हिंदू धर्म में सदियों से यह परम्परा चली आ रही है कि मंदिर में पूजा सिर्फ ब्राह्मण ही करेंगे। वहीं पूजा के लिए जितने भी ग्रंथ लिखे गए हैं वे भी ब्राह्मणों ने ही लिखे हैं। लेकिन एक मंदिर ऐसा भी है जहां पूजा सिर्फ मुस्लिम के द्वारा लिखी आरती से ही की जाती है।
चलिए हम आपको बताते हैं इस सांप्रदायिक सौहार्द की कहानी। भगवान बद्रीनाथ धाम को हिंदुओं का तीर्थ माना जाता है और यहां उनकी पूजा सिर्फ ब्राह्मण ही कर सकते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि बद्रीविशाल की आरती किसने लिखी है।
151 सालों से कपाट खुलने से बंद होने तक मंदिर में नित्य सुबह-शाम जो आरती गाई जाती है, उसे एक मुस्लिम शायर ने लिखा है और वह शायर है चमोली जिले के नंदप्रयाग निवासी फकरुद्दीन (बदरुद्दीन)।
बदरुद्दीन ने यह आरती वर्ष 1865 में लिखी थी । जब से ये आरती लिखी गई है तब से भगवान बद्री विशाल की पूजा परंपराओं की शुरुआत इसी आरती के साथ होती है।
जब ये आरती फकररुद्दीन ने लिखी थी तब उनकी उम्र महज 18 साल थी। इस आरती में बदरीनाथ धाम के धार्मिक महत्व के अलावा यहां की सुंदरता का भी वर्णन किया गया है।
बता दें कि फकरुद्दीन तब नंदप्रयाग में पोस्टमास्टर हुआ करते थे और इस आरती को लिखने के बाद उन्होंने अपना नाम बदरीनाथ के नाम पर बदरुद्दीन रख लिया था।
104 वर्ष की उम्र में वर्ष 1951 में बदरुद्दीन का निधन हुआ। बदरुद्दीन के पोते अयाजुद्दीन सिद्दिकी के मुताबिक बद्रीनाथ धाम में मंदिर परिसर की दीवारों पर पहले पूरी की पूरी आरती लिखी गई थी। जिस व्यक्ति को यह आरती कंठस्थ नहीं होती, वह मंदिर की दीवारों पर देखकर आरती गाता था।