कोलकाता : श्रुति पाठ पाठकों और नाटककार के मध्य एक जीवंत सेतू का काम करता है और इसीलिए लिटिल थेस्पियन ने श्रुति-पाठ कार्यक्रम का आयोजन किया जहाँ नाटककार प्रताप सहगल के नये नाटक अन्वेषक का पाठ स्वयं नाटककार से सुनना एक सुखद अनुभव रहा। डॉ श्रीनिवास शर्मा, प्रताप जायसवाल, सिराज बातिश ख़ान, रावेल पुष्प, जितेंद्र धीर, दिनेश वढेरा, पवन मस्कारा, बिमल शर्मा, भरत वैद्य, प्रेम कपूर, अज़हर आलम, खुर्शीद एकराम आदि के अलावा लिटिल थेस्पियन के सभी कलाकार मौजूद थे। लिटिल थेस्पियन की अध्यक्षा उमा झुनझुनवाला ने नाटककार प्रताप सहगल का परिचय दिया। प्रेम कपूर ने उन्हें अंग-वस्त्र प्रदान कर उनका सम्मान किया। तत्पश्चात प्रताप सहगल ने नाटक अन्वेषक का पाठ किया।
नाटक – अन्वेषक के बारे में
जयशंकर प्रसाद से शुरू हो कर ‘मोहन राकेश’ की गली से गुज़रते हुए प्रताप सहगल के ज़ेहन से जुड़ती है ‘अन्वेषक’ की पटकथा । वक़्त के साथ तब्दीली लाज़िमी है जो कि ‘अन्वेषक’ में साफ नज़र आती है। कुआँ और प्यासा के बीच हमेशा प्यास का महत्व बरक़रार रहता है। एक अन्वेषक को कई स्तरों पर अलग-अलग तरह की सामाजिक समस्याओं (अंधविश्वास और अवरोध) से जुझना पड़ता है। इस नाटक की शुरूआत रेडियो से हुई। यह नाटक तेईस वर्षीय आर्यभट पर आधारित है। यह ऐसी उम्र है जब आदमी अपने आप को एक्सप्लोर करना शुरू करता है। इस उम्र में विरोध करने की क्षमता सबसे अधिक होती है। पाँचवीं शताब्दी में जो आर्यभट के अवदान थे। वह महत्वपूर्ण था। यह ऐसा समय था जब ब्राह्मणत्व फिर से सिर उठा रहा था अपने पूरे कर्म-काण्ड के साथ। यहाँ पर ब्राह्मण और पुरोहित वर्ग में थोड़ा-सा फर्क कर लेना चाहिए। पुरोहित वर्ग ऐसा है जो कर्मकाण्ड में ज्यादा विश्वास करता है। ब्राह्मण तो वो है जो विद्वान है, पढ़ा लिखा है, आगे बढ़कर सोचता है। केवल कर्मकाण्ड करने से कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता। जो दिया गया है उस पर मेरा प्रश्न चिह्न उठाने की प्रवृति थी मेरी। मैं कभी ये नहीं मान पाया कि जो पहले से है सब सही है। स्थितियाँ बदली हैं। हालात बदले हैं। नये-नये अन्वेषन सामने आये हैं। अविष्कार सामने आये हैं। ऐसे में यह कैसे सम्भव है कि हम जीयें तो आज के अविष्कारों के साथ और याद करते रहें वो पुरानी बात जो अविष्कारों के विरोध में करते रहें।
इस नाटक में आर्यभट्ट के खगोल विज्ञान से जुड़े किस्से और किस प्रकार उन्होंने रहस्य को उजागर किया इसे भी दिखाया। नाटक में 5वीं शताब्दी में बुधगुप्त के राजमहल में आर्यभट्ट द्वारा किए गए खोज और उनके खिलाफ षड़यंत्र को दिखाया गया। आर्यभट्ट और केतकी दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं। एक बार जब आर्यभट्ट बताते हैं कि सूर्य नहीं, बल्कि पृथवी घूमती है तब इसका विरोध चिंतामणि और चूड़ामणि करते हैं। इन दोनों को अपनी सत्ता जाने के डर होता है। अंत में नालंदा विश्वविद्यालय इसे पारित कर देता है। इसके बाद जब भी आर्यभट्ट कुछ भी नया अविष्कार करते तो चिंतामणि एवं चूड़ामणि जानबूझकर केतकी और आर्यभट्ट के संबंध उछालते हैं। अंत में आर्यभट्ट पत्र लिखकर राज्य को छोड़कर दूर चला जाता है।