तीखी धार

 – अभिनेष ‘अटल’
गर्मियों के बाद बारिश आती है। ज्यादा तेज गर्मी होने से अधिक बारिश आने की संभावना है। ये शासन, प्रशासन, आलाकमान प्रधान, तूफान सबको अच्छे से ज्ञात है। लेकिन मजाल है कि बारिश आने के पूर्व की तैयारी हो जाए। किसी नई ठोस व्यवस्था पर चर्चा हो जाए। नालियों, छोटे – बड़े जलाशयों की साफ – सफाई और गहरी करण कर लिया जाए। नहीं, कचरे का उचित प्रबंधन नहीं होगा कि तेज बहाव के कारण वो जल निकासी को जाम न कर दे।
हमने बारिश के पानी से जगह – जगह बाढ़, कॉलोनी, मोहल्ले जब तक जलमग्न नहीं देखे, टी.वी. समाचारों में जल भराव या समस्याओं की शानदार फ़ोटो वीडियो नहीं देखे तब तक आनंद ही कैसा ? जहां – जहां जल भराव होता है वहां आज क्या हो सकता है इसकी कोई योजना नहीं। भरे हुए पानी में जाकर तेज बारिश में समस्या का निदान खोजने वाले, जिम्मेदार, टैलेंटेड लोग आज वहाँ जाकर खड़े होकर निदान नहीं खोजेंगे। बरसात आएगी, पानी भरेगा, समाचार बनेंगे तब विचार करेंगे।
गुरु फलाने मोहल्ले में पानी ज्यादा भर गया है जल्दी आ जाओ, मस्त फोटो – वीडियो आएगा। फिर देखो सरपट दौड़ लगाई जाएगी। आरम्भ होगा संवेदनाओं का दौर, बारिश हो रही है और यहां सम्माननीय की आँखों से अश्रु धारा बह रही है। वीडियो बनाने वाले को घनघोर चुनौती कि वो उन साहब (संबंधित जिम्मेदार) के चेहरे पर बारिश की बूंदें और अश्रुओं को कैसे दिखाए।
जिम्मेदार लोग अपने – अपने चेहरे पर मासूमियत लाते हुए रहवासी क्षेत्रों में घुटने तक पानी के बीच खड़े होकर बोलेंगे हम उचित प्रबंध कर रहे हैं। किन्तु ध्यान रखना जुझारू और कर्मठ बन्धु तब कोई प्रबंध न हो सकेगा। जो स्थाई समस्याएं हैं हम उनके अस्थाई हल क्यों निकालते हैं ?
यह हर मौसम के साथ है जब संकट सर पे आता है तब प्रबंधन के लिए आनन – फानन बैठकें चालू होती हैं। अफरा – तफरी मच जाती है। जनता के सच्चे सेवक के सारे स्वांग रचाये जाते हैं। अधिकारी, कर्मचारी हैरान – परेशान होंगे लेकिन कर कुछ न सकेंगे। अरे जो बातें अवश्यंभावी हैं कि यह  होने ही वाला है, मेरे गाँव में, शहर में बारिश से समस्या आती ही है तो उस समय आनन – फानन की आवश्यकता ही क्या है ? अभी आराम से प्रबंध किया जा सकता है लेकिन ऐसा कर लेंगे तो तब के लिए काम क्या बचेगा। बेचारी राहत राशि, बचाव राशि नाहक वापस चली जायेगी। उस रेनकोट का क्या होगा जो खास मैंने उसी दिन के लिए खरीदा है जब झुग्गी – झोंपड़ियों में पानी घुसेगा, उनका बिस्तर, पलंग, बर्तन, खाना तैर रहा होगा तो पकड़ने का करतब दिखाऊंगा, पकड़ तो कुछ न पाऊंगा। यदि आज व्यवस्था कर लेंगे तो अपने शहर या गाँव का वो भयानक मंजर कैसे देख पाएंगे जो जलप्लावन से देखने को मिलता है।
हो गए स्वप्न सब साकार कैसे मान लें हम ।
टल गया सर से व्यथा का भार कैसे मान लें हम ।।
विचारक संस्कृत विभाग, रानीदुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के शोध छात्र हैं

शुभजिता

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