जिन्दगी में अच्छे दोस्तों की जरूरत सबको पड़ती है फिर भले ही आप सिंगल हों या मिंगल। दोस्त होते भी हैं मगर आमतौर पर उनका साथ शादी के बाद कम हो जाता है और अगर दोस्ती महिलाओं और पुरुषों के बीच हुई तो खत्म ही हो जाती है। यकीन नहीं होता मगर एक अजनबीपन रिश्ते में तो आ ही जाता है क्योंकि अपने जीवनसाथी के सामने किसी महिला या पुरुष दोस्त के कंधे पर हाथ रखकर, या धौल मारकर आप खिलखिला नहीं सकते और न ही उसकी खिंचाई कर सकते हैं। सच तो यह है कि हम चाहते ही नहीं हैं कि हमारा जीवनसाथी हमारे दोस्तों के करीब हो या हमारी जिन्दगी के उन अनछुए पहलुओं को जाने जो हम छिपाकर रखना चाहते हैं। एक बात तो तय है कि शादी के बाद आपकी प्राथमिकता बदल जाती है क्योंकि सहेलियों या दोस्तों के साथ रहते हुए भी आप उनके साथ नहीं होते। आपकी जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं। सच तो यह है कि दोस्ती और प्यार या फिर शादी में लोग अपनी शादी बचाते हैं या फिर प्यार बचाते हैं। ये लड़कियों के साथ भी होता है और लड़कों के साथ भी होता है। जिन्दगी का एक लम्बा अरसा किसी शख्स के साथ गुजारने के बाद आप एक शख्स को इसलिए धोखा देने और छोड़ने पर मजबूर होते हैं क्योंकि आपका जीवनसाथी या परिवार उसे पसन्द नहीं करता और आप दोनों पर शक किया जाता है। हमारे समाज का ढांचा ही विचित्र है जो स्मार्ट फोन चलाता है मगर अपनी सोच को अपडेट करने की जरूरत नहीं समझता। इसके बाद जिन्दगी भर या तो खुदगर्ज होकर जीने पर मजबूर होते हैं या फिर अपराधबोध के साथ घुटते रहते हैं क्योंकि आपकी स्थिति ऐसी हो जाती है कि आप सैंडविच बन चुके होते हैं और अनायास ही आप अपने दोस्त को खो चुके होते हैं जो आपके हर अच्छे – बुरे वक्त में आपके साथ रहा, आपके दुःख में रोया और आपकी सफलता पर नाचा…जिसके कँधे पर सिर रखकर आप रोये..आप जानते हैं कि यह आपकी निजी क्षति है और आप इसकी भरपाई कभी नहीं कर सकेंगे और न ही आपका जीवनसाथी कर सकेगा।
लव यू जिन्दगी में एक संवाद है….हम अपने एक रोमांटिक रिश्ते पर सारे रिश्तों का बोझ डाल देते हैं और उसी से सारी अपेक्षायें रखते हैं मगर ये नहीं समझ पाते कि ऐसा नहीं हो सकता। जब ये उम्मीदें पूरी नहीं होतीं तो विश्वास दरकने में समय नहीं लगता और जब आपका त्याग कुंठा में बदलता जाता है। आप न चाहते हुए भी अपने साथी को दोषी मानते हैं और आपकी तल्खी आपके व्यवहार में दिखती है। आप चाहे किसी एक को चुनें या किसी एक को छोड़ें, वह क्षति तो आपकी ही है। जिन्दगी में हर रिश्ते की अपनी एक जगह है और एक रिश्ता दूसरे रिश्ते की कमी पूरी नहीं कर सकता। अगर दोस्त आपके जीवनसाथी नहीं बन सकते तो आपका जीवनसाथी हर बार आपका अच्छा दोस्त साबित हो या आपका हमराज बन जाये, यह जरूरी नहीं है। बेहतर हो कि दोस्ती का दायरा भी ऐसा ही विस्तृत हो और आपका साथी उसका हिस्सा बने। आप भी अपने साथी को उसका स्पेस दें और उसके पुराने दोस्तों से मिलवायें या खुद दोस्ती करें…मुश्किल है..मगर नामुमकिन नहीं है।
अब सवाल उठता है कि ऐसा क्यों होता है.कि शादी के बाद आप बदलते हैं या आपकी प्राथमिकतायें बदलती हैं। खुद से सवाल कीजिये कि क्या आपने कभी अपनी पत्नी या अपने पति को उसका स्पेस दिया है या उसके दोस्तों के बीच में आये हैं? ..जरा अपनी आदतों और बातचीत के तरीके पर गौर फरमाइये…अधिकतर लड़के या लड़कियों की शब्दावली अपने जीवनसाथी को लेकर कुछ ऐसी होती है कि मैं रखूँगा..मैं करवाऊंगा….मेरा होगा…मेरी पसन्अद चलेगी। अच्छा लगता है यह सुनने में मगर आपके ये शब्द अनायास ही वह स्पेस छीन रहे हैं कि जो कि उसका है। शादी के बाद क्या किसी का व्यक्तित्व खत्म हो जाना चाहिए…? लड़कों की बात करें तो यह सोच ही क्यों रहे कि उसके फैसले आप लेंगे और यही बात लड़कियों पर भी लागू होती है। कई लोग अपने साथी का सोशल प्रोफाइल से लेकर मोबाइल तक चेक करते हैं तो कुछ ऐसे होते हैं कि चाहते ही नहीं कि उसकी पत्नी फेसबुक या व्हाट्सऐप इस्तेमाल करे। अगर वह इस्तेमाल करती या करता है तो उसके दोस्तों पर नजर रखते हैं और अगर लड़कों या लड़कियों की संख्या ज्यादा हुई तो कई बार अकाउंट बंद करवा देते हैं। उस पर दोहरापन ये कि खुद लड़कियों से दोस्ती करेंगे तो ऐसी स्थिति में घर में अगर झगड़े नहीं होंगे तो क्या होगा? दूसरी ओर लड़कियाँ ऐसी होती हैं कि हर आधे घंटे पर फोन बजाकर पति की जासूसी करती हैं….