कोलकाता । कलकत्ते की सुप्रसिद्ध संस्था लिटिल थेस्पियन का 14वा राष्ट्रीय नाट्य उत्सव जश्न -ए -अज़हर का चौथा दिन ज्ञान मंच के प्रांगण में संपन्न हुआ। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से आयोजित इस नाट्य उत्सव के चौथे दिन का प्रथम सत्र, संवाद सत्र था जिसका केंद्रीय विषय था प्रताप सहगल के नाटकों में मानवीय अस्तित्व की खोज। इस संवाद सत्र में मंच पर वक्त के रूप में उपस्थित थे ,डॉ. शुभ्रा उपाध्याय (कोलकाता) ,डॉ. ईतू सिंह (कोलकाता), डॉ. रेशमी पांडा मुखर्जी (कोलकाता), डॉ. कृष्ण कृष्ण श्रीवास्तव (आसनसोल) ,श्री अशरफ अली (दिल्ली), गौरव दास (कोलकाता)।
इतू सिंह ने इस विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि मानवीय संवेदना के बिना साहित्य नहीं लिखा जा सकता।नाटक पढ़ने से अधिक देखने में समझ आता है यही रंगमंच की सबसे बड़ी उपलब्धि है । प्रताप सहगल अपने नाटकों में मानवीय मूल्यों को केंद्र में रखते है। डॉ शुभ्रा उपाध्याय ने रामायण के उदाहरण से अपनी बात शुरू करते हुए बोलती है कि मानवीय अस्मिता मनुष्य होने की पहचान है। रंगबसंती पर बात करते हु कहा कि पात्र भगत सिंह के भीतर मानवीय मूल्यों को बचाने की चाह नज़र आती है। अन्वेषक और तीन गुमशुदा लोग पर भी अपनी बात रखी।
कृष्ण कुमार श्रीवास्तव अंतराल, कोई ओर रास्ता, फैसला इन नाटकों की स्त्री पात्र पर अपनी बात रखी और स्त्री के भीतर की संवेदना को मुख्य रूप से रेखांकित करते है। अशरफ़ अली ने तीन गुमशुदा नाटक पर टिप्पणी करते हुए लेखक और निर्देशक के विचारों की समन्वय पर अपनी बात रखी और रंगमंच के तथ्यों को रेखांकित करते है। डॉ गौरव दास ने कहा कि प्रताप सहगल के सभी नाटक संवेदनाओं से भरपूर है । दूसरे सत्र में खुर्शीद एकराम मन्ना को उनके नाटक में योगदान के लिए सम्मानित किया गया। तीसरे सत्र में प्रताप सहगल का नाटक ‘ तीन गुमशुदा लोग ‘ का मंचन अशरफ अली के निर्देशन में अनुरागना थिएटर ग्रुप द्वारा प्रस्तुत किया गया। नाटक ‘तीन गुमशुदा लोग’, तीन कहानियों – ‘जुगलबंदी’, ‘क्रॉस रोड्स’, और ‘मछली मछली कितना पानी’ का एक आकर्षक और विविध संग्रह है, जो प्रतिष्ठित डॉ. प्रताप सेहगल द्वारा लिखा गया है। अशरफ अली के निर्देशन में, ये तीन स्वतंत्र कथाएं एक एकीकृत, आत्मा-स्पर्शी रंगमंचीय अनुभव में मिल जाती हैं। यह मर्मस्पर्शी नाटक जीवन के अस्तित्ववादी संकटों की एक विचारोत्तेजक खोज है, जो शांत रूप से दर्शकों को अपने भीतर एक आत्म-निरीक्षण यात्रा पर निकलने के लिए प्रेरित करती है।
तीसरे दिन प्रथम सत्र में नाटककार प्रताप सहगल के नाटक ‘ बच्चे बड़े हो रहे हैं ‘ का मंचन हुआ जिसके निर्देशक गौरव दास, नाट्य संस्था संतोषपुर अनुचिंतन के द्वारा प्रस्तुत किया गया। “बच्चे बड़े हो रहे हैं” एक ऐसा नाटक है जो प्रताप सहगल की कविता के माध्यम से कोलकाता के पेयराबागान की झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों के बच्चों के जीवन पर प्रकाश डालता है। यह नाटक पेयराबागान की झुग्गी-झोपड़ी से एक समूह के बच्चों के किशोरावस्था में प्रवेश करने की एक आउट-ऑफ-द-वर्ल्ड कहानी सुनाता है। जश्न- ए- अज़हर के तीसरे दिन रंगमंच की प्रसिद्ध रंगकर्मी, अभिनेत्री सीमा घोष को उनके नाटक में योगदान के लिए सम्मानित किया गया। दूसरे सत्र में नाटक अंतराल का मंचन गौरी देवल नाट्य संस्था यूनिकॉर्न एक्टर्स स्टूडियो, दिल्ली के निर्देशन में हुआ जिसके नाटककार प्रताप सेहगल है। अंतराल, एक ऐसा नाटक है जो मूल्यों की हमेशा बदलती प्रकृति से संबंधित है। यह नाटक एक खोजी गई मान्यता पर आधारित है, कि मूल्य, चाहे वे कितने भी उच्च या निर्दोष क्यों न हों, धीरे-धीरे अपने गौरव में एक अवधि के दौरान फीके पड़ जाते हैं। यह अवधि, यह अंतराल जो लोगों के मन और जीवन के बीच मौजूद है और यह कि प्रत्येक व्यक्तिगत जीवन एक ही तरह के मूल्यों द्वारा शासित नहीं हो सकता है। मंजू एक बुद्धिमान महिला है जो त्रासदी से आकारित हुई है।