दमदार रहा। उन्होंने अपनी टीम के लिए कुल तीन गोल किए। पद्मनाभ पिछले चार साल से सैंट मेस्मे के साथ जुड़े हुए हैं। इस जीत के बाद पद्मभान सिंह ने कहा कि, ‘चैंपियनशिप को जीतना हमारे लिए गर्व की बात है। ऐसा इसलिए भी कि मैं महान पोलो खिलाड़ी महाराजा सवाई मान सिंह की विरासत को जी रहा हूं।’पोलो चैंपियनशिप में ऐतिहासिक जीत के बाद पद्मनाभ सिंह ने कहा कि इस प्रतियोगिता के लिए मैंने जयपुर और अर्जेंटीना में तैयारी की थी। जयपुर में दुनिया के सबसे शानदार पोलो ग्राउंड में से एक हैं। मेरी इस जीत के बाद मुझे उम्मीद है कि जयपुर में युवाओं को इससे हौसला मिलेगा। हालांकि पिछले साल हमें इसी टीम के कजाक के खिलाफ हार मिली थी लेकिन उसे भुलाते हुए इस बार हमने जीत हासिल की है।

अपने दादा जी के समय के खेल के बारे में बात करते हुए पद्मनाभ सिंह ने कहा कि, ‘महाराजा मानसिंह के समय का खेल और आज के समय में पोलो बहुत बदल गया है। पहले के घोड़े के कद काफी बड़े होते थे। आज के घोड़ों का कद छोटा हो गया है। इसके अलावा अब इस खेल में तकनीकों इस्तेमाल होने लगा है। चोट से बचाव के लिए कई तरह के गियर आ चुके हैं जो कि पहले नहीं था। हमारे दादा जीतने उस वक्त इस खेल के लिए ऑस्ट्रेलिया से घोड़े लेकर आए थे।स खेल के जोखिम के बारे में बताते हुए पद्मनाभ सिंह ने कहा, पोलो फार्मूला वन की तरह एक जोखिम भरा खेल है। घोड़े पर बैठकर 40 किलोमीटर की रफ्तार से पोलो खेलना आसान काम नहीं है। इसमें चोटिल होने की संभावना बहुत रहती है।

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