उज्जैन । मध्य प्रदेश की प्राचीन नगरी उज्जैन में ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती का प्राचीन मंदिर है। वाग्देवी मंदिर में देवी नील सरस्वती के रूप में विराजमान हैं। वसंत पंचमी पर पढ़ाई करने वाले बच्चे स्याही से उनका अभिषेक करते हैं। सरस्वती पूजा के दिन मंदिर में मां सरस्वती का विशेष पूजन भी होता है।
नील सरस्वती के नाम से मशहूर इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां वाग्देवी का स्याही से अभिषेक पूजन करने से पढ़ाई में मन लगता है। पढ़ाई में ध्यान केंद्रित करने का संकल्प मजबूत होता है और सफलता मिलती है। छात्र अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होते हैं। इसी मान्यता के चलते स्थानीय के साथ दूरदराज से भी स्वजन बच्चों को लेकर माता के दरबार में आते हैं।
यहां वसंत पंचमी का त्योहार धूमधाम से मनता है। विद्धार्थियों के अलावा देवी का दर्शन-पूजन करने भारी भीड़ जुटती है। सिंहपुरी के समीप बिजासन पीठ के सामने स्थित इस मंदिर में परीक्षा के दिनों में भी बड़ी संख्या में विद्यार्थी नील सरस्वती के दर्शन करने आते हैं। वसंत पंचमी पर भीड़ बढ़ जाती है क्योंकि कुछ दिनों बाद ही परीक्षाएं भी शुरू होने वाली होती हैं। छात्र देवी का स्याही से अभिषेक कर परीक्षा में सफलता की प्रार्थना करते हैं।
उज्जैन के इस प्राचीन मंदिर में वसंत पंचमी पर वाग्देवी को वासंती फूलों के साथ नील कमल व अष्टर के फूल अर्पित करने का विधान है। शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है। हालांकि, फूलों के अर्क का स्थान अब नीली स्याही ने ले लिया है। शास्त्रों में कहीं-कहीं माता सरस्वती को नीलवर्णी कहा गया है। माना जाता है कि भगवान विष्णु से आदेशित होकर नील सरस्वती भगवान ब्रम्हा के साथ सृष्टि के ज्ञान कल्प को बढ़ाने का दायित्व संभाले हुए हैं।
(साभार – नवभारत टाइम्स)