नयी दिल्ली । राज्यों में एसआईआर पर चल रही राजनीतिक बहस के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पूछा कि क्या सरकारी स्कीमों का लाभ प्राप्त करने के लिए आधार कार्ड रखने वाले “घुसपैठियों” को भी वोट देने की अनुमति दी जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग कोई पोस्ट आफिस नहीं है, जो बिना कुछ पूछे फार्म-6 स्वीकार कर ले। आयोग के पास हमेशा दस्तावेज की सत्यता जांचने का वैधानिक अधिकार होता है। सिब्बल ने कहा कि जैसा इस बार हो रहा है, वैसा देश में पहले कभी नहीं हुआ।”आधार कार्ड एक क़ानून की रचना है। और वैध है। इस हद तक कि यह उस पर आधारित लाभों या विशेषाधिकारों को स्वीकार करता है। कोई भी इस पर विवाद नहीं कर सकता। चीफ जस्टिस सूर्य कांत ने सामाजिक कल्याण और मताधिकार के बीच एक स्पष्ट अंतर खींचा। सीजेआई ने टिप्पणी की, “मान लीजिए कि कुछ व्यक्ति हैं जो किसी दूसरे देश से, पड़ोसी देशों से घुसपैठ करते हैं, वे भारत आते हैं, वे भारत में काम कर रहे हैं। भारत में रह रहे हैं, कोई गरीब रिक्शा चालक के रूप में काम कर रहा है, कोई निर्माण स्थल पर मजदूर के रूप में काम कर रहा है। अगर आप उसे आधार कार्ड जारी करते हैं ताकि वह रियायती राशन या किसी अन्य लाभ का फायदा उठा सके। तो यह हमारे संवैधानिक लोकाचार का हिस्सा है, यह हमारी संवैधानिक नैतिकता है। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि अब उसे मतदाता भी बनाया जाना चाहिए?” चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाल्य बागची की बेंच कई राज्यों में मतदाता सूचियों को साफ करने के उद्देश्य से एसआईआर की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो पश्चिम बंगाल और केरल राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने एसआईआर प्रक्रिया को “जल्दबाजी, और अनुचित” करार देते हुए इसकी निंदा की। उसी दौरान बीच चीफ जस्टिस का यह क्लासिकल सवाल सामने आया। सिब्बल ने अदालत से आग्रह किया, “एक अनुमान है। एक स्व-घोषणा, कि मैं एक नागरिक हूं। मैं यहां रहता हूं। मेरे पास एक आधार कार्ड है। यह मेरा निवास है। अगर आप इसे हटाना चाहते हैं, तो एक प्रक्रिया के माध्यम से हटा दें।” उन्होंने अनपढ़ और हाशिए पर रहने वाले मतदाताओं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की दुर्दशा पर जोर दिया, जिनके बाहर होने का खतरा है। उसी पर चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की थी।





