राजेश बादल
अब्दुल जब्बार अब नहीं हैं। दिल इस हकीक़त को मानने के लिए तैयार नहीं है। पैंतीस बरस से लाखों गैस पीड़ितों के लिए संसद से लेकर सड़क तक और सरकार से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक अथक लड़ाई लड़ने वाले जब्बार इन दिनों अपने शरीर पर अनेक आक्रमणकारियों से लड़ाई लड़ रहे थे। सारी जवानी पीड़ित मानवता की खिदमत में होम करने वाले अब्दुल जब्बार गैस त्रासदी के सताए लोगों के लिए एक फ़रिश्ते से कम नहीं थे।
यूनियनकार्बाइड के इस घिनौने जुर्म के बाद पीड़ितों के लिए अनगिनत हितैषी और स्वयंसेवी संगठन सामने आए और अपनी दुकानें चमका कर चले गए। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड जीतकर चले गए। एक अब्दुल जब्बार था, जो मोर्चे पर डटा रहा। न हारा,न टूटा,न बिखरा। हत्यारी गैस ने उनके माता-पिता और भाई को छीन लिया था। उनके पचास फ़ीसदी फेफड़े खराब हो गए थे, लेकिन दिल के तूफ़ान कभी चेहरे पर नहीं आए। शायद ही कोई होगा जिसने मिलने पर उनके चेहरे पर मुस्कराहट न देखी हो। ज़िंदगी में अनेक झंझावात आए। कभी-कभी जब्बार भाई के चेहरे पर एक फ़ीकी उदासी दिखी, लेकिन अगले दिन से फिर वही जब्बार। लोगों की सेवा के लिए तैयार ।
पैंतीस बरस पहले मेरी मुलाक़ात जब्बार भाई से हुई थी। गैस त्रासदी के फौरन बाद। वह सत्ताईस साल के एक नौजवान सामजिक कार्यकर्ता और एक पत्रकार की मुलाक़ात थी। इसके बाद वे कब जब्बार भाई हो गए- याद नहीं। मुझसे साल डेढ़ साल बड़े थे, लेकिन बराबर जैसा ही मान दिया। कभी परेशान होते तो दिल के जख्म भी दिखाते और बाद में ख़ुद ही मरहम लगा लेते। यह सोचकर कि इनका कोई इलाज नहीं। दिल्ली प्रवास के कारण मुलाकातें कम हुईं ,लेकिन जब भी मिलते, उसी खूलूस के साथ। कभी संघर्ष में नया मोड़ आता या कोई नई सूचना आती तो उनका फ़ोन आता” राजेश भाई! कैमरा लेकर आ जाओ। मैं समझ जाता कि कोई बड़ी बात है। यूनियन कार्बाइड की उस हत्यारी मिथाइल आइसोसाईनेट गैस के असर से भोपाल के हज़ारों परिवारों की अनेक पीढ़ियां अब तक ज़हर का दंश झेल रही हैं। यह जब्बार का ही जज़्बा था कि भोपाल मेमोरियल अस्पताल की स्थापना कराई और लाखों पीड़ितों के लिए अत्याधुनिक चिकित्सा मुहैया कराई। गैस पीड़ित महिलाओं को रोज़गार दिलाने के लिए सिलाई सेंटर खोले और उनके घरों में चूल्हा जलवाया। बरसों तक ज़हरीली गैस के शिकार मरीज़ों के लिए मुआवजे की लड़ाई लड़ी।
यूनियन कार्बाइड के मुज़रिमों को अपराधी क़रार देने के लिए सर्वोच्च अदालत तक उनका संघर्ष बेमिसाल है। दुनिया भर के नियम क़ायदे-क़ानून उन्हें ज़बानी याद थे। मैंने करीब सत्रह-अठारह साल तक गैस त्रासदी पर लिखा। सारे घटनाक्रम कवर किए और टेलीविज़न के लिए रपटें बनाईं। जब भी कोई संशय होता,जब्बार भाई उनका निवारण करते। हम जब्बार पर भरोसा कर सकते थे,सरकार पर नहीं। जो आंकड़े उनके पास होते, वे किसी विभाग के पास नहीं होते। एक तरह से वे एन्साइक्लोपीडिया थे। पाँच बरस पहले राज्यसभा टीवी के लिए एक वृत्तचित्र बना रहा था तो उन्होंने तीस साल की फिल्म आंखों के सामने चला दी थी। दशकों से हर शनिवार भोपाल के यादगारे शाहजहानी पार्क में गैस पीड़ित इकट्ठे होते रहे हैं और हर सप्ताह के सुख दुःख बांटते रहे हैं। अब जब्बार भाई नहीं हैं तो पीड़ित एक तरह से अनाथ हो गए हैं। अपनी आंखों के सामने ऐसे लोगों को पद्म सम्मान मिलते देख रहा हूं कि ताज्जुब होता है। दुनिया की सबसे भीषण और भयावह त्रासदी का शिकार लोगों के लिए सारे विश्व भर में इकलौता संघर्ष न किसी राज्य सरकार को दिखाई दिया न केंद्र सरकार को।
जब्बार भाई ! आप हमारे दिल में हमेशा बसे रहेंगे।
(साभार – अमर उजाला)