या फिर उन पर नजर रखती हैं। कई लड़कियाँ ऐसी भी हैं जो इस हद तक शक्की होती हैं कि पति के दफ्तर में जाकर उसकी सहकर्मी से लड़ बैठती हैं। अब सवाल यह है कि क्या आप ऐसा करके अपनी गरिमा नहीं गिरा रहीं और क्या आपका यह कदम आपके पति को आपसे क्या दूर नहीं करेगा क्या उसकी सहानुभूति उस सहकर्मी के प्रति नहीं होगी? ये तमाशा आपकी समस्या का समाधान तो कतई नहीं है, आपको तमाशा जरूर बना देगा। इससे ये होगा कि आपके स्वभाव के कारण अगर कोई रिश्ता न भी हुआ तो बन बैठेगा और फिर आपके पास बचाने के लिए कुछ नहीं बचेगा। बतौर पति अपनी पत्नी को सात परदों में रखने की जगह आप उसके सपनों को पूरा करने में मदद करेंगे तो आपके प्रति विश्वास और गहरा होगा। पजेसिव होना हर बार प्यार नहीं होता बल्कि एक घुटन भर देता है। शादी के बाद पति की दोस्त या सहकर्मी लड़कियों को इसलिए खटकने लगती है क्योंकि पति उस दोस्त की बहुत इज्जत करता है या मानता है या चाहता है। हर चाहत का मतलब सिर्फ दैहिक भूख नहीं होती और न हर बार प्यार का मतलब रोमांस होता है। कुछ रिश्ते विशुद्ध संवेदनात्मक और भावनात्मक होते हैं और उनका एक ही नाम होता है…इंसानियत….। जो रिश्ता आपकी ढाल बन सकता है, अनजाने में आप उसे कटार बना देती हैं और वह अंततः आपके पति के सीने से होती हुई आपको ही चीरती है। यह सिर्फ आपकी असुरक्षा के कारण होता है। अगर आप सारे रिश्तों का बोझ और अपेक्षायें सिर्फ अपने कंधों पर उठाएँगे तो कन्धे टूटेंगे…इन सारी मुश्किलों का एक ही समाधान है कि अपने जीवनसाथी को अपने जीवन के हर मोड़ पर शामिल करिए…स्पष्टवादी बनना एक समय के लिए बुरा होता है मगर आगे चलकर इसके नतीजे अच्छे ही होते हैं। बेहतर है कि आप अपने उस खास दोस्त के बारे में पहले से ही अपने साथी को बताकर रखें…उनसे मिलवायें और उनकी दोस्ती करवायें…। आपके जीवनसाथी का दोस्त आपके लिए वरदान भी बन सकता है क्योंकि ये तो सच है कि वह आपके पति को आपसे ज्यादा समझता या समझती है…आप उसकी मदद से अपने जीवनसाथी को बेहतर समझ सकेंगे जब आप रिश्तों में स्पेस देंगे तो विश्वास का बंधन ही मजबूत होगा और एक नैतिक जिम्मेदारी बनेगी। एक रिश्ता निभाने के लिए दूसरा रिश्ता तोड़ लेना अक्लमंदी का काम नहीं है और न ही इसमें ईमानदारी है…जरूरी है कि आपके साथ इस तरह की स्थिति हो तो आप स्पष्ट तौर पर अपने साथी और अपने दोस्त से खुलकर बात करें और बतायें कि आप दोनों की जगह तय है और एक रिश्ता कभी दूसरे रिश्ते की जगह नहीं ले सकेगा…आपको दोनों चाहिए। लड़कियों के मामले में यह मुश्किल हो सकता है मगर बेहतर यही है कि आपका दोस्त आप दोनों का दोस्त बनें और इसके लिए माहौल बनाना तो आपको ही होगा। सच तो यह है कि आपको यह समझना होगा कि आपकी एक सीमा है और आप अपने साथी उन तमाम रिश्तों की जगह न तो ले सकते हैं और न ही वह कमी पूरी कर सकते हैं जो आपके आने के पहले थी तो फिर ऐसी जिद किस काम की जो पूरी हो ही न सके। इसके साथ ही अगर आप दोस्त हैं तो यह आपको समझना होगा कि शादी के बाद आपके दोस्त की प्राथमिकतायें और जिम्मेदारियाँ बदलनी स्वाभाविक है…आपने दोस्ती निभायी मगर आप अपने दोस्त के पति या पत्नी की जगह नहीं ले सकते और न ही ऐसी कोशिश करनी चाहिए। शर्तें मत लादिये और हर परिस्थिति के लिए तैयार रहिए और जब लगे कि आप तमाम उलझनों का कारण हैं तो बेहतर है कि अपने कदम आगे बढ़ा लें क्योंकि कई बार हमारे चाहने से चीजें हमारे हिसाब से नहीं ढलतीं। हमें उनके हिसाब से ढलना पड़ता है….अगर आप अपने दोस्त को नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा..दोस्ती भी समझने का ही नाम है तो बेहतर है कि समय रहते एक गरिमामय दूरी बनाकर रखी जाए कि ताकि आपके हिस्से की कुछ अच्छी यादें बची रहें…जरा सा संयम और समझदारी हर बिगड़े काम को बना सकती है क्योंकि कोई एक रिश्ता सारे रिश्तों की जगह नहीं ले सकता।