गोरखपुर : गीता के कठिन श्लोक पढ़ने में आसानी हो, इसके लिए अब सरल गीता का प्रकाशन हो रहा है। इस वर्ष की शुरुआत में गीता प्रेस गोरखपुर ने विशेष रूप से बच्चों के लिए ऐसी गीता तैयार की है। इसके तहत संस्कृत के मूल श्लोकों के लंबे-लंबे शब्दों के उच्चारण को आसान बनाने के लिए उनके बीच अंतर (डैश लगाकर) दिया गया है। मूल श्लोकों के साथ ही लाल-काले रंग में यह श्लोक प्रकाशित किए गए हैं। इस संबंध में गीता प्रेस के उत्पाद प्रबंधक डाॅ. लालमणि तिवारी ने कहा कि अभी भी ऐसे बहुत से लोग हैं जो गीता के श्लोकों को सही उच्चारण के साथ नहीं पढ़ पाते हैं। इसे ध्यान में रखकर सरल गीता तैयार की गई है, जिससे वे गीता के श्लोकों को आसानी से सही पढ़ सकें। खासतौर पर बच्चे। सरल गीता के अलावा गीताप्रेस धार्मिक किताबों के साथ ही विभिन्न संस्कारों की पद्धतियां भी प्रकाशित करने जा रही है। मार्च अंत तक विवाह संस्कार, उपनयन संस्कार पद्धति का प्रकाशन शुरू हो जाएगा। गीताप्रेस हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, नेपाली सहित 15 भाषाओं में 1800 प्रकार की पुस्तकों का प्रकाशन कर रहा है। स्थापना से लेकर वर्ष 2018 तक के 95 सालों में सवा चौदह करोड़ से अधिक गीता और तीन करोड़ 35 लाख से अधिक रामचरित मानस (रामायण सहित) की प्रतियाें का प्रकाशन गीताप्रेस ने किया है। संस्कारों पर पुस्तक प्रकाशन के संबंध में तिवारी ने कहा कि 16 संस्कारों के विषय में हम जागरूक नहीं हैं। यज्ञोपवीत (उपनयन), विवाह और अंत्येष्ठि तीन ही संस्कार मुख्य रूप से बचे हैं। जो संस्कृति विकसित हो रही है उसमें मंत्रों से ज्यादा यंत्रों का प्रयोग बढ़ा है। विवाह आदि संस्कार तो आधा-एक घंटे में ही हो रहे हैं, फोकस जयमाला और फोटोग्राफी तक सीमित हो गया है। संस्कारों की यह पुस्तकें लोगों को उनके महत्व व विधि को बताएंगी। दो वर्ष पहले संस्कार प्रकाश पुस्तक प्रकाशित की थी जिसमें सभी संस्कारों के बारे में संक्षिप्त जानकारी थी लेकिन पूर्णरूप से विधि-विधान नहीं था। वर्ष 2018 में श्रीमद्भागवत महापुराण श्रीधरीटीका गुजराती में और महाभारत तेलुगु में गीताप्रेस ने प्रकाशित की थी। अब 2019 में मलयालम में भागवत महापुराण प्रकाशित होगा। आर्थिक तंगी जैसी कोई बात नहीं है। यह केवल अफवाह है। बीते चार साल में 20 करोड़ रुपए से अधिक की मशीनें करीब दो लाख वर्गफुट में फैले परिसर में लगाई गई हैं। गीताप्रेस के देशभर में 21 ब्रांच ऑफिस और 52 स्टेशनों पर स्टॉल हैं।
(साभार – दैनिक भास्कर पर धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया की रिपोर्ट)