कोलकाता । साहित्यिकी की ओर से अभिज्ञात के दसवीं कविता संग्रह जरा सा नॉस्टेल्जिया ‘पर संगोष्ठी का आयोजन भारतीय भाषा परिषद पुस्तकालय हाल में किया गया ।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर वसुंधरा मिश्र ने कहा कि अभिज्ञात की कविताएं ग्राम्य जीवन व नगरीय जीवन के बीच सेतु हैं ।उनकी कविताओं में उदात्त सकारात्मक संदेश है। संवेदना, हालात के बदलने की बेचैनी और गांव के विछोह की असीम व्यथा है ।वे 20वीं और 21वीं सदी के बड़े रचनाकार हैं ।
नीता अनामिका ने कहा कि अभिज्ञात की कविता में विचार और संवेदना अनूठे ढंग से पिरोई गई हैं। कविताओं में न केवल स्मृतियों का आस्वाद है ,बल्कि वर्तमान और भविष्य के धागे भी उससे जुड़े हैं। विमलेश त्रिपाठी का कहना था कि जो लोग गांव से प्रवासी होकर शहरों में अरसे से रह रहे हैं उन सबमें स्वाभाविक तौर पर अपनी जड़ों को लेकर नॉस्टेल्जिया है
अभिज्ञात ने अपने पहले ही कविता संग्रह का नाम एक अदहन हमारे अंदर रखकर यह इंगित कर दिया था कि आधहन जैसे शब्दों से शुरू उनकी साहित्यिक यात्रा जड़ों की चिंता की भी यात्रा है। उन्होंने अभिज्ञात की स्त्री जब खुश होती कविता को विशेष तौर पर उल्लेखनीय बताया। फिल्म कार आशुतोष पाठक नेअभिज्ञात की इस बात से सहमति जताई कि कविता हथियार उठाने के लिए ही नहीं प्रेरित करती बल्कि वह हथियार छोड़ने में भी मददगार हो सकती है। डॉक्टर गीता दूबे ने अभिज्ञात की तीन कविताओं की आवृत्ति की । संस्था की अध्यक्ष विद्या भंडारी ने कहा कि अभिज्ञात छोटी कविताओं में भी बड़ी बात कहने का हुनर जानते हैं। उनकी कविता गागर में सागर है। अभिज्ञात
ने कहा कि आप जो भी कहें, जो भी करें उसमें थोड़ी सी कविता भी हो तो बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। कविता जीने की पद्धति है जिसे अपनाकर तनाव व हताशा से मुक्ति पाई जा सकती है कार्यक्रम का संचालन करते हुए संजना तिवारी ने कहा कि अभिज्ञात की कविता की हर आवृत्ति के साथ नए अर्थ खुलते हैं ।संस्था का परिचय साहित्यिकी की सचिव डॉक्टर मंजू रानी गुप्ता ने किया।