सूर्य की उपासना का सबसे बड़ा त्योहार छठ पर्व 24 अक्टूबर से नहाय खाय के साथ शुरू होगा। 25 अक्टूबर को खरना, 26 अक्टूबर को सांझ का अर्ध्य और 27 अक्टूबर को सूर्य को सुबह का अर्ध्य के साथ ये त्योहार संपन्न होगा। इस मौके पर देश में कई सूर्य मंदिर है जहां पर विशेष पूजा- आराधना की जाती है। आइए जानते है कुछ प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों के बारे में –
कोणार्क सूर्य मंदिर
कोणार्क सूर्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है। ओडिशा राज्य मे पुरी के निकट कोणार्क का सूर्य मंदिर स्थित है। रथ के आकार में बनाया गया यह मंदिर भारत की मध्यकालीन वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। इस सूर्य मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। मंदिर अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए दुनिया भर में जाना जाता है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार सूर्य देवता के रथ में बारह जोड़ी पहिए हैं और रथ को खींचने के लिए उसमें 7 घोड़े जुते हुए हैं। रथ के आकार में बने कोणार्क के इस मंदिर में भी पत्थर के पहिए और घोड़े है। ऐसा शानदार मंदिर विश्व में शायद ही कहीं हो। इसे देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक यहां आते हैं। यहां की सूर्य प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सुरक्षित रखी गई है और अब यहां कोई भी देव मूर्ति नहीं है।
सूर्य मंदिर समय की गति को भी दर्शाता है, जिसे सूर्य देवता नियंत्रित करते हैं। पूर्व दिशा की ओर जुते हुए मंदिर के 7 घोड़े सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं। 12 जोड़ी पहिए दिन के चौबीस घंटे दर्शाते हैं, वहीं इनमें लगी 8 ताड़ियां दिन के आठों प्रहर की प्रतीक स्वरूप है। कुछ लोगों का मानना है कि 12 जोड़ी पहिए साल के बारह महीनों को दर्शाते हैं। पूरे मंदिर में पत्थरों पर कई विषयों और दृश्यों पर मूर्तियां बनाई गई हैं।
मोढ़ेरा का सूर्य मंदिर
अहमदाबाद से लगभग 100 किलोमीटर दूर मोढ़ेरा का सूर्य मंदिर सबसे प्राचीन माना जाता है। इसे सूर्यवंशी सम्राट भीमदेव सोलंकी प्रथम ने बनवाया था। मंदिर में गर्भगृह, सभामंडप और सूर्य कुण्ड बना है। छठ की छठा में ये मंदिर और दिव्य प्रतीत होता है। यह मंदिर अहमदाबाद से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सम्राट भीमदेव सोलंकी प्रथम ने करवाया था। यहां पर इसके संबंध में एक शिलालेख भी मिलता है। सोलंकी सूर्यवंशी थे, वे सूर्य को कुलदेवता के रूप में पूजते थे। इसलिए उन्होंने अपने आराध्य देवता की आराधना के लिए एक भव्य सूर्य मंदिर बनाने का निश्चय किया। इस प्रकार मोढ़ेरा के सूर्य मंदिर ने आकार लिया। भारत में तीन सबसे प्राचीन सूर्य मंदिर हैं जिसमें पहला ओडिशा का कोणार्क मंदिर, दूसरा जम्मू में स्थित मार्तंड मंदिर और तीसरा गुजरात के मोढ़ेरा का सूर्य मंदिर। यह मंदिर उस समय की शिल्पकला का एक अनोखा उदाहरण है। इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि पूरे मंदिर के निर्माण में जुड़ाई के लिए कहीं भी चूने का उपयोग नहीं किया गया है। ईरानी शैली में निर्मित इस मंदिर को भीमदेव ने तीन हिस्सों में बनवाया था। पहला हिस्सा गर्भगृह, दूसरा सभामंडप और तीसरा सूर्य कुण्ड है। मंदिर के गर्भगृह के अंदर की लंबाई 51 फुट 9 इंच तथा चौड़ाई 25 फुट 8 इंच है। मंदिर के सभामंडप में कुल 52 स्तंभ हैं। इन स्तंभों पर बेहतरीन कारीगरी से विभिन्न देवी-देवताओं के चित्रों और रामायण तथा महाभारत के प्रसंगों को उकेरा गया है। इन स्तंभों को नीचे की ओर देखने पर वह अष्टकोणाकार और ऊपर की ओर देखने पर वह गोल दृश्यमान होते हैं। इस मंदिर का निर्माण कुछ इस तरह किया गया था कि जिसमें सूर्योदय होने पर सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह को रोशन करे। सभामंडप के आगे एक विशाल कुंड स्थित है जिसे लोग सूर्यकुंड या रामकुंड के नाम से जानते हैं। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने आक्रमण के दौरान मंदिर को काफी नुकसान पहुुंचाया और मंदिर की मूर्तियों की तोड़-फोड़ की। वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को अपने संरक्षण में ले लिया है।
अनंतनाग में मार्तंड सूर्य मंदिर
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के पास अनंतनाग में मार्तंड सूर्य मंदिर स्थित है। इसे मध्यकालीन युग में 7वीं से 8वीं शताब्दी के दौरान राजा ललितादित्य ने बनवाया था। पर्यटकों के लिए ये सूर्य मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। मार्तण्ड सूर्य मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के अनंतनाग नगर में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। मार्तण्ड का यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। यहाँ पर सूर्य की पहली किरन के साथ ही मंदिर में पूजा अर्चना का दौर शुरू हो जाता है। मंदिर की उत्तरी दिशा से खूबसूरत पर्वतों का नज़ारा भी देखा जा सकता हैं। यह मंदिर विश्व के सुंदर मंदिरों की श्रेणी में भी अपना स्थान बनाए हुए है। इस मंदिर का निर्माण कर्कोटक वंश से संबंधित राजा ललितादित्य मुक्तापीड द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर सातवीं-आठवीं शताब्दी पूर्व का है। यह मंदिर सन् 725-756 ई. के मध्य बना था।
मार्तण्ड सूर्य मंदिर का प्रांगण 220 फुट X 142 फुट है। यह मंदिर 60 फुट लम्बा और 38 फुट चौड़ा था। इस के चतुर्दिक लगभग 80 प्रकोष्ठों के अवशेष वर्तमान में हैं। इसके द्वारों पर त्रिपार्श्वित चाप (मेहराब) थे, जो इस मंदिर की वास्तुकला की विशेषता है। द्वारमंडप तथा मंदिर के स्तम्भों की वास्तु-शैली रोम की डोरिक शैली से कुछ अंशों में मिलती-जुलती है। मार्तण्ड मंदिर अपनी वास्तुकला के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है। यह मंदिर कश्मीरी हिंदू राजाओं की स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है। कश्मीर का यह मंदिर वहाँ की निर्माण शैली को व्यक्त करता है। इसके स्तंभों में ग्रीक सरंचना का इस्तेमाल भी किया गया है।
भोजपुर के बेलाउर का सूर्य मंदिर
वैसे तो बिहार और पूर्वांचल में छठ का पर्व जोर-शोर से मनाया जाता है, लेकिन भोजपुर जिले के बेलाउर का सूर्य मंदिर खास है। हर साल छठ मनाने के लिए हजारों श्रद्धालु इस मंदिर का रुख करते हैं। प्रखंड के बेलाउर में छठ व्रत करने का अपना महत्व है। यहां भगवान सूर्य का एक भव्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिभिमुख है। यह मंदिर छठ मे व्रतियों के लिए पूजा का मुख्य केंद्र बन जाता है। आरा-सहार पथ पर बेलाउर का सूर्य मंदिर स्थित है। जहां प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु विभिन्न जिलों से मनौती पूर्ण होने पर उज्जवल भविष्य की कामना करने के लिए श्रद्धा और विश्वास के साथ आते हैं। संवत् 2007 में मौनी बाबा (करवासीन) निवासी ने मंदिर का निर्माण कराया। प्रचलित है कि इसके पूर्व उन्होंने 12 वर्षो तक साधना की थी। उसी क्रम में भगवान सूर्य की मंदिर बनवाने की इच्छा प्रकट की।मंदिर में सात घोड़े वाले रथ पर सवार भगवान भास्कर की प्रतिमा ऐसी लगती है मानों वे साक्षात धरती पर उतर रहे हों। उनकी मनोरम छवि का दर्शन कर श्रद्धालु प्रसन्न हो जाते हैं। मंदिर के चारों कोने पर मकराना संगमरमर से बनी दुर्गा जी, शंकर जी, गणेश जी और विष्णु जी की प्रतिमा है। पोखरा के ठीक बीचोबीच निर्मित मंदिर आकर्षक और भव्य दिखाई पड़ता है।