पटना. चार दिन तक चलने वाले छठ महापर्व का पहला अर्घ्य आज है। भले ही यह पर्व हिंदुओं का है, लेकिन मुस्लिम समाज के लोगों को भी इस पर्व का इंतजार रहता है। मुस्लिम समुदाय के लोग भी छठी मइया की महिमा पर विश्वास करते हैं। इसी विश्वास का परिणाम है कि कहीं मुस्लिम समाज के लोग घाटों की सफाई तो करते ही हैं साथ ही इस दौरान वे त्योहार से कुछ दिन पहले नॉनवेज खाना बंद कर देते हैं। वे हर तरह से छठ व्रत करने वालों की सेवा करते हैं।
छठ पर्व में पवित्रता का खास महत्व है। पर्व से जुड़े प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर बनाए जाते हैं। कद्दू भात से लेकर खरना और इस पर्व के सभी प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर बनाने की परंपरा है।
पटना के वीरचंद पटेल रोड में मुस्लिम समुदाय के दर्जन से ज्यादा लोग, सालों से ये चूल्हे बनाते हैं। चूल्हा बनाते-बनाते उनका भी इस महापर्व से जुड़ाव हो गया है।मिट्टी के चूल्हा बनाने की शुरुआत करने से पहले ही ये लोग मांसहार खाना बंद कर देते हैं। चूल्हा बनाने से पहले नहाते हैं और इस दौरान पवित्रता का पूरा खयाल रखते हैं।
इस दौरान साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है। इनमें से कई लोग इस दौरान छठ माई से मनोकामना भी मानते हैं और पूरा होने पर चढ़ावा चढ़ाते हैं। शहदा खातून ने कहा कि हम चूल्हा बनाने से पहले नहाते हैं, क्योंकि हम इस पर्व की महिमा को जानते हैं। साजनी ने बताया हमें ये कला विरासत में मिली है। बचपन से मैंने अपने अब्बा, अम्मी और दादी को चूल्हा बनाते देखा है। मैं इस काम को 15 सालों से कर रही हूं। छठ पर्व की अहमियत हमारे लिए भी बहुत खास होती है।
वर्षों से कर रहे हैं काम, मन्नत पूरी होने पर चढ़ाते हैं चढ़ावा
संजीदा खातून ने कहा कि हम वर्षों से यह काम कर रहे हैं, इसलिए इस पर्व से हमारा भी जुड़ाव हो गया है। इस पूजा को हम सबसे महान पूजा मानते हैं। हम अपने आपको भाग्यशाली मानते हैं कि हमारे बनाए चूल्हे पर इस महापर्व का प्रसाद बनता है। इससे ज्यादा सुकून की बात क्या होगी?
35 वर्षीय फुलो ने कहा कि मैंने पिछले साल भी अपने बेटे की सलामती के लिए मनोकामना मांगी थी और मेरा बेटा स्वस्थ है। हम हिंदू परिवार में जाकर पैसे दे देते हैं और हमारे नाम का चढ़ावा चढ़ जाता है। हमें भी हर साल इस पर्व का इंतजार रहता है। कुरेशा खातून ने कहा कि हम चूल्हे बनाने के दौरान सफाई का विशेष ध्यान रखते हैं। मोहम्मद कैसर ने बताया कि हिंदू हो या मुस्लिम सब का खून तो लाल ही होता है। हमें इस पर्व में भाग लेने का मौका मिलता है, हम खुद को किस्मत वाले मानते हैं।