कोलकाता : एक जमाने में कोलकाता की काफी फलता-फूलता रहा समुदाय पारसी की संख्या अब घट रही है और अब यह केवल 500 रह गयी है। इस समुदाय को अपनी आबादी में और गिरावट का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि सुनहरे भविष्य की आस में युवा शहर छोड़ रहे हैं।
समुदाय के वरिष्ठ ट्रस्टी और सदस्य बहादुर पोस्तवाला ने बताया, ‘‘1930 के दशक में जब हमारी संख्या बढ़ रही थी उसके मुकाबले इसमें काफी गिरावट आयी है। 1960 और 70 के दशकों के दौरान हमारे लोगों ने कोलकाता छोड़ना शुरू कर दिया और अब केवल 500 लोगों की संख्या रह गयी जो जिसमें से युवाओं की संख्या 50 प्रतिशत से कम है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘शहर में नौकरी का वर्तमान परिदृश्य आशान्वित करने वाला नहीं है। काफी युवा कनाडा, आस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड और भारत के कई अन्य शहरों में जाकर बस गये। यह 1960 के दशक में शुरू हुआ था और इसमें लगातार बढ़ोतरी ही हुयी। हालांकि, हम लोग लगातार संपर्क में रहते हैं।’’ उन्होंने बताया कि शहर से युवाओं की यादें जुड़ी हुयी हैं और वे त्यौहारों के दौरान यहां आते रहते हैं।
पोस्तवाला ने बताया, ‘‘यह आपसी सौहार्द से ओत-पोत समुदाय है। हम एक साल में करीब 50 बार मिलते हैं। साथ ही इस मुश्किल घड़ी में हमारा समुदाय एक जीवंत है लेकिन दुखद बात यह है कि हमारी संख्या में गिरावट आ रही है।’’ मुंबई के मुकाबले कम जाने जाने वाले इस शहर में 18 वीं शताब्दी के अंत में सूरत से पारसी समुदायों का आगमन हुआ था। पूर्वी भारत और ब्रिटिश भारत की राजधानी के दौरान शहर में ब्रिटिश शासनकाल में इनकी संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गयी थी।