जानिए रामलीला का इतिहास

दिनेश कपूर
यद्यपि रामलीला का प्रदर्शन 1200 ई. से होना आरम्भ हो गया था, संस्कृत राजसी और संभ्रांत भाषा होने के कारण यह राज प्रासादों और धनाढय लोगों के यहां ही प्रदर्शित होती थी। यूं तो इसका प्रचलन वाल्मीकि की रामायण के युग में हुआ पर चूंकि तब की भाषा संस्कृत थी, बाद की पीढ़ियां इसे समझ नहीं पाती थीं। एक किवदंति के अनुसार त्रेता युग में श्री रामचंद्र के वनगमनोपरांत अयोध्यावासियों ने चौदह वर्ष की वियोगावधि राम की बाल लीलाओं का अभिनय कर बिताई थी। तभी से इसकी परंपरा का प्रचलन हुआ।
इसे जन मानस तक ले गए तुलसीदास जिन्होंने रामायण को फिर से लिखा सोलहवीं शताब्दी के मध्य में जन सामान्य की भाषा में जो उस समय अवधी थी। सो उन्होंने अवधी में सरल भाषा में रामचरितमानस लिखी और अकबरनामा में इसका जिक्र है की सम्राट अकबर को इस ग्रन्थ में काफी रुचि थी और उसने इसका अनुवाद फारसी भाषा में भी करवाया था। शासक के प्रोत्साहन से तब 16वीं शताब्दी में रामलीला का मंचन अवधी में जगह-जगह हुआ। एक अन्य जनश्रुति से यह प्रमाणित होता है कि इसके आदि प्रवर्तक मेघा भगत थे जो काशी के कतुआपुर मुहल्ले में स्थित फुटहे हनुमान के निकट के निवासी माने जाते हैं। लिखित सूत्रों के अनुसार ये पहले मंचन थे जो 16वीं शताब्दी के अंत में हुए। तुलसीदास जी की प्रेरणा से अयोध्या और काशी के तुलसी घाट पर प्रथम बार रामलीला हुई थी।
काशी के रामनगर की रामलीला काशी नरेश के सामने होती थी। इसकी समाप्ति रावण के पुतले के दहन के साथ होती थी। लखनऊ में महाराज उदित नारायण सिंह के शासन काल में सन 1776 में रामलीला हुई थी। उन्होंने मिर्जापुर जिले के एक व्यापारी के उलाहने पर रामलीला शुरू की थी। दक्षिण-पूर्व एशिया के इतिहास में कुछ ऐसे प्रमाण मिलते हैं जिससे ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल से ही रामलीला का प्रचलन था। जावा के सम्राट वलितुंग के एक शिलालेख में एक समारोह का विवरण है जिसके अनुसार सिजालुक ने उपर्युक्त अवसर पर नृत्य और गीत के साथ रामायण का मनोरंजक प्रदर्शन किया था। इस शिलालेख की तिथि 907 ई. है।
थाई नरेश बोरमत्रयी (ब्रह्मत्रयी) लोकनाथ की राजभवन नियमावली में रामलीला का उल्लेख है जिसकी तिथि 1458 ई. है। राजा ने 1767 ई. में स्याम (थाईलैड) पर आक्रमण किया था। युद्ध में स्याम पराजित हो गया। विजेता सम्राट अन्य बहुमूल्य सामग्रियों के साथ रामलीला कलाकारों को भी बर्मा ले गया। बर्मा के राजभवन में थाई कलाकारों द्वारा रामलीला का प्रदर्शन होने लगा। माइकेल साइमंस ने बर्मा के राजभवन में राम नाटक 1794 ई. में देखा था। आग्नेय एशिया के विभिन्न देशों म रामलीला के अनेक नाम और रूप हैं। दिल्ली में, सबसे पहली रामलीला पुरानी दिल्ली में हुई थी। यहां रामलीला उस समय हिंदू फौजियों व प्रजा के लिए हुआ करती थी। यह लीला गांधी मैदान में 1924 से होती आ रही है। हिन्दू और मुस्लिम दोनों इन रामलीलाओं में किरदार भी निभाते थे।

(साभार – गृहलक्ष्मी)

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