लोक मान्यता का महापर्व माना जाता है छठ। छठ पूजा के दौरान महिलाएं 36 घंटे का कठिन निर्जल व्रत रखती हैं और भगवान सूर्य एवं छठी मैया की पूजा कर संतान की उन्नति और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। चार दिनों तक चलने वाली छठ पूजा में पहले दिन नहाय खाय होता है, दूसरे दिन खरना किया जाता है, तीसरे दिन सूर्य को संध्या अर्घ्य दिया जाता है और चौथा यानी कि अंतिम दिन उषा अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा कृतज्ञता बोध का पर्व है । अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देना इसी कृतज्ञताबोध का प्रतीक है और उदित होते सूर्य को अर्घ्य देना आशा का प्रतीक है ।
शास्त्रों में सूर्य देव को ग्रहों का राजा माना जाता है। सूर्य देव की पूजा से व्यक्ति का भाग्य साथ देने लगता है, सौभाग्य में वृद्धि होती है, कैसा भी रोग क्यों न हो वह दूर हो जाता है और अगर जीवन में सफलता पाने में दिक्कत आ रही हो या बाधाएं आ रही हों तो वो भी दूर हो जाती हैं और भरपूर तरक्की होती है।
सूर्य देव की पूजा करने से और विशेष रूप से उन्हें रोजाना अर्घ्य देने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन के संकट दूर हो जाते हैं। इसी कारण से रामायण में भगवान श्री राम और महाभारत में कर्ण ने अपने जीवनकाल में हमेशा सूर्य को जल चढ़ाया और सूर्य की विधिवत पूजा-आराधना भी की।
ऐसा माना जाता है कि जब पहली बार माता सीता ने छठ पूजा की शुरुआत की थी तब मात सीता ने भी सूर्य को अर्घ्य दिया था और तभी से यह परंपरा चली आ रही है। इसके अलावा, लव-कुश के जन्म से पूर्व और बाद में भी माता सीता रोजाना उनकी सुख-समृद्धि के लिए सूर्य को जल अर्पित किया करती थीं।
छठ पूजा के दौरान सूर्य को अर्घ्य दो बार दिया जाता है, एक बार छठ पूजा के तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और छठ पूजा के चौथे दिन प्रातः काल का अर्घ्य। मान्यता है कि छठ पूजा के दौरान सूर्य को अर्घ्य देने से संतान को उच्च पद की प्राप्ति होती है और धन, वैभव, ऐश्वर्य से जीवन परिपूर्ण रहता है।