हम कुछ मांगने के लिए ईश्वर से प्रार्थना तो करते हैं लेकिन हममें से कितने लोग उनका शुक्रिया भी अदा करते हैं? हम इस बात पर ज्यादा ध्यान देते हैं कि ईश्वर ने हमें क्या नहीं दिया, लेकिन इसके कि ईश्वर ने हमें क्या दिया है।
एक कहानी है, जिसमें ईश्वर ने मनुष्यों की प्रार्थनाएं सुनने के लिए दो फरिश्तों को धरती पर भेजा। एक फरिश्ते से कहा गया था कि वह उन प्रार्थनाओं को इकट्ठा करें, जिनमें ईश्वर से कुछ मांगा जा रहा हो। दूसरे से कहा गया कि वह उन प्रार्थनाओं को जमा करें, जिनमें ईश्वर का शुक्रिया अदा किया जा रहा हो और कृतज्ञता प्रकट की जा रही हो।
दोनों फरिश्ते एक-एक विशाल टोकरी लेकर धरती पर उतरे। जो फरिश्ता ईश्वर से कुछ मांगने संबंधी प्रार्थनाएं जमा कर रहा था, वह अत्यधिक व्यस्त हो गया। कई सारे लोग ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि वे उन्हें ज्यादा पैसा दे दें, बेहतर स्वास्थ्य दे दें, नवीनतम डिजिटल उपकरण दे दें, खूबसूरत जेवरात, महंगे कपड़े या फिर नए खिलौने दे दें।
इस बीच दूसरे फरिश्ते ने दूर-दूर की यात्रा की और ऐसी प्रार्थनाओं की तलाश करता रहा, जिनमें ईश्वर का शुक्रिया अदा किया जा रहा हो। कुछ दिन बाद मांग वाली प्रार्थनाओं से तो एक ट्रक भर गया। जबकि शुक्राने वाली प्रार्थनाएं गिनती की ही थीं। जब वे दोनों अपना-अपना ‘कलेक्शन’ लेकर लौटे, तो ईश्वर ने आह भरते हुए कहा, ‘इसमें कोई नई बात नहीं है।
देखा आप लोगों ने, ईश्वर होना कैसा होता है? लोग हमेशा कुछ-न-कुछ मांगने के लिए प्रार्थना करते रहते हैं। यह ठीक भी है क्योंकि इसी बहाने वे मुझे याद तो करते हैं। मगर बहुत कम लोगों को मेरा शुक्रिया अदा करना याद रहता है।’
यह कहानी हम मनुष्यों की स्थिति बयान करती है। लोग दूसरों से कुछ करने की गुजारिश तो करते हैं लेकिन कितने लोग उन्हें शुक्रिया अदा करने के लिए भी समय निकालते हैं? इसी प्रकार, हम कुछ मांगने के लिए ईश्वर से प्रार्थना तो करते हैं लेकिन हममें से कितने लोग उनका शुक्रिया भी अदा करते हैं? हम इस बात पर ज्यादा ध्यान देते हैं कि ईश्वर ने हमें क्या नहीं दिया, बनिस्बत इसके कि ईश्वर ने हमें क्या दिया है।
ईश्वर ने हमें जितना कुछ दिया है, यदि हम उसमें से प्रत्येक चीज के लिए उन्हें एक ‘थैंक यू नोट’ लिखने बैठें, तो हमें अहसास होगा कि उन्होंने हमें कितना कुछ दिया है। शायद हम यह सोचते हैं कि ईश्वर तभी मौजूद होते हैं, जब सब कुछ हमारी मर्जी अनुसार चल रहा होता है।
हो सकता है कि हमारे पास 25 साल से नौकरी थी लेकिन एक बार हमें नौकरी से हाथ धोना पड़े, तो हम कह देते हैं कि ईश्वर नहीं है! हो सकता है कि हमारे पास बरसों से एक स्नेहिल परिवार रहा हो लेकिन एक सदस्य के न रहने पर हम ईश्वर को दोष देने लगते हैं। हो सकता है कि
हम वर्षों तक पूरी तरह स्वस्थ रहे हों लेकिन एक बार कोई गंभीर बीमारी हो जाए, तो हम कहते हैं, ‘यह मुझे क्या हो गया! कोई ईश्वर-बीश्वर नहीं है। जब कुछ गलत हो जाए, तो बहुत कम लोग कहते हैं, ‘कोई बात नहीं भगवान, मैं अब भी आपको मानता हूं और जानता हूं कि आप हो। मेरे साथ जो हुआ, वह शायद मेरे लिए अच्छा ही था और यही आपकी मर्जी थी।
आइए, हम हर उस दिन के लिए ईश्वर को शुक्रिया कहें, जब हम अपना काम कर पाते हैं, अपने परिवार और मित्रों के साथ आनंद के पल गुजार पाते हैं। हम अपने स्वास्थ्य के लिए उनसे धन्यवाद कहें और कृतज्ञता दर्शाएं कि हमारी बीमारी बदतर नहीं हुई।
हम उन सभी उपहारों के लिए खुशी महसूस करें, जो हमें मिले हैं। केवल भौतिक, बौद्धिक या भावनात्मक ही नहीं, बल्कि ईश्वर की ओर से प्राप्त आध्यात्मिक उपहारों के लिए भी। हम प्रार्थना और ध्यान द्वारा तथा दूसरों की निस्वार्थ सेवा द्वारा भी अपने भीतर मौजूद दिव्य शक्ति के साथ संबंध स्थापित कर सकते हैं। इस प्रकार हम शब्दों से ही नहीं, बल्कि कर्मों के माध्यम से भी ईश्वर का शुक्रिया अदा करेंगे।