वाराणसी : काशी में नागपंचमी को नागकूप पर होने वाले शास्त्रार्थ की सदियों पुरानी परंपरा का इस वर्ष ऑनलाइन निर्वहन होगा। कोरोना संक्रमण के चलते ऐसा पहली बार होगा। नागकूप का संबंध महर्षि पतंजलि से है। ऐसी मान्यता है कि यहां श्रावण शुक्ल पंचमी तिथि पर शास्त्रार्थ करने से वाणी पवित्र होती है और मेधा शक्ति का विकास होता है। नागपंचमी, 25 जुलाई को प्रातः नागकूपेश्वर महादेव का पांच वैयाकरण विद्वान पाणिनी अष्टाध्यायी से विल्वार्चन करेंगे। यह अनुष्ठान श्रीविद्यामठ के प्रभारी स्वामी अविमुक्तेश्वारानन्द सरस्वती के सानिध्य में होगा। इसके बाद नागकूप शास्त्रार्थ समिति की ओर से राष्ट्रीय वेबिनार होगा। वेबिनार में शास्त्रार्थ, शोधपत्र वाचन और व्याकरण शास्त्र पर चर्चा की जाएगी। प्रतिवर्ष इस अनुष्ठान में सैकड़ो संस्कृतसेवी उपस्थित होते हैं। देश के कोने कोने के विद्वान नागपंचमी पर नागकूप में शोधपत्रों का वाचन करते हैं। काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष महामहोपाध्याय पं. रामयत्न शुक्ल ने वर्ष-1995 में नागकूप शास्त्रार्थ समिति का गठन कर इस आयोजन को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया। देश के ख्यातिलब्ध विद्वान और विद्यार्थी यहां शास्त्रार्थ के लिए आने लगे। संस्कृत की सेवा करने वाले देश के पांच विद्वानों को प्रति वर्ष सम्मानित भी किया जाता है मगर इस वर्ष सम्मान समारोह स्थगित रहेगा। अगले वर्ष दस विद्वानों को एक साथ सम्मानित किया जाएगा।
नागकूप शास्त्रार्थ समिति काशी में प्रतिमास शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को मठों, संस्कृत विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में शास्त्रार्थ सभा कराती है। शास्त्रार्थ में विजयी होने वाले विद्वानों और छात्रों को सम्मानित किया जाता है।