अधिकार प्राप्त करने के लिए सबसे पहले उनकी जानकारी जरूरी है। अधिकतर महिलाएं अपने अधिकार जानती ही नहीं और इसी कारण से वे ज्यादती सहती हैं। उत्पीड़न का बड़ा कारण अधिकारों की जानकारी न होना है तो कुछ अधिकारों की जानकारी हम आपको दे रहे हैं –
प्रसूति सुविधा अधिनियम 1961 के तहत वे मेटरनिटी लीव ले सकती हैं, महिला गवाह को पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन आने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी न होने से वे शिकायत नहीं कर पाती हैं। अगर उन्हें जानकारी हो तो वे हर परिस्थिति का सामना कर सकती हैं। इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट रूल-5, शेड्यूल-5 के तहत शारीरिक संबंध बनाने के प्रस्ताव को न मानने के कारण कर्मचारी को काम से निकालने व लाभों से वंचित करने पर कार्रवाई का प्रावधान है। समान काम के लिए महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन पाने का अधिकार है।
धारा 66 के मुताबिक महिलाओं को सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे के बाद काम करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। भले ही उन्हें ओवरटाइम दिया जाए। यदि वह शाम 7 बजे के बाद ऑफिस में न रुकना चाहे तो उसे रुकने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। ऑफिस में होने वाले उत्पीड़न के खिलाफ महिला कार्यस्थल प्रताड़ना के लिए सेक्सुअल हैरेसमेंट एक्ट 2013 के तहत प्रकरण दर्ज करा सकती हैं। प्रसूति सुविधा अधिनियम 1961 के तहत महिला मेटरनिटी लीव ले सकती हैं।
पुलिस थाने से जुड़े अधिकार
महिला द्वारा की जाने वाली शिकायत गंभीर प्रकृति की है, तो पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। पुलिस को एफआईआर की कॉपी देना जरूरी है। सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद किसी भी तरह की पूछताछ के लिए किसी भी महिला को पुलिस स्टेशन में नहीं रोका जा सकता। पुलिस स्टेशन में किसी भी महिला से पूछताछ करने या उसकी तलाशी के दौरान महिला आरक्षक का होना जरुरी है। महिला अपराधी की मेडिकल जांच महिला डॉक्टर करेगी या महिला डॉक्टर की उपस्थिति में कोई पुरुष डॉक्टर भी जांच कर सकता है। किसी भी महिला गवाह को पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन आने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। जरुरत पड़ने पर उससे पूछताछ के लिए पुलिस को ही उसके घर जाना होगा।
तो यहाँ करें शिकायत
यदि महिलाओं की पुलिस एफआईआर नहीं करती तो वह इसकी शिकायत एसपी के पास सीआरपीसी धारा 154 के सेक्शन 3 के तहत कर सकती है। इसके अलावा वह कोर्ट में सीआरपीसी धारा 200 के तहत परिवाद दायर कर सकती है। हाईकोर्ट में धारा 482 के तहत परिवाद दायर कर सकती है। साथ ही महिलाओं को निशुल्क कानूनी सहायता पाने के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में शिकायत कर सकती हैं। साथ ही महिलाएं राज्य महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग में भी प्रकरण रजिस्टर करा सकती हैं।
बच्चों से संबंधित अधिकार
बच्चों से संबंधित अधिकार हिन्दू मैरेज एक्ट 1955 के सेक्शन 26 के मुताबिक पत्नी अपने बच्चे की सुरक्षा, भरण-पोषण और शिक्षा के लिए आवेदन कर सकती है। हिन्दू एडॉप्शन एंड सेक्शन एक्ट के तहत कोई भी वयस्क विवाहित या अविवाहित महिला बच्चे को गोद ले सकती है। दाखिले के लिए स्कूल के फॉर्म में पिता का नाम लिखना अब अनिवार्य नहीं है। बच्चे की मां या पिता में से किसी भी एक अभिभावक का नाम लिखना ही पर्याप्त है।
