कोलकाता । अर्चना संस्था की सदस्यों ने कविता उत्सव मनाया जिसमें स्वरचित रचनाएँ और गीत पढे़ गए। संगीता चौधरी ने एक दिन मन की सुप्त कंदराओं में विचारों का भूचाल आया। कविता सुनाई, मृदुला कोठारी ने देह के सारे अंगों पर दोहे एवं मुक्तक कान कोयल के सुने सोन चिरैया की बोली सुनाकर सबका मन मोह लिया और गीत निस दिन वह अंधियारे को भगाने आता है। सूरज का एक दीप लिए जो भोर में गाता है सुनाया, सुशीला चनानी ने दोहा विधा में माँ की गोदी सी लगे,ममता भीगी रात।तन पाता है थपकियाँ ,मन सपने सौगात।।और कविता तन्हाई सुनाई जिसकी पंक्तियाँ भीड़ में तो इन्सान खो जाता है, बस तन्हाई के आलम में ,अपना सा हो जाता है। पसंद की गई। अहमदाबाद से भारती मेहता ने कविता एक स्थिति के बाद, कोई भी रिश्ता ओढ़ने से रुकती नहीं हैं ठंड! और जब वह बच्ची थीउसकी मुस्कान थी हल्की- फुलकी रंग बिरंगी तितली की तरह! सुनाकर नए बिंबों का प्रयोग किया। हिम्मत चोरड़़िया प्रज्ञा ने मनहरण घनाक्षरी-सारे जग से न्यारा, लगे हमें सदा प्यारा।पावन ये देवभूमि, हिन्दुस्तान है।। गीतिका-तारे तोड़ जमीं पर लाऊँ, कहता मेरा लाल।माँ मुझको बंदूक दिला दो, बदलूँगा मैं चाल।।, बनेचंद मालू ने कवि कुछ ऐसा गीत सुनाओ, मनका मीत मिल जाए ! और मैं ढूंँढन निकला आदमी सुना कर अपने अनुभवों को शब्दों द्वारा साझा किया। प्रसन्न चोपड़ा ने उत्सव बाहर नहीं अंदर मना रही हूँ । गीत बाहर नहीं अंदर गा रही रही हूँ सुनाया जिसमें छिपे विषाद के भाव ने सबको भावुक कर दिया । उषा श्राफ ने ये शाम के धुंधलके, साए थे गहरे हल्के सुना कर अपनी रोमांटिक भावनाओं को व्यक्त किया। वसुंधरा मिश्र ने कविता सूरज ग्रहण पस्त सुनाई जिसकी पंक्तियाँ सूर्य को जन्म देना नहीं है आसान, यश, तेज, ओज यूँ ही नहीं मिल जाते। जैसी पंक्तियाँ कर्म के प्रति प्रोत्साहित करने वाली रहीं। संचालक और संयोजन करते हुए इंदु चांडक ने कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना से की और कविता शब्द व्यष्टि हैं समष्टि दृश्य हैं दृष्टि हैं ब्रह्म हैं सृष्टि हैं और मुश्किलों बन संगिनी तुम साथ मेरे चलती जाओ सुनाई। धन्यवाद ज्ञापन किया बनेचंद मालू नेे । जूम पर यह कार्यक्रम अर्चना संस्था की मासिक गोष्ठी के अंतर्गत किया गया।