– सुषमा त्रिपाठी
बिहार के आत्मा बसेला छठ महापर्व में और हम हईं बिहारी। हमनी के इंहा मैं न चलेला, हम चलेला। गौर करे वाला बात ई ह कि हम शब्द बिहार में अहंकार के परिचय ना देवला बल्कि समूह, घर – परिवार अउरी समाज के परिचय देवेला। जहवां -जहवां बिहारी गइले…आपन समाज आपन करेजा में रखले…दुनिया के नजर में..अउरी अपने ही देस में हमनी के मजदूर कहल जाता। एगो भाषा के लेके कहियों पर आपन भाषा बोलवाए खातिर लोग आपन अहंकार में गरीब बिहारी के पीट के अपना के बड़का सेर बुझता…मगर भासा परेम के चीज ह….थोपे के न। कवनो भाषा अपना साहित्य से बढ़ेले, ओकरा प्रति जागरूकता से बढ़ेले, दूसरा के महत्व समझ के विनम्र होके साथ चलला से बढ़ेले। हम मान तनी कि भोजपुरी में अश्लील गीत से बदनाम करे वाला कलाकार बाड़े अउरी ओकरा से हमनी के माथा लाज से गड़ जाला लेकिन भोजपुरी खाली ओतने त न ह। छठ के मौका बा…बोल दीं कि शारदा सिन्हा के गीत सुन के कि राउर अंखियन से लोर न आ जाला। आज पूरा संसार में जइसे भोजपुरी लोग सुनतरे, ओइसहीं छठ पूजा भी होखता…हमनी के कवनो भासा बा संस्कृति के अपमान न करेलींजा, उ बात अलग बा कि रउरा सबके नजर में बाप – दादा के जमाने से राउर अर्थव्यवस्था के रीढ़ रहे वाला बिहारी बहिरागत अउरी वोट बैंक ही रह गइल। कभी छठ पूजा में देखब…जे सुरूज देव….भर संसार के उजियार करेलन…हमनीं के ओनकर पूजा करेलींजा। परकति देवी के छठां अंश हईं छठी मइया…हमनी के ओनकर पूजा करेलीं जा। हमनी के बिहारी हईं…साल भर परदेस में खट लेब जा लेकिन बरिस में एक बार त घरे जाहिं के बा…छठ के बहाने परिवार से मिलल हो जाला, माई-बाबू के देख ले लीं जा…इ चार दिन के चैन भी बहुत जगहा खटकेला।
छठ पूजा परिवार के एक राखे के मंगलकामना के पूजा ह..कवनो ऊंच -नीच न। लोक साहित्य पढ़ब त जानब कि छठी मइया सुरुज देव के बहिन हईं। जब जीवन देवे वाला जल के साधन मानके हमनीं के ओनका से गोहार लगाइलें त परिवार के आगे बढ़ाए के आसीरबाद मिलेला। हमनीं के इहां मइया स्त्री अउरी ममता के प्रतीक हई। परिवार के सही मतलब तब बूझब रउरा, जब छठ के गीत गहराई से सुनब। छठ के गीत में कुल अउरी परिवार के बात बा, मजबूत सम्बन्ध – आपसी सहयोग के बात बा। परिवार के मतलब अहजा पति-पत्नी अउर बच्चा भर न ह बल्कि एकरा के आगे बढ़के बा। पूरा परिवार छठ के तैयारी में शामिल होला। आज के एकल परिवार में जब आगे -पीछे केहु नइखे। बच्चन से बूझे अउर बतिवाले वाला केहू नइखे…तब इहे परिवार खड़ा होला। छठ ए परिवार के भावना के मजबूत करेके नाम ह..अवसर ह…जहाँ बच्चन से लेकर जवान अउरी बुढ़वन तक, सब के सब छठी माई के पूजा में आपन-आपन भूमिका निभावेला। अइसन कवनो बाध्यता नइखे कि खाली महिला ही इ बरत करिहें, मरद लोग भी करेला। परसादी बनाए में, घाट सजाए में, पूजा के सामान जुटाए में सबके भूमिका रहेला। गेहूं सुखाते – सुखाते बतरस में कब दुःख सूख गइल पते न चलेला। इ समाज रेगिस्तान में चलेला…छठ नीहन परब..एकरा में पोखर नीहन बा..जे पियास बुझावेला…टूटत करेजा के सम्भार लेला। दादा-दादी, नाना-नानी, भाई- बहिन, भउजी, चाचा -चाची, मउसा- मउसी, मामा-मामी, फुआ -फूफा, बच्चा सबके लेके परिवार बनेला…। समस्या कहवां नइखे लेकिन…उ समस्या में राह देखावे खातिर सबसे पहिले इहे लोग खड़ा होएला। बच्चन के हमनी के इहां अकेले न छोड़ल जाला। बड़का बाबूजी,चाचा, मामा कब बाप बन जाएले..पतो न चलेला। फूआ-चाची,मउसी, मामी कब महतारी नीहन अंकवारी में सब ताप हर लेली, बुझियो न पाइब…एहे परिवार ह…इहे परिवार ह। जब नइकी दुलहिन बियाह कइके ससुरारी आवेली…तब इहे परिवार ओनका साथ रहेला..ननद कब भउजाई खातिर अपने परिवार के सामने खड़ा हो जाएली…पता न चलेला। काहे कि ए घर में ननद ही बहिन के जगहा पर बाड़ी । दुलहिन भी जब बरत करेली तब समूचा कुल-परिवार के आपन आराधना में शामिल करेली -लिहिएं अरग हे मईया/ दिहीं आशीष हजार । पहिले पहिल हम कईनी/छठी मईया व्रत तोहर । करिहा क्षमा छठी मईया/ भूल-चूक गलती हमार ।
छठी मैया से संतान, स्वास्थ्य और परिवार की समृद्धि के कामना कइल जाला। प्रार्थना कवनो व्यक्ति विशेष खातिर ही न होवेला। परदेस जाकर काम करे वाला बबुआ खातिर महतारी पूजा करेलीं कि कइसहूं छठ पर बबुआ घरे आवस। छठ के गीत में बेटी के अउरी ओकर कल्याण के कामना कइल जाला — हम तोहसे पूछी बरतिया ए बरतिया से केकरा लागी, हम तोहसे पूछी बरतिया ए बरतिया से केकरा लागी ।। के करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी, के करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी ।। हमरो जे बेटी तोहन बेटिया से उनके लागी, हमरो जे बेटी तोहन बेटिया से उनके लागी ।। से करेली छठ बरतिया से उनके लागी, से करेली छठ बरतिया से उनके लागी ।।
खाली बेटी न बल्कि पढ़ल-लिखल दामाद भी बरती के चाहीं। -‘रुनकी-झुनकी बेटी मांगिला, पढ़ल पंडितवा दामाद…हो छठी मईया, तोहर महिमा अपरमपार’।
छठ के गीतों में देवर के चर्चा बा -कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय बहंगी लचकत जाय होई ना देवर जी कहरिया, बहंगी घाटे पहुंचाय बहंगी घाटे पहुंचाय ऊंहवे जे बारि छठि मैया बहंगी के उनके के जाय बहंगी उनका के जाय। शारदा सिन्हा के हई गीत सुनीं -हमरो सुन लीं पुकार/ससुरा में अईनी कईनी बरतिया/हिवआ जुड़ाई दीहिं पिया के पीरीतिया/अचल सुहाग दीह मईया, कईनी बरत तोहार/गोदिया भराई दीहीं धियवा अऊर पुतवा/अंचरा में भरी दीहीं ममता दुलरवा/ सूपवा चढ़ाईब छठी मैया, देहब अरघ तोहार/ सास-ससुर के रोगवा मिटईह/उनकर कयवा के कंचन बनईह/कंचन बनईह लऊके अन्हार छठी मईया/कर दीहिं घर ऊजियार/देवरा-ननदिया के दीहीं वरदनवा/परजन पुजन पुराई सपनवा
छठ खातिर कवनो पंडित -पुरोहित न चाहीं। परिवार से लेके आस- पड़ोस, गांव -जवार, सब परिवार हो जाला। घाट पर अनजान भी परिवार हो जाला। छठ सामूहिक, आपन बना लेवे के परब ह। बिहार के मैथिली में एगो गीत बा – ‘डोमिन बेटी सुप नेने ठाढ़ छै, उग हो सुरुज देव/ अरघ केर बेर, हो पुजन केर बेर। मालिन बेटी फूल नेने ठाढ़ छै, उग हो सुरुज देव।।’ गीतों में पेड़-पौधे, फूल-पत्ती की विस्तार से चर्चा बा, ओनकर महातम के चर्चा बा। मसलन- ‘कोन जल पटेब मालिन, बेली-चमेली/ मालिन कोन जल पटेब अड़हुल फूल।।’ अइजा परम्परा बा, प्रकृति बा, सरजनहार बाड़े। अब त दुःख – पीड़ा मिटाए के गोहार बा – दिन-रात खटी-खटी पैसा कमाइला, सब कमाई करजा में जाय; हे छठी मइया बिहारे में दे दीं रोजगार।
दुःख के बीच अगर जीयल सीखे के बा त बिहार आईं। कम में गुजार करके कइसे कमर्ठ होके संतोष से सुख से जीयल जाला, इ सीखे के बा त कवनो परदेसी बिहारी के पास जाईं। सब तरह के बेइज्जती के बीच कइसे श्रमदान से लेके …सीमा पर सैनिक जीवनदान करेलन…इ देखे खातिर बिहार आईं। बिहार के नाम पर मजाक आसान ह। राम जी के भी सीता मइया खातिर बिहार के मिथिला में ही आइके पड़ल रहे। बाल्मीकि…लिखलेह तबे रउरा राम जी के जानतनी। बाकी अउरी का कहीं…काहे कि कृतज्ञता बिहार के रोम-रोम में बसल बा -डूबतो सुरुज के जे पूजे इहे बाटे हमर बिहार इहे बाटे हमर बिहार।