पिता की संपत्ति का अधिकार
भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है। अगर पिता ने खुद बनाई हुई संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति में लड़की को भी उसके भाईयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा। यहंा तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा। जमीन जायदाद से जुड़े अधिकार विवाहित या अविवाहित, महिलाओं को अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा पाने का हक है। इसके अलावा विधवा बहू अपने ससुर से गुजरा भत्ता व संपत्ति में हिस्सा पाने की भी हकदार है।
हिन्दू मैरेज एक्ट
1955 के सेक्शन 26 के मुताबिक पत्नी अपने बच्चे की सुरक्षा, भरण-पोषण और शिक्षा के लिए आवेदन कर सकती है। हिन्दू एडॉप्शन एंड सेक्शन एक्ट के तहत कोई भी वयस्क विवाहित या अविवाहित महिला बच्चे को गोद ले सकती है। दाखिले के लिए स्कूल के फॉर्म में पिता का नाम लिखना अब अनिवार्य नहीं है। बच्चे की मां या पिता में से किसी भी एक अभिभावक का नाम लिखना ही पर्याप्त है। जमीन जायदाद से जुड़े अधिकार विवाहित या अविवाहित, महिलाओं को अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा पाने का हक है। इसके अलावा विधवा बहू अपने ससुर से गुजरा भत्ता व संपत्ति में हिस्सा पाने की भी हकदार है। हिन्दू मैरिज एक्ट 1954 के सेक्शन 27 के तहत पति और पत्नी दोनों की जितनी भी संपत्ति है, उसके बंटवारे की भी मांग पत्नी कर सकती है। पत्नी के अपने ‘स्त्री-धन’ पर भी उसका पूरा अधिकार रहता है। साथ ही कोपार्सेनरी राइट के तहत उन्हें अपने दादाजी या अपने पुरखों द्वारा अर्जित संपत्ति में से भी अपना हिस्सा पाने का पूरा अधिकार है। यह कानून सभी राज्यों में लागू हो चुका है।
अपनी संपत्ति से जुड़े निर्णय
कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अॢजत की गई संपत्ति का जो चाहे कर सकती है। अगर महिला उसे बेचना चाहे या उसे किसी और के नाम करना चाहे तो इसमें कोई और दखल नहीं दे सकता। महिला चाहे तो उस संपत्ति से अपने बच्चों को बेदखल भी कर सकती है।
घरेलू हिंसा से सुरक्षा
महिलाओं को अपने पिता या फिर पति के घर सुरक्षित रखने के लिए घरेलू हिंसा कानून है। आम तौर पर केवल पति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस कानून के दायरे में महिला का कोई भी घरेलू संबंधी आ सकता है। घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताडऩा। ये भी जान लीजिये कि केवल मारपीट ही नहीं फिर मानसिक या आॢथक प्रताडऩा भी घरेलू हिंसा के बराबर है। ताने मारना, गाली-गलौज करना या फिर किसी और तरह से महिला को भावनात्मक ठेस पहुंचाना अपराध है। किसी महिला को घर से निकाला जाना, उसका वेतन छीन लेना या फिर नौकरी से संबंधित दस्तावेज अपने कब्जे में ले लेना भी प्रताडऩा है, जिसके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला बनता है। बिना शादी साथ रहने यानी ‘लिव इन’ संबंधों में भी यह लागू होता है।
मुफ्त कानूनी मदद लेने का हक
अगर कोई महिला किसी केस में अभियुक्त है तो महिलाओं के लिए कानूनी मदद नि:शुल्क है। वह अदालत से सरकारी खर्चे पर वकील करने का अनुरोध कर सकती है। यह केवल गरीब ही नहीं बल्कि किसी भी आॢथक स्थिति की महिला के लिए है। पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता समिति से संपर्क करती है, जो कि महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देने की व्यवस्था करती है।
(साभार – दैनिक भास्कर और न्यूज ट्रैक)