कोलकाता । एक मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए शुभाशीष चक्रवर्ती की जीवनयात्रा किसी प्रेरणादायी कहानी से कम नहीं है। साइंस पढ़ने में रुचि थी. साइंस की पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने छोटी-मोटी नौकरी की। पढ़ाई और नौकरी का संतुलन बनाए रखने के लिए कठोर तपस्या की। इस तप से फल यह मिला कि वे कॉलेज से कैमिस्ट्री में गोल्ड मेडल लेकर निकले. कभी आर्थिक तंगी झेलने वाले इस बंगाली बाबू की जेब में आज 2,000 करोड़ रुपये की कंपनी है। कंपनी का नाम देश के हर कोने-नुक्कड़ पर तो है ही, विदेशों में भी झंडे झूल रहे हैं। शुभाशीष की दृढ़ संकल्प की कहानी यह संदेश देती है कि पूरी मेहनत (तप) की बदौलत कुछ भी किया जा सकता है। यदि 100 लोगों को केवल एक कूरियर कंपनी का नाम लेने को कहा जाए तो 90 लोगों की जुबान पर पहला नाम डीटीडीसी का ही आएगा. सुभाशीष चक्रबर्ती उसी डीटीडीसी (डीटीडीसी) के संस्थापक हैं। फिलहाल कंपनी में चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर हैं। इनकी कूरियर कंपनी के माध्यम से आपने भी कई बार कूरियर भेजा होगा और आपके घर-ऑफिस तक डीटीडीसी ने कूरियर पहुंचाया भी होगा।
अब आपके मन में प्रश्न उठ सकता है कि कैमिस्ट्री में स्वर्ण पदक पाने वाला शख्स आखिर कूरियर के धंधे में कैसे चला गया? और चला भी गया तो कैसे हजारों करोड़ की वैल्यू वाली कंपनी खड़ी कर दी? सच तो यह है कि वे खुद भी नहीं जानते थे कि कूरियर का काम करेंगे शायद कभी सोचा भी नहीं था। एक इंटरव्यू में शुभाशीष चक्रवर्ती ने खुद कहा था- “उन दिनों में साफ था कि अच्छे नंबरों के साथ ग्रेजुएशन करने के बाद एक अदद नौकरी करनी है।”
शुभाशीष चक्रवर्ती कोलकाता के एक मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुए। रामकृष्ण मिशन रेजिडेंशिल कॉलेज में केमिस्ट्री की पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान ही वे एक बड़ी इंश्योरेंस कंपनी पीयरलेस के साथ काम करने लगे। पीयरलेस पूर्वी भारत में तो अच्छा काम कर रही थी, मगर दक्षिण भारत में उसे कोई नहीं जानता था। सो, कंपनी ने 1981 में शुभाशीष को बैंगलोर भेजा और वहां पीयरलेस का इंश्योरेंस व्यवसाय स्थापित करने को कहा। वे गए और कुछ वर्षों तक इंश्योरेंस में काम करते रहे। मन में एक कसक थी कि अपना व्यवसाय किया जाए। इंश्योरेंस सेक्टर की जानकारी थी, मगर रुचि नहीं थी. कैमिकल्स के बारे में अच्छे से जानते थे, और रुचि भी खूब थी।
ऐसे में 6 साल बाद 1987 में उन्होंने इंश्योरेंस कंपनी को अलविदा कहकर केमिकल डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी शुरू की. केमिकल का बिजनेस चल सकता था, मगर चला नहीं। न चलने के पीछे का असली कारण बनी पोस्टल सर्विस. उन्हें कूरियर कंपनी के साथ डील करने में बहुत समस्या हुई। शुभाशीष ने पाया कि पोस्टल सर्विस और ग्राहकों के बीच में एक बहुत बड़ा गैप है। यहीं से पूरा गेम बदल गया। शुभाशीष ने केमिकल से नाता तोड़कर 26 जुलाई 1990 में डीटीडीसी नामक अपनी कूरियर कंपनी शुरू कर दी. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि डीटीडीसी का पूरा नाम डेस्क टू डेस्क कूरियर एंड कार्गो है.
शुरुआत में बड़े शहरों पर फोकस करने के बाद जल्दी ही शुभाशीष चक्रवर्ती को समझ आ गया कि कूरियर सर्विस की ज्यादा मांग छोटे शहरों में है. मैसूर, मैंगलोर, और हुबली के साथ-साथ केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के छोटे शहरों में ज्यादा जरूरत भी है। 1990 में 20,000 रुपये लगाकर शुरू किए गए व्यवसाय को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। बैंक ने कर्ज देने से मना कर दिया था, क्योंकि वेंचर कैपिटल ही नहीं थी । शुभाशीष ने दिल पर पत्थर रखकर अपनी मां के गहने बेचकर व्यवसाय को चलाना जारी रखा परंतु वह भी कुछ ही महीनों चल सका। फिर से पैसे का संकट आ पड़ा। 1991 में शुभाशीष को एक ऐसा मंत्र सूझा, जिसने पूरी बाजी पलटकर रख दी। उन्होंने फ्रेंचाइजी मॉडल की शुरुआत की। क्षेत्रों को ज़ोन में बांटा गया। एक रीजनल ब्रांच 30 फ्रेंचाइजी संभालने लगी. कुछ ही समय बाद डीटीडीसी ने अपना सॉफ्टवेयर और कंप्यूटर सिस्टम भी फ्रेंचाइजीज़ पर उपबल्ध करवा दिया, ताकि ऑर्डर की रियल-टाइम ट्रैकिंग हो सके। यह एक ऐसी क्रांति थी, ग्राहक जिसकी जरूरत काफी समय से महसूस कर रहे थे। अब कूरियर भेजने वाला यह जान सकता था कि उसका पैकेट कहां तक पहुंचा है और कब वह सही हाथों तक पहुंच जाएगा। फ्रेंचाइजी आइडिया काम कर गया और गाड़ी अच्छे से चल पड़ी। दक्षिण भारत से व्यवसाय की शुरुआत करने वाली यह कंपनी फिलहाल 14,000 पिन कोड्स तक पहुंच रखती है। रिटेल ग्राहकों और बिजनेस दोनों के लिए डिलीवरी सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनी आपके घर से पिकअप कर सकती है और कहीं भी डिलीवरी दे सकती है। डीटीडीसी की वेबसाइट के मुताबिक, इसके नेटवर्क में 14,000 फिजिकल कस्टमर एक्सेस पॉइन्ट हैं. 96 फीसदी भारत के ही हैं. इसके अलावा इंटरनेशनल लेवल पर की उपस्थिति है. दुनिया के 220 डेस्टिनेशन ऐसे हैं, जहां पर डीटीडीसी की सेवाएं उपलब्ध हैं।
डीटीडीसी लगातार आगे बढ़ रही है। कंपनी के पास बड़े-बड़े क्लाइंट हैं, जिनमें विप्रो, इंफोसिस और टाटा ग्रुप की कंपनियां भी शुमार हैं। 2006 तक कंपनी की 3700 फ्रेंचाइजी हो गई थीं और रेवेन्यू 125 करोड़ रुपये थे. इसी समय इसे रिलायंस कैपिटल से 70 करोड़ रुपये का निवेश मिला और यह 180 करोड़ रुपये की कंपनी बन गई। 2010 आते-आते फ्रेंचाइजी की संख्या 5000 हो चुकी थी। इस समय कंपनी की सेल 450 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। 2013 में डीटीडीसी ने निक्कोस लॉजिस्टिक्स में 70 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी। इसी साल कंपनी ने डॉटज़ोट की लॉन्चिंग की, जोकि ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए भारत का पहला डिलीवरी नेटवर्क बना। 2015 में हैदराबाद में ऑटोमेटिक लॉजिस्टिक हब बनाया गया।
2018 का आंकड़ा बताता है कि कंपनी हर साल 150 मिलियन से अधिक पैकेट शिप कर रही है और इसके फ्रेंचाइजी पार्टनर की संख्या 10,700 तक पहुंच गई। चूंकि और भी कंपनियां कूरियर डिलीवर करती हैं तो भी डीटीडीसी के पास लगभग 15 प्रतिशत का मार्केट शेयर है। फिलहाल, एक अनुमान है कि कंपनी का रेवेन्यू 2000 करोड़ के आसपास है। हालांकि इससे जुड़ा कोई आंकड़ा सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है, मगर कुछ साल पहले एक बड़े मीडिया घराने ने इसके आईपीओ को लेकर एक खबर छापी थी। उस खबर में कहा गया था कि कंपनी 3,000 करोड़ रुपये का एक आईपीओ लाने वाली है। बता दें कि अभी तक कंपनी अपना आईपीओ नहीं लाई है।