रांची : साल 1977 में सोलह साल के रहे अमित खरे ने रांची के एक केंद्रीय विद्यालय से मैट्रिक (दसवीं) की परीक्षा पास की तो, उन्हें क़रीब 80 फ़ीसद नंबर मिले थे। वे उस साल अपने स्कूल के टॉपर रहे. इसके बाद की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफ़ंस कॉलेज से की।
फिर भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइआइएम) अहमदाबाद गए और वहां से मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएशन (पीजीएम) किया. बाद में उन्होंने अमेरिका के साइकेरस यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई भी की।
साल 1985 में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के लिए चुने गए. पहले बिहार और बिहार विभाजन के बाद (2000) में झारखंड कैडर के अधिकारी रहे अमित खरे भारतीय प्रशासनिक सेवा से अपनी हालिया सेवानिवृति के बाद अब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सलाहकार नियुक्त किए गए हैं।
इस कारण वे चर्चा में हैं लेकिन यह पहला मौक़ा नहीं है, जब उनकी चर्चा हो रही हो। नब्बे के दशक के बहुचर्चित पशुपालन घोटाला (चारा घोटाला) से लेकर पिछले साल बनी नई शिक्षा नीति-2020 और आइटी रुल्स-2021 के प्रावधानों को बनाने में भूमिका के लिए भी अमित खरे चर्चा में रहे हैं। कई अहम पद पर रहे
अमित खरे की छवि एक गंभीर अधिकारी की रही है।
झारखंड में उनके अधीनस्थ रहे एक अधिकारी ने बताया, “वे कम बोलते हैं. गंभीर रहते हैं. कभी-कभार मुस्कुराते हैं. लूज़ टॉक नहीं करते और फ़ाइलों को पेंडिंग रखने की उनकी आदत नहीं. वे कई-कई फ़ाइलें एक दिन में निपटाते रहे हैं. लोग उन्हें पढ़ाकू, रिसर्चर और अंतर्मुखी मानते हैं. प्रशासनिक प्रबंधन और वित्त उनके प्रिय विषय रहे है। .”
आईएएस अधिकारी के तौर पर अपने 36 साल के करियर के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों को संभाला है. पिछले 30 सितंबर को अपनी सेवानिवृति के वक़्त वे भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय में सचिव थे।
इससे पहले वे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में भी सचिव रह चुके हैं. बिहार में वे पटना समेत कई दूसरे ज़िलों के ज़िलाधिकारी, प्राथमिक शिक्षा निदेशक और बिहार राज्य चर्म उद्योग विकास निगम के सर्वेसर्वा रहे। साल 2000 में बिहार बंटवारे के बाद उन्होंने झारखंड कैडर चुना और वे रांची आ गए।
झारखंड में वित्त सचिव, उच्च शिक्षा सचिव, विकास आयुक्त रहने के साथ वे तत्कालीन राज्यपाल वेद मारवाह के प्रधान सचिव रहे। उन्होंने एक वक़्त रांची विश्वविद्यालय के कुलपति का भी पद संभाला।
भाई आईएफ़एस, पत्नी आईएएस
रांची में उप-महालेखापरीक्षक रहे अविनाश चंद्र खरे (पिताजी) और नलिनी खरे (मां) के घर जन्मे अमित खरे के बड़े भाई अतुल खरे भारतीय विदेश सेवा के 1984 बैच के अधिकारी रहे हैं।
आईएफ़एस से रिटायर होने के बाद वे इन दिनों संयुक्त राष्ट्र के लिए काम कर रहे हैं। अमित खरे की पत्नी निधि खरे 1992 बैच की आईएएस अधिकारी हैं। वे इन दिनों केंद्र सरकार के खाद्यान्न व सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में अपर सचिव हैं। वे भी झारखंड कैडर की अधिकारी हैं और इन दिनों केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं।
पशुपालन घोटाला में जाँच
नब्बे के दशक में मौजूदा झारखंड का हिस्सा बिहार राज्य की परिधि में था। बिहार सरकार ने अप्रैल 1995 में अमित खरे को पश्चिमी सिंहभूम का ज़िलाधिकारी बनाकर चाईबासा भेजा।
उन्हीं दिनों बिहार के तत्कालीन मुख्य महालेखापरीक्षक टीएन चतुर्वेदी ने पशुपालन विभाग में आवंटित बजट से अधिक ख़र्च से संबंधित कुछ गड़बड़ियां पकड़ीं और सरकार को इस बारे में बताया।
तब राज्य के वित्त सचिव रहे वीएस दुबे ने इन गड़बड़ियों के बारे में बिहार के सभी ज़िलाधिकारियों को चिट्ठी लिखी। पटना से निकली वह चिट्ठी कई सौ किलोमीटर का सफ़र तय कर चाईबासा पहुँची।
तब वहाँ डीएम रहे अमित खरे ने उस पत्र के आधार पर इसकी छानबीन करायी, तो उन्हें भी गड़बड़ियां दिखीं। खरे ने वहां के ज़िला पशुपालन अधिकारी से जवाब तलब किया, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।
इसके बाद 27 जनवरी 1996 को उन्होंने चाईबासा के पशुपालन कार्यालय पर छापा मारा और कई गड़बड़ियों के सबूत मिलने के बाद उस दफ़्तर को सील करा दिया। उस मामले में एफ़आइआर करायी गई और बाद के दिनों में रांची, जमशेदपुर, गुमला और दुमका में भी छापे पड़े। फिर कुछ लाख की गड़बड़ियों से शुरू हुआ यह मामला 900 करोड़ रुपये से भी अधिक के पशुपालन घोटाला के तौर पर सामने आया।
उस मामले में बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों डॉ जगन्नाथ मिश्र और लालू प्रसाद यादव को सज़ा भी हुई। डॉ जगन्नाथ मिश्र का देहांत हो चुका है और लालू प्रसाद यादव अभी ज़मानत पर हैं। यह पहला मामला था, जब एक आईएएस के तौर पर अमित खरे मीडिया की सुख़ियों में आए। वे इसपर किसी भी तरह की सीधी टिप्पणी से बचते रहे हैं। हालांकि, कुछ साल पहले उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें तब किसी तरह का डर नहीं लगा और न किसी ने उन्हें कोई प्रलोभन दिया।
चुनौतियां और उपलब्धि
पशुपालन घोटाला में पुलिस रिपोर्ट कराने के कुछ ही दिनों बाद अमित खरे का तबादला तब मृतप्राय समझे जाने वाले बिहार राज्य चर्म उद्योग विकास निगम में कर दिया गया।
वे पटना चले गए और उसके बाद बिहार में नौकरी करने का दौर हमेशा सुखद नहीं रहा। साल 1997 में पिताजी की तबीयत बिगड़ने पर उन्होंने छुट्टी ली, जो बीच में ही रद्द कर दी गयी। उसी दौरान उनके पिताजी का निधन भी हो गया। झारखंड में काम करते हुए भी वे किसी सरकार के बहुत क़रीब या बहुत दूर नहीं रहे। उनकी छवि तटस्थ अधिकारी की रही। इस कारण वे और उनकी आईएएस पत्नी कई बार केंद्रीय प्रतिनियुक्तियों पर जाते रहे।
वे केंद्र की मौजूदा सरकार में सूचना व प्रसारण मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय में सचिव रहे। इस दौरान नई शिक्षा नीति-2020 और डिजिटल मीडिया पर निगरानी से संबंधित आइटी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रुल 2021 बनाने में उनकी भूमिकाएं भी चर्चा में रहीं । वे तब एचआरडी सचिव बनाए गए, जब जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में फ़ी-स्ट्रक्चर में बढ़ोतरी के बाद वहाँ के छात्र आन्दोलन कर रहे थे। उन्होंने सचिव रहते हुए कुलपति से बात कर फ़ीस बढ़ोतरी को वापस कराया और वह आंदोलन शांत हुआ। ऐसे कई और क़िस्से अमित खरे के साथ जुड़े हैं।