Friday, May 9, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]

कल्पना झा की कुछ कविताएं

kalpana di

विवेकानंद फ्लाईओवर टूटने पर

माँ ने कुछ दवाइयां मंगवाई थी

और कहा था कि नहाने का मग टूट गया है
लेती आना
बेटा नये क्लास में गया है
उसके लिए नये जूते खरीदने हैं
कल रात ऑफिस से देर से लौटे थे तुम
नाराज़ होकर मुँह फेर कर सो गई थी मैं तुमसे
आज तुम्हारी दी हुई वो नई नीली साड़ी पहन लूंगी
फ़िर सिनेमा देखने चलेंगे
ओह, छत पर पसारे कपड़े उतारे नहीं अब तक
कहीं बारिश हो गई तो घर लौट कर फ़िर सुखाने होंगे उन्हें
पड़ोस की आंटी  के यहाँ पोती हुई है
उसके लिए एक प्यारा सा झुनझुना लूंगी
इस गर्मी आम का अचार डालूंगी
हैलो
सुनो
ये मेरे ऊपर कुछ पहाड़ सा गिर गया है
पर जिंदा हूँ मैं अभी
हाँ जहाँ धूल का ढेर है वहीँ
बायीं ओर ? लोहे हैं
दाहिनी ओर? सीमेंट और बालू
सामने धूल  का अम्बार और कुछ तड़पते हाथ पैर
सुनो, सुन पा रहे हो मुझे
यहाँ बहुत शोर है
सुनो, जल्दी आओ
मेरी पसलियों में कुछ धंसता चला जा रहा है
फेफड़ों में धूल भर चुकी है
सुनो वो बेटे के… स्कूल की फीस…
सुनो…..
सु……….नो …..
सु …..न
…………
………
……..

अब घर नहीं आते पापा
Father-Daughter-Beach

घर के बाहर वाली सड़क पर जब खड़ी होती हूँ अक्सर

दूर धुंधलके से पिता आते हुए दिखते हैं

देर रात गए….
उन्हें देर हो जाया करती थी!
उनके थके हाथों में मटर बादाम
या गर्म जलेबियों का थैला भी दिखता है मुझे
जिसे लपक कर झटपट गायब कर दिया करते थे हम

खिड़की के बाहर दूर तक घास दिखाई पड़ती थी तब
और हर इतवार पिता उसके पार वाले तालाब से नहा कर घर आते थे
उस पूरे रास्ते में एक पगडण्डी सी बन गई थी
जो भीग जाया करती थी

कई कई शाम ढेरों खुशबू लिए आती है
खेल की फुरफुरी, हलवे की नरमी
अख़बारों की फड़फड़ाहट
कुर्सियों या तिपाई पर बैठ कर बतियाते हुए
बहुत ऊँचे ऊँचे लोग
सिक्कों की खनखनाहट सब लेकर पास बैठती है

कई बार अंधेरी रातों में पिता की कराह सुनाई देती है
सहलाने पर एक ढांचा महसूस होता है
उनकी गहरी आँखें अँधेरे से झांकती दिखती हैं कई बार
नींबू निचोड़े दाल की महक सराबोर कर देती है एकबारगी
एक बार सपने में पंखा माँगा था उन्होंने
अगले दिन उनके चिर साथी
सत्तू और चने के साथ दान कर आई थी

रास्ते वही हैं,
बस  समय-समय पर उनकी थोड़ी मरम्मत कर दी जाती है
पगडण्डी जो उन्होंने बनाई थी, धीरे धीरे मिटती गई
घर का पता अब भी वही है
बस अब पिता नहीं लौटते

गायब होता जा रहा है सब कुछ धीरे धीरे
हर शाम गायब हो जाती है एक सुबह
और हर सुबह किसी काले खोह में गुम होती जाती है एक रात
एक के बाद एक लगातार

धीरे धीरे सारी रातें और सारी सुबहें गुम हो जाएँगी
जैसे गुम हुए पिता, उनके पिता, उनके पिता
आराम कुर्सी कभी कभी हवा से हिल जायेगी
पलंग के कोने में दीवार से सटकर लाठी पड़ी रहेगी
और मेरे कानो में बस गूंजता रहेगा
रिंका रिंका रिंका ।

***************************************
#कल्पना

(कवियत्री प्रख्यात रंगकर्मी तथा गायिका हैं। फिलहाल एक केन्द्रीय संस्थान में वरिष्ठ अनुवादक के रूप में कार्यरत )

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।

शुभजिताhttps://www.shubhjita.com/
शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।
Latest news
Related news

1 COMMENT

  1. अरमान जी के सौजन्य से आपकी कविताएं पढ़ने को मिलीं
    आपकी सम्वेदनशीलता अच्छी लगी।
    बस ये समझ नही आया के पतीली में रोटी कहाँ रखी जाती है

Comments are closed.