छठ महापर्व सिर्फ महापर्व नहीं बल्कि एक भावना है। अब वैश्विक हो चला यह पर्व प्रकृति के प्रति समर्पण और कृतज्ञता बोध की अभिव्यक्ति है। कृतज्ञता बोध उस प्रकृति के प्रति जिसने हमें जीवन दिया है, उर्जा के स्रोत उस सूर्य के प्रति जो धरती की उर्जा का आधार है । हर उस व्यक्ति के प्रति जो समाज को सुन्दर बनाने के लिए ताप सहता रहा, जलता रहा दीये की तरह आजीवन। जब दीये और सूर्य की बात होती है तो छठी मइया की बात होती है, छठ के गीतों की बात होती है और छठ के गीतों की बात होती है तो अनायास किवदंती गायिका शारदा सिन्हा की आवाज गूंज उठती है। एक समय था जब छठ पूजा को मात्र यूपी व बिहार का पर्व मानकर हिन्दीभाषियों के प्रति उपेक्षाभाव के कारण कमतर समझा जाता था । शारदा सिन्हा हमारी लोक संस्कृति के आकाश में ऐसे कठिन समय में सूर्य की तरह उभरीं और हमारी लोक संस्कृति की माला में हमारे लोकगीतों को गूंथकर ऐसा हार बना दिया जिसे आज हम गर्व से पहन रहे हैं । आजीवन सूर्य की तरह तपतीं रहीं और इस बार छठी मइया अपनी इस दुलारी बिटिया को साथ ही लेती गयीं । छठ के घाटों पर कोकिल कंठी शारदा जी के गीत गूंजते रहेंगे सदा सदा के लिए। वैसे यह समय है कि छठ के पारम्परिक गीतों को आधुनिकता और समानता के स्वर दिए जाएं क्योंकि समय बदल चुका है तो समाज को बदलना है और छठ के गीत परिवर्तन की आवाज बन सकते हैं…कम से कम उन चीजों को तो छोड़ ही सकते हैं जो सामाजिक विषमता का प्रतीक हैं और छठी मइया को यह अच्छा भी लगेगा क्योंकि मां अपने बच्चों में कोई भेद नहीं करतीं, ये हम हैं जो अपने स्वार्थ के लिए परम्परा को दूषित करते हैं। गायकों और गीतकारों की भूमिका बहुत बड़ी है । छठ के गीतों को परिवर्तन की आवाज बनाइए । शारदा सिन्हा जी को सादर नमन करते हुए शुभजिता के छठ विशेषांक का अर्घ्य छठी मइया के चरणों में हम रख रहे हैं….रउरा सभे के छठ पूजा के अनघा बधाई..।
सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया
सम्पादक, शुभजिता