कोलकाता : साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था ‘अर्चना’ की मासिक गोष्ठी जूम पर संपन्न हुई। सभी सदस्यों ने विभिन्न भाव लिए रंग बिरंगी रचनाएं सुनाई । प्रसन्ना चोपड़ा ने ने जिंदगी है उनकी साहित्य आराधना, हिम्मत चौरडिया ने हौसलों में बसी सफलता की कामना, शशि कंकानी ने नदी की मनोदशा का मार्मिक भावपूर्ण वर्णन, उषा श्राफ ने वर्षा में प्रकृति के मनोरम दृश्यों का वर्णन, मृदुला कोठारी ने प्रश्नोत्तर शैली में व्यक्त मनभावन रचना, वसुंधरा मिश्र ने प्राकृतिक भावभरे उद्वेगों को सहेजने, बनेचंद मालू ने बालस्मृति की रेलगाड़ी में सफर करवाना, समृद्धि मंत्री ने खूंटी पर टंगी कॉलेज की यादों से अपने वो दिन तरोताजा किए, सुशीला चनानी ने कहीं चांद, कहीं वन, नवरतन भंडारी ने महकती,मचलती मानवीय संवेदना अतीत के चक्रव्यूह में घूमती यादों का अनमोल खजाना,
विद्या भंडारी ने ससुराल में अपनापन दिखाना / पति- पत्नी को टेनिस बॉल की उपमा से सजाना, भारती मेहता ने सूने कक्ष में पड़े घड़े का अनोखा अंदाज बयां किया और इंदु चांडक ने बरसात में भीगी भीगी रचना से आनंदित किया। कविता की प्रमुख पंक्तियां – हौंसला मन में अगर तो जीत कितनी दूर तुमसे-हिम्मत चौरडिया, हाइकु ,क्षणिका ,वर्षा के गीत चांद की अदा,कितना मनमौजी है सूरज ,भीगा भीगा मौसम है- सुशीला चनानी, शर्मोहया के परदे में झुकी झुकी सी नज़र झरोखे से झांकती..मीना दूगड़ ।क्षणिकाएँ…रिक्त कक्ष हो, कोने में रखा हो जलपूरित गीला घड़ा…तो लगता है शीतलता अभी बाकी है-भारती मेहता, बारिश का मौसम आया-उषा श्राफ।यादों का सिलसिला-बनेचन्द मालू, कजरारे बदरा अम्बर पे छाये-इंदू चांडक। नदी की पुकार, मेरी महिमा को जान मुझसे करले तू प्यार -शशि कंकानी, उमस के पावस बरस गए/तरस गए हां बरस गए-मृदुला कोठारी, साहित्य की साधना आराधना करती साहित्य मेरी जिंदगी मेरी कलम चलती-प्रसन्ना चोपड़ा, जरा सा अपनापन दिखा कर तो देखो,वह खिंची चली आएगी, जरा सा अपनापन दिखा कर तो देखो,वह खिंची चली आएगी – विद्या भंडारी, प्रकृति के उद्वेग – वसुंधरा मिश्र आदि सभी कविताएं एक से बढ़कर एक रहीं। यह कार्यक्रम सात जुलाई बुधवार शाम अर्चना की मासिक कवि गोष्ठी के अंतर्गत आयोजित की गयीं जिसमें हमेशा की तरह स्वरचित कविताएँ पढ़ी जाती हैं जिससे मौलिक और सृजनात्मक रचनाओं को बढ़ावा मिलता है और लिखने के अभ्यास के साथ मस्तिष्क उर्वर बना रहता है। गोष्ठी में हाइकु ,क्षणिकाएं,मुक्त छन्द कवितायें ,गीत आदि विभिन्न विधाओं की रचनाएँ पढी गयीं। सामाजिक विषय भी कविताओं के माध्यम से उठाए गए पर वर्षा ऋतु की रचनाएँ हर दिल पर छाई रहीं। गोष्ठी का संचालन किया इन्दु चाण्डक ने।