नयी दिल्ली । नाम है सैयदा सल्वा फातिमा। उम्र 34 साल। कभी पढ़ाई जारी रखने के लिए फीस भरने का पैसा नहीं था। स्कूल से नाम कटने वाला था। आज वही बेटी हिजाब पहनकर प्लेन उड़ा रही है। फातिमा के पापा प्यार से उन्हें ‘मिरैकल गर्ल’ बुलाते हैं। उनकी जिंदगी में ये मिरैकल होते भी रहे हैं। ईश्वर का दूत बनकर उनकी मदद के लिए कोई न कोई ‘फरिश्ता’ हर बार उतर आया। इससे न फातिमा की पढ़ाई छूटी और न ही उनका सपना टूटा। फातिमा की कहानी संघर्षों से भरी हुई है। पुराने हैदराबाद में पली-बढ़ी फातिमा इस शहर की पहली वुमन कमर्शियल पायलट हैं।
फातिमा का बचपन हैदराबाद के मोघलपुरा के उस इलाके में गुजरा जहां आज भी कई लोगों को पीने के पानी तक के लिए संघर्ष करना पड़ता है। फातिमा देश की उन चंद मुस्लिम महिलाओं में हैं जिनके पास कमर्शियल पायलट लाइसेंस है। उन्हें कभी इस बात से फर्क नहीं पड़ा कि लोग उनके बारे में क्या कहते हैं। हिजाब पहनकर कॉकपिट में बैठने के बाद वो सिर्फ मंजिल तक पहुंचने के बारे में सोचती हैं। पिता सैयद अशफाक अहमद उन्हें प्यार से ‘मिरैकल गर्ल’ बुलाते हैं। इसके पीछे कारण भी हैं।
सेंट ऐन्स जूनियर कॉलेज में इंटरमीडिएट करते वक्त दोबारा पैसों की किल्लत फातिमा के सामने आई। कॉलेज की फीस जमा न होने के कारण फिर उनका नाम कटने को था। फीस न दे पाने वाले बच्चों की कतार में वह खड़ी हुई थीं। तभी एक टीचर की उन पर नजर पड़ी। उन्होंने फातिमा की फीस भरने का फैसला किया। इस तरह दूसरी बार उनकी जिंदगी में फरिश्ते की एंट्री हुई। फातिमा बताती हैं कि वह निजी तौर पर उन टीचर को जानती भी नहीं थीं। न ही कभी उन्होंने फातिमा को पढ़ाया था।
फिर शुरू हुआ आसमान छूने का सफर
इसके एक दशक बाद फातिमा ने तेलंगाना एविएशन अकैडमी में पहली बार सेसना स्कायहॉक उड़ाया। अभी वह एक टॉप एयरलाइन में फर्स्ट ऑफिसर के तौर पर एयरबस320 उड़ाती हैं। जल्दी ही वह ए380 विमान उड़ाने वाली हैं। एविएशन इंडस्ट्री ग्लैमर से भरी हुई है। इसमें ज्यादातर पैसेंजर भी खास वर्ग से होते हैं। लेकिन, हिजाब पहनकर प्लेन चलाने से वह कभी शर्मिंदा नहीं हुईं। वह कहती हैं, ‘उन्हें आसमान की ऊंचाई खींचती थी। वह हमेशा से एक पायलट बनना चाहती थीं। यह और बात है कि वह कभी भी प्लेन का टिकट नहीं खरीद सकती थीं। ये देखिए कि मेरी पहली फ्लाइट पैसेंजर सीट पर नहीं, कॉकपिट से हुई।’
दो बेटियों की मां हैं फातिमा
फातिमा की शादी हो चुकी है। वह दो बेटियों की मां हैं। छोटी बेटी छह महीने की है। किसी भी फ्लाइट को आसमान में ले जाते वक्त वह एक बात नहीं भूलती हैं। वह यह कि कॉकपिट में आते ही उन्हें सबकुछ भूल जाना है। पूरा फोकस प्लेन पर रखना है। वह कहती हैं कि उनके माता-पिता, पति और सास-ससुर हमेशा बहुत सपोर्टिव रहे हैं। यही कारण है कि वह अपने सपनों को जी सकीं। वह खुशनसीब थीं कि उन्हें कभी जेंडर या धार्मिक भेदभाव का भी सामना नहीं करना पड़ा। वह एयरलाइन की ओर से गिफ्ट किया गया हिजाब पहनती हैं। इसमें कोई भेदभाव नहीं होता है।
फातिमा कहती हैं कि बेटियों को पढ़ाना और हैदराबाद में अपना घर बनाना उनकी शीर्ष प्राथमिकता है। वह खूब मेहनत करेंगी ताकि उनकी बेटियों को वो सब न देखना पड़े जो उन्होंने देखा है। वह अपने पुराने शहर को भी नहीं छोड़ेंगी। यहीं से उनकी पहचान बनी है। यहीं से उन्होंने सबकुछ पाया है।