नयी दिल्ली : एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) देना अब अपराध हो जाएगा। ऐसा करने पर 3 साल जेल की सजा होगी। केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को इससे संबंधित अध्यादेश को मंजूरी दे दी। जिस पर देर रात राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी। सुप्रीम कोर्ट पहले ही इसे अवैध बता चुका है।
यह अध्यादेश छह महीने तक लागू रहेगा। इस दौरान तीन तलाक विधेयक को राज्यसभा से पारित कराना होगा। 9 अगस्त को यह विधेयक लोकसभा में पारित हो गया था। कांग्रेस इसमें कुछ बदलाव चाहती है। इसलिए यह राज्यसभा से पारित नहीं हो पाया था। पिछले साल 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने इस पर फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि एक साथ तीन तलाक कहने की प्रथा यानी तलाक-ए-बिद्दत असंवैधानिक और गैर-कानूनी है। केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इस अध्यादेश का मुख्य घटक यह है कि अपराध सिर्फ तभी संज्ञेय होगा जब पीड़ित पत्नी या उसके परिवार (मायके या ससुराल) के सदस्य एफआईआर दर्ज कराएं। अभियुक्त को पुलिस जमानत नहीं दे सकेगी। मजिस्ट्रेट पीड़ित पत्नी का पक्ष सुनने के बाद वाजिब वजहों के आधार पर जमानत दे सकते हैं। उन्हें पति-पत्नी के बीच समझौता कराकर शादी बरकरार रखने का भी अधिकार होगा। बच्चा मां के संरक्षण में ही रहेगा। उसका भी गुजारा देना होगा। रविशंकर प्रसाद ने बताया कि जनवरी 2017 से सितंबर 2018 तक तीन तलाक के 430 मामले सामने आए। इनमें 229 मामले सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले और 201 केस उसके बाद के हैं।
इस दौरान सबसे ज्यादा तीन तलाक के मामले उत्तरप्रदेश में सामने आए। कोर्ट के फैसले से पहले वहां 126 और उसके बाद 120 मामले सामने आए। संविधान के अनुच्छेद 123 के मुताबिक, जब संसद सत्र नहीं चल रहा हो तो राष्ट्रपति केन्द्र के आग्रह पर कोई अध्यादेश जारी कर सकते हैं। यह अध्यादेश अगला सत्र समाप्त होने के बाद छह सप्ताह तक लागू रह सकता है। जिस विधेयक पर अध्यादेश लाया जाता है, उसे संसद में अगले सत्र में पारित करवाना होता है। ऐसा नहीं होने पर राष्ट्रपति इसे दोबारा भी लागू कर सकते हैं।