आश्वासन

आनंद श्रीवास्तव

हर बार तुम्हारा
आश्वासन
मुझे एक नई उम्मीद से बांध देता है
और हर बार तुम मुझे हमेशा की तरह छल जाते हो ।
जो हो रहा है उसमें कुछ भी नया नहीं
तयशुदा जाना पहचाना सा
सब कुछ है
कुछ भी अनजान नहीं
ना तुम बदलोगे ना मैं
हर बार तुम आश्वासन बनकर आओगे और मुझसे छल करोगे
हमेशा की तरह
हर बार मैं तुम पर यकीन करूंगा
और खुद को एक नये धोखे को सहने के लिए तैयार रखूंगा।
तुम्हारे ह्रदय में कितनी कटुता है जिसका शमन सदियों से
नहीं हो रहा।
सहजता का ढोंग किये
दोमुंहा मुखौटा ओढ़े तुम सबसे जटिल क्यों हो ?
घोषित करते रहो तुम मुझे जो
घोषित करना है
तुम्हारी उठाई उंगली और बदनामी मुझे छू भी नहीं सकती।
तुम प्रत्याख्यान करते जाओगे
पर हर मोड़ पर हर राह में मैं साबुत खड़ा मिलूंगा
उम्मीद बांधे हुए कि कभी तो तुम्हारा दिल भी पिघलेगा
खुली आंखों से कभी तो चाटुकारिता के चश्मा उतार के
वास्तविकता तुम्हें दिखेगी।।
यकिन मानो सच का सामना तुम्हें भी शर्मिंदा कर देगा
और पछताओगे अपने हर उस आश्वासन पर
जिसके पीछे तुम निर्वस्त्र नग्न खड़े हो
सिर्फ और सिर्फ मेरी उम्मीद की
परछाई में।

